सबसे बड़े सीरियल किलर कहे जाने वाले जावेद इक़बाल की ज़िंदगी पर बनी फ़िल्म विवाद में

इस छोटी-सी फिल्म ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है.

Update: 2021-12-24 09:57 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सोशल मीडिया पर लोगों को फ़ुर्सत बहुत ज़्यादा होती है, लोग कुछ ना कुछ तो लिखेंगे ही. इतने ट्रेलर और टीज़र आ चुके हैं. इस छोटी-सी फिल्म ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है. इसमें कुछ ऐसा है जिसे देखने के लिए आपको आना होगा.''

ये कहना है फ़िल्म निर्देशक अबू अलीहा का जिन्होंने पाकिस्तान के इतिहास में सबसे बड़े सीरियल किलर कहे जाने वाले जावेद इक़बाल की ज़िंदगी पर फ़िल्म बनाई है. अलीहा कहते हैं कि जो दर्शक टिकट ख़रीदकर फ़िल्म देखेंगे वो निराश नहीं होंगे.
फ़िल्म पर हो रहे विवाद, इसे बनाने की तैयारी और इसके मुख्य विचार पर फ़िल्म के निर्देशक अबू अलीहा और जावेद इक़बाल का किरदार निभाने वाले अदाकार यासिर हुसैन से बीबीसी उर्दू के लिए पत्रकार बराक शब्बीर ने विस्तार से चर्चा की.
अबू अलीहा का मानना ​​है कि जावेद इकबाल द्वारा 100 बच्चों की हत्या पाकिस्तान के इतिहास की एक ऐसी घटना है जिसे याद किया जाना चाहिए.
अलीहा कहते हैं कि जावेद इक़बाल पाकिस्तान के इतिहास का हिस्सा हैं और इसे लोगों को याद रखना चाहिए. वो कहते हैं, "यह हमारे इतिहास का एक बुरा चरित्र है, इसलिए इसे भूलने के बजाय, इसे याद रखें और देखें कि ऐसा क्यों हुआ,"
उन्होंने कहा, "अगर भारत के बंटवारे पर फ़िल्म बन सकती है, जबकि बंटवारा अपने आप में अच्छी याद नहीं है, तो यह हमारी भी एक बुरी याद है. इस पर भी फ़िल्म बन सकती है."
सीरियल किलर पर फ़िल्म क्यों?
उन्होंने कहा, ''मैं चाहता हूं कि ईधी साहब पर भी फ़िल्म बने. वो तो बहुत अच्छा होगा. हर जगह लोग उनके आसपास जमा हो जाते थे. मैं ईधी साहब पर फ़िल्म बनाना चाहता हूं- लगाइये पैसे."
इस फ़िल्म को बनाने के फ़ैसले का बचाव करते हुए वह बाहरी दुनिया के उदाहरण देते हुए पाकिस्तान के लोगों की प्रवृत्तियों पर भी बात करते हैं.
उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि हर विषय पर एक फ़िल्म बननी चाहिए और पहले भी फ़िल्में बनती रही हैं."
"जब उन्होंने अमेरिकन साइको बनाया, तो लोगों ने नहीं कहा था कि इस पर ऐसी फ़िल्म नहीं बननी चाहिए. ये एक ऐसी बात है जो पाकिस्तान में लोग करते हैं, हालांकि यही लोग स्क्विड गेम भी देखते हैं जिसमें कोई संदेश नहीं है. एक सिरीज़ आई थी 'यू', जो पाकिस्तान में ट्रेंड कर रही थी, इसका मतलब है कि पाकिस्तान इसे देख रहा है. इसमें एक नौकर है जो स्टॉकर है, तो आप स्टॉकर को क्यों देख रहे हैं? आपको क्या संदेश मिल रहा है... इसलिए हर चीज़ का कोई संदेश नहीं होता."
अबू अलीहा ने कहा, "मैं इस प्रोजेक्ट के लिए चार साल से प्रतिबद्ध हूं और कभी भी कहीं भी मेरे मन में ये विचार नहीं था कि हमारे पास एक सीरियल किलर है और क्योंकि अमेज़न और नेटफ़्लिक्स सीरियल किलर फ़िल्मों से भरे हुए हैं, इसलिए हम एक सीरियल किलर की कहानी भी बनाते हैं."
