20 मिनट में लिखी फिल्म को संजू ने 15 मिनट में कहा हां, 'वास्तव' से मिला करियर को जीवनदान

अभिनेता संजय दत्त की तीसरी पारी अब तक काफी डगमग डगमग रही है। जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने फिल्म ‘भूमि’ से बड़े परदे पर वापसी की।

Update: 2021-10-10 03:59 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अभिनेता संजय दत्त की तीसरी पारी अब तक काफी डगमग डगमग रही है। जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने फिल्म 'भूमि' से बड़े परदे पर वापसी की। लेकिन, यहां ये बात नोट करने लायक है कि इस फिल्म के लिए कभी उनके करीबी दोस्त रहे निर्देशक महेश मांजरेकर ने उन्हें जो सलाह दी थी, वह संजय दत्त ने नहीं मानी। नतीजा? न सिर्फ संजय दत्त की ये फिल्म फ्लॉप रही बल्कि इसके बाद आईं उनकी अब तक की सारी फिल्में दर्शकों ने नकार दीं। गिनती करें तो उनकी तीसरी पारी की लगातार फ्लॉप फिल्मों की संख्या आठ हो चुकी है। चार फिल्में उनकी रिलीज की कतार में हैं। लेकिन, क्या आपको पता है कि संजय दत्त इसके पहले भी बतौर सोलो हीरो लगातार फ्लॉफ फिल्में देने का इससे भी बड़ा रिकॉर्ड बना चुके हैं। संजय दत्त को हिंदी सिनेमा ने करीब करीब हाशिये पर ढकेल ही दिया था, अगर मराठी सिनेमा के उन दिनों के प्रतिभावान निर्देशक महेश मांजरेकर उनके जीवन में ना आते। महेश मांजरेकर ने अपनी पहली हिंदी फिल्म 'वास्तव' संजय दत्त को उस रोल में लेकर बनाई जिसके बारे में कहा जाता है कि ये अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन की कहानी है। इस फिल्म ने ही बतौर सोलो हीरो संजय दत्त की उनके करियर की दूसरी पारी में नया जीवनदान दिया। आज के 'बाइस्कोप' में कहानी फिल्म 'वास्तव' की...

'वास्तव' से मिला करियर को जीवनदान

संजय दत्त के मुताबिक, 'मैंने तमाम फिल्मों के लिए खूब मेहनत की है। लेकिन फिल्म 'वास्तव' ने ही मुझे असल में ये सिखाया कि एक्टिंग करना किसे कहते हैं और एक एक्टर होना क्या होता है?' फिल्म 'वास्तव' संजय दत्त के दिल के बहुत करीब रही फिल्म है। इसी फिल्म ने उन्हें उनके करियर का पहला बेस्ट एक्टर फिल्मफेयर पुरस्कार भी दिलाया और यही वह फिल्म है जिसके क्लाइमेक्स ने उन्हें अपने माता पिता नरगिस और सुनील दत्त की फिल्म 'मदर इंडिया' की याद करके खूब रुलाया। फिल्म 'वास्तव' में पैसा लगा था अंडरवर्ल्ड के चर्चित नाम छोटा राजन के भाई दीपक निखलजे का और कहते तो यही हैं कि ये फिल्म छोटा राजन के सामने आईं अपराध की मजबूरियों के बारे में बनी थी। लेकिन, इस बारे में कभी फिल्म से जुड़े किसी व्यक्ति ने बात की नहीं।

20 मिनट में लिखी फिल्म पर 15 मिनट में फैसला

साल 1995 में जब पूरा देश शाहरुख खान की फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के पीछे पागल था तो मराठी भाषा की एक फिल्म 'आई' ने देश दुनिया में खूब शोहरत बटोरी। फिल्म के निर्देशक महेश मांजरेकर को इस फिल्म की शोहरत का फायदा मिला अपनी पहली हिंदी फिल्म 'निदान' पाने में। लेकिन, तभी उनकी मुलाकात संजय दत्त से हो गई। एक दिन संजय दत्त किसी फिल्म की शूटिंग कर रहे थे तो उन्हें याद आया महेश मांजरेकर ने उन्हें किसी कहानी के बारे में बताया था। महेश को फोन आया कि सेट पर आकर मिलो और अपनी स्क्रिप्ट का नरेशन दे दो। नरेशन भला क्या देते महेश, स्क्रिप्ट ही उनकी तैयार नहीं थी। वह टेंशन में आ गए। एक होटल में बैठे बैठे दो चार पैग मारे और बताते हैं वहीं वेटर का पेन मांगकर कागज पर लिखने लगे। एक बार लिखने लगे तो सिलसिला कुछ यूं बना कि वहीं बैठे बैठे महेश ने अपनी फिल्म के 20 सीन का खाका खींच डाला। यही कागज लेकर महेश मांजरेकर पहुंच गए संजय दत्त से मिलने। 20 मिनट में लिखी गई स्क्रिप्ट को संजय दत्त ने बस 15 मिनट सुना और फैसला कर लिया कि उन्हें ये फिल्म करनी है।

