तालिबान ने इस संबंध में भारत से संपर्क, राजनयिकों को बरकरार रखने की अपील की: रिपोर्ट
दुनिया के लोकतांत्रिक देश तालिबानी सरकार को लेकर जो रुख अपनाते हैं, भारत भी उसी अनुरूप अपना फैसला लेगा.
अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) की एंट्री के बाद सबकुछ बदल गया है. ज्यादातर देशों ने वहां अपने दूतावास बंद कर दिए हैं. राजनयिकों और नागरिकों को वापस लाया गया है. भारत ने भी काबुल में अपने दूतावास खाली कर दिए हैं और राजनयिकों को वापस बुला लिया है. लेकिन, तालिबान भारत से रिश्ते बनाए रखना चाहता है. तालिबान ने भारत से गुजारिश की है कि वो काबुल में राजनयिक मौजूदगी को जारी रखे. हालांकि, अभी तक इस बारे में भारत सरकार की तरफ से कोई बयान नहीं आया है.
स्काई न्यूज ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि तालिबान के वरिष्ठ नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्टैनिकज़ई ने काबुल पर 15 अगस्त को कब्ज़े के बाद अपने संपर्क सूत्र के ज़रिये भारत को संदेश भेजा था. इसमें कहा गया था कि भारतीय अथॉरिटी को बताया जाए कि काबुल में उन्हें कोई खतरा नहीं है.
स्टैनिकज़ई तालिबान के शीर्ष नेताओं में शुमार हैं. 15 अगस्त को काबुल पर तालिबान के कब्ज़े के बाद जब भारत अपने राजनयिकों को निकालने की तैयारी में था, तब स्टैनिकज़ई ने अपने संपर्क सूत्र के ज़रिये यह संदेश भेजा था कि भारतीय अथॉरिटी को बताया जाए कि काबुल में उन्हें कोई खतरा नहीं है.
रिपोर्ट के मुताबिक, यह भी कहा गया है कि अगर भारत को इस बात की चिंता है कि लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, लश्करे झांगवी या हक्कानी ग्रुप से उसके दूतावास को खतरा है, तो ऐसा नहीं है. तालिबान की तरफ से भारत को भरोसा दिलाने की कोशिश की गई कि काबुल तालिबान के पास है, यहां कोई और (लश्कर, जैश, झांगवी) नहीं है.
बीते दिन विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि अफगानिस्तान पर भारत अभी 'इंतज़ार करो और देखो' की नीति अपना रहा है. दुनिया के लोकतांत्रिक देश तालिबानी सरकार को लेकर जो रुख अपनाते हैं, भारत भी उसी अनुरूप अपना फैसला लेगा.