उन्होंने कहा, ''आप जावेद इक़बाल को देखिए. उसके बारे में आपको जो भी क्लिप मिलती है, उससे पता चलता है कि वह एक सामान्य आदमी था. यदि ऐसा कोई व्यक्ति आपके पास से गुज़रता है तो आप उसे फिर से पलटकर नहीं देखते. वो कोई माचोमैन नहीं था, वह एक सामान्य आदमी था."
"जावेद इक़बाल के किरदार को बनाना एक चुनौती थी. जब आप इस फ़िल्म को देखने जाएंगे तो आपको यासिर हुसैन नहीं मिलेंगे, आयशा उमर और राबिया कुलसुम नहीं मिलेंगी, आपको एक पुलिस अधिकारी मिलेगा, आपको एक मां मिलेगी, आपको एक सीरियल किलर मिलेगा."
फ़िल्म के अदाकार कैसे चुने?
अबू अलीहा का कहना है कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि यासिर का चेहरा जावेद इक़बाल से मिलता-जुलता हो. हालांकि, उनका कहना है कि मैं जानता था कि यासिर हुसैन बहुत अच्छे अभिनेता हैं, वो इस किरदार को बहुत अच्छे से निभा सकते हैं.
आयशा उमर की पसंद के बारे में उन्होंने कहा कि आयशा पर 'ख़ूबसूरत' के किरदार की एक छाप लग चुकी है. हमने सोचा था कि आयशा उमर इस मामले में एक बेहतर विकल्प होंगी क्योंकि हम लोगों को हैरान करना चाहते थे. जो दस साल से आपके चेहरे पर मुस्कान ला रही है, वो अब रोएगी, वो सौ बच्चों की माओं के लिए रोएगी और वो उसे नफ़रत से देखेगी, तो असल में ये एक सरप्राइज़ फ़ैक्टर था."
अबू अलीहा के लिए इस विषय पर फिल्म बनाना जहां एक चुनौती थी, वहीं बड़े सितारों को मनाना भी आसान नहीं था.
वे कहते हैं, ''मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती सीमित बजट की थी. सबसे बड़ा चैलेंज था यासिर हुसैन और आयशा उमर जैसे सितारों को इस फ़िल्म के लिए राज़ी करना और उन्हें निराश न करना. उन्हें समझाना पड़ा कि मैं उनसे एक 'जोखिम भरे प्रोजेक्ट' पर महीनों की मेहनत के लिए कह रहा हूं और मैं उन्हें उनकी मेहनत के हिसाब से पैसा नहीं दे पाऊंगा."
तीन अलग-अलग लोगों को मिला जावेद इक़बाल को फ़िल्माने का ऑफ़र
अभिनेता यासिर हुसैन का कहना है कि उन्हें तीन अलग-अलग लोगों ने जावेद इक़बाल पर एक फ़िल्म में काम करने की पेशकश की थी और उन्होंने तीनों को स्वीकार कर लिया.
यासिर कहते हैं, "मेरे लिए जावेद इक़बाल से एक अलग ही रिश्ता है. छह-सात साल पहले लाहौर में मुझे एक शॉर्ट फ़िल्म की स्क्रीनिंग के लिए बुलाया गया था. उस शॉर्ट फ़िल्म को बनाने वालों ने भी मुझे बताया कि अगला प्रोजेक्ट वो जावेद इकबाल पर कर रहे हैं. उन्होंने मुझसे पूछा था कि क्या मैं ये प्रोजेक्ट करना चाहूंगा तो मैंने कहा क्यों नहीं, यह एक बेहतरीन प्रोजेक्ट होगा. आप एक ऐसी कहानी बना रहे हैं जो बहुत डरावनी होगी. मैंने उनसे कहा कि मैं ज़रूर करूंगा.
तभी एक और सज्जन मेरे पास आए कि मैं जावेद इक़बाल पर फ़िल्म बना रहा हूं. तो क्या आप इसमें काम करेंगे? मैंने कहा हां मैं करूंगा. फिर अबू अलीहा मेरे पास आए कि मैं जावेद इकबाल पर फ़िल्म बना रहा हूं तो मैंने कहा कि यह मज़ाक़ मेरे साथ काफी़ीसमय से हो रहा है. ज़ाहिर तौर पर मैंने तुरंत हां कर दी. मुझे पता था कि वे इसे बनाएंगे क्योंकि उन्होंने पहले भी फ़िल्में बनाई हैं और वे किसी भी बजट पर फ़िल्में बना सकते हैं."
