चोर-दरवाजे से बेलआउट
फिर भी वोडाफोन सरकारी कंपनी नहीं बनेगी। सरकार अभी भी कंपनी से संबंधित कोई भी कार्यकारी फैसला नहीं ले पाएगी
फिर भी वोडाफोन सरकारी कंपनी नहीं बनेगी। सरकार अभी भी कंपनी से संबंधित कोई भी कार्यकारी फैसला नहीं ले पाएगी। निदेशकों की नियुक्ति और अन्य अहम फैसले लेने का अधिकार वोडाफोन समूह और आदित्य बिड़ला समूह के पास ही रहेगा। साफ है, सरकार ने कंपनी को बेलआउट देने का रास्ता निकाला है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रोनाल्ड रेगन और मार्गरेट थैचर के इस नव-उदारवादी कथन को कई बार दोहरा चुके हैं कि गर्वनमेंट हैज नो बिजनेस टू बी इन बिजनेस। यानी सरकार को कारोबार में शामिल नहीं होना चाहिए। उनकी इसी सोच के आधार पर उनके शासनकाल में सार्वजनिक उद्यमों का अंधाधुंध निजीकरण हुआ है। लेकिन ये खबर वक्त की धारा के बीच विसंगति महसूस होती है कि सरकार टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन आइडिया में 35.8 प्रतिशत की हिस्सेदारी खरीदने जा रही है। इस खरीदारी के बाद सरकार कंपनी की सबसे बड़ी शेयरधारक बन जाएगी। यह तो साफ है कि यह कदम निजी उद्यमों में सरकारी दखल बनाने की किसी नीति का हिस्सा नहीं है। बल्कि यह मानने की वजहें हैं कि आर्थिक संकट से जूझ रही इस कंपनी को इस रास्ते सरकार ने बेलआउट पैकेज देने का फैसला किया है। यानी एक डूबती कंपनी को करदाताओं के धन से बचाया जाएगा। खबरों के मुताबिक ऐसा करने का प्रस्ताव सरकार ने ही कंपनी को दिया। 2021 में टेलीकॉम क्षेत्र में सुधार लाने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कुछ सुधारों की अनुमति दी थी, जिनमें से एक सुझाव यह भी था। वोडाफोन आइडिया पर स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल के लिए और एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) के तहत करीब 50,000 करोड़ रुपए बकाया हैं। कंपनी के अनुमान के मुताबिक इस ब्याज का कुल मूल्य करीब 16,000 करोड़ रुपए है। ये रकम उसे केंद्र सरकार को देने थे।
अब कंपनी ने यह बकाया राशि देने की मियाद चार सालों तक बढ़ा दी है। इस अवधि में जो ब्याज देय होगा उसे शेयरों में बदल कर सरकार को दे दिया जाएगा। ऐसा करने के बाद सरकार कंपनी के 35.8 प्रतिशत शेयरों की मालिक हो जाएगी। वोडाफोन समूह के पास करीब 25.8 प्रतिशत शेयर रहेंगे। आदित्य बिड़ला समूह के पास लगभग 17.8 प्रतिशत हिस्सेदारी रहेगी। तो इस तरह कंपनी में सबसे बड़ी शेयरधारक हो जाएगी। इसके बावजूद इस सौदे की शर्तों मतलब यह है कि वोडाफोन सरकारी कंपनी नहीं बनेगी। सरकार अभी भी कंपनी से संबंधित कोई भी कार्यकारी फैसला नहीं ले पाएगी। अभी भी निदेशकों की नियुक्ति और अन्य अहम् फैसले लेने का अधिकार वोडाफोन समूह और आदित्य बिड़ला समूह के पास ही रहेगा। साफ है, सरकार ने कंपनी को बेलआउट देने का रास्ता निकाला है। विडंबना ही है कि अपनी टेलीकॉम कंपनी बीएसएनएल को डूबाने के बाद सरकार जनता का पैसा इस रूप में एक प्राइवेट कंपनी को बचाने में खर्च कर रही है।
अब कंपनी ने यह बकाया राशि देने की मियाद चार सालों तक बढ़ा दी है