"जावेद इक़बाल को लेकर एक छोटा सा वीडियो सामने आया. इसमें जावेद इकबाल का एटीट्यूड नजर आता है क्योंकि उसने ख़ुद को सरेंडर कर दिया था. उसमें एक बात थी कि देखो मैं ख़ुद आया हूं, इसमें आपकी कोई कामयाबी नहीं है. वह गर्व और अहंकार दिखा रहा था. यह मुझे समझ में आया. और फिर जिस तरह से निर्देशक ने मुझे समझाया कि वो ख़ुद को पुलिस और थानों से ऊपर समझता था. वह ख़ुद आया है कि मुझे गिरफ़्तार करो, मैंने सौ बच्चे मार दिए हैं."
यासिर कहते हैं, "चरित्र भी शांत होना चाहिए क्योंकि वह सिर्फ़ एक आतंकवादी था जो बुर्का पहनकर भाग रहा था जिसे मैंने आगे बढ़ाया है. उस पर लोगों ने कहा कि आप जिस तरह से पुलिस की गाड़ी से उतरते हैं, जिस तरह से देख रहे हैं, उससे हमें बहुत अच्छा एहसास होता है... जावेद इक़बाल जब पुलिस की गाड़ी से उतर रहा था तो उसके लिए गर्व का क्षण था कि तुम मुझे ऐसे उतार रहे हो जैसे तुमने मुझे पकड़ लिया है."
यासिर कहते हैं, "मुझसे एक नए अभिनेता ने पूछा कि जब मैं यह कर रहा था तो मैं क्या सोच रहा था. मैंने जवाब दिया कि मैं उस समय नहीं सोच रहा था, मैंने पहले सोचा था कि जब आप अभिनय करते हैं तो स्वाभाविक रूप से जो दिमाग़ में आता है उसे आप स्क्रीन पर ले जाते हैं."
'अगर कट नहीं कहा जाता तो मैं रोना शुरू कर देता.'
यासिर हुसैन का कहना है कि अच्छी बात यह थी कि यह फ़िल्म जल्दबाज़ी में बनाई गई थी क्योंकि यह जावेद इक़बाल के पूरे जीवन पर आधारित नहीं थी. यह उनके जीवन का एक हिस्सा था. उन्हें जल्दी ही गोली मार दी गई, (जो) यासिर के लिए ख़ुशी की बात थी क्योंकि वो इसे लंबे समय तक नहीं कर सकते थे.
यासिर हुसैन
"अगर आप मुझसे पूछें तो मैं इस किरदार में वापस आ सकता हूं क्योंकि आपके साथ एक बटन लग जाता है. जब आप इसे दबाते हैं तो आप इस भूमिका पर वापस जा सकते हैं. लेकिन मैं अब (इस भूमिका में) नहीं जाना चाहता, ऐसा कोई अच्छा एहसास इस किरदार के साथ नहीं है कि कोई इसमें लौटना चाहे."
उन्होंने एक सीन का ज़िक़्र करते हुए कहा, 'राबिया कुलसुम बहुत अच्छी ऐक्ट्रेस हैं. वह एक बच्चे की मां थीं जिसका बच्चा खो गया है. वह जावेद इक़बाल से पूछने की कोशिश कर रही हैं कि क्या वह तुम्हारे साथ है. यह एक बहुत ही दर्दनाक दृश्य था. जब राबिया ने परफ़ॉर्म किया तो एक ऐक्टर के तौर पर मैं असुरक्षित महसूस कर रहा था. उस वक़्त अगर कट नहीं कहा जाता तो मैं दहाड़ें मार कर रोने लगता."
वो कहते हैं, "मुझसे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं हो रहा था क्योंकि मैं वो किरदार एक अदाकार के तौर पर कर रहा था, लेकिन एक इंसान के तौर पर मैं कंट्रोल नहीं कर पा रहा था."


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