नहीं मानी महेश की सलाह

साल 1993 में रिलीज हुई सुभाष घई की फिल्म 'खलनायक' के बाद छह साल तक संजय दत्त की कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कमाल नहीं दिखा पाई। बीच में उन्हें लंबा समय जेल में भी बिताना पड़ा। साल 1999 एक तरह से संजय दत्त के लिए काफी लकी रहा। पहले डेविड धवन ने उन्हें गोविंदा के साथ 'हसीना मान जाएगी' में मौका दिया, ये फिल्म हिट रही। इसके बाद सोलो हीरो के तौर पर फिल्म 'वास्तव' ने उनको वापस ए लिस्टर अभिनेताओं की लीग में बैठा दिया। संजय दत्त और महेश मांजरेकर ने इसके बाद साथ में कुछ और फिल्में भी कीं लेकिन 'वास्तव' जैसा करिश्मा फिर दोहराया न जा सका। उस वक्त संजय दत्त के चेहरे पर एक अलग ही गुस्सा और एक अलग ही दर्द दिखता था। इस गुस्से भरे दर्द ने फिल्म 'वास्तव' के रघुदेव नामदेव शिवालकर यानी रघु भाई के किरदार का खाका खींचने में महेश मांजरेकर की बहुत मदद की। पिछली बार जब संजय दत्त जेल से बाहर आए और उन्होंने फिल्म 'भूमि' से अपनी तीसरी इनिंग्स शुरू की। महेश मांजरेकर कहते हैं, "संजू जेल से वापस आया तब मेरी उससे एक मुलाकात हुई। उसके पास एक पटकथा थी जो मुझे समझ नहीं आई। मैं उसे लेकर 'दे धक्का'  बनाना चाहता था। लेकिन उसने वही फिल्म की जो 'भूमि' के नाम से रिलीज हुई। फिल्म रिलीज होने के बाद उसने मुझे फोन किया। मैंने उससे कहा कि मैंने तो पहले ही बोला था कि ये फिल्म मत कर। इसके बाद भी उसने फिर 'कलंक' और 'प्रस्थानम' की।"

इम्तियाज हुसैन के संवादों का कमाल

महेश मांजरेकर की फिल्म 'वास्तव' संजय दत्त के कमाल के अभिनय की वजह से तो जानी ही जाती है, इस फिल्म में महेश की मराठी मंडली के तमाम कलाकारों ने अद्भुत अभिनय किया है। संजय नार्वेकर इसी फिल्म में पहली बार डेढ़ फुटिया के रोल में नजर आए और संजय दत्त के साथ बनी उनकी केमिस्ट्री ने फिल्म को बहुत फायदा पहुंचाया। इसके अलावा नम्रता शिरोडकर, परेश रावल और मोहनीश बहल ने भी बढ़िया काम किया। लेकिन, जो कलाकार इस फिल्म में संजय दत्त पर भी भारी पड़ा, वह रहीं रीमा लागू। मां के किरदार में जो तड़प, जो वेदना और जो लाचारी रीमा लागू ने परदे पर दिखाई, वैसे मां के किरदार हिंदी सिनेमा में गिनती के देखने को मिले हैं। फिल्म में संजय दत्त और रीमा लागू के सारे सीन गजब के हैं लेकिन क्लाइमेक्स के अलावा जो एक सीन लोगों को अब भी याद है, वह था पचास तोले वाला सीन। बेटा मां को अपनी तरक्की सोने की कमाई से गिनवा रहा है और मां सोच रही है कि बेटे ने पैसा तो खूब कमाया पर बेटा कहलाने का हक खो दिया। फिल्म के संवाद लिखे थे इम्तियाज हुसैन ने और इसके संवाद बरसों तक लोगों को जुबानी याद रहे।

गाने हिट, संगीत सुपरहिट

फिल्म 'वास्तव- द रियलिटी' में संजय दत्त, रीमा लागू और दूसरे तमाम मराठी अभिनेताओं ने तो रंग जमाने लायक काम किया ही। जतिन-ललित और राहुल रानाडे के तैयार किए फिल्म के म्यूजिक ने भी इसका खूब साथ दिया। महेश मांजरेकर की मराठी मित्र मंडली ने यहां भी खूब कमाल दिखाया। राहुल रानाडे, रवींद्र साठे और अतुल काले ने विनोद राठौड के साथ गायिकी का मैदान संभाला। फिल्म के लिए रिकॉर्ड की गई आरती आज भी महाराष्ट्र के कोने कोने में उसी लय में गाई जाती है। फिल्म के कुछ गाने उस समय काफी हिट हुए। प्रीता मजूमदार का गाया आइटम सॉन्ग 'जवानी से अब जंग हो गई..' ने खूब तालियां बटोरीं। लेकिन, असल हिट या कहिए कि सुपरहिट गाना जो फिल्म का रहा वो था सोनू निगम और कविता कृष्णमूर्ति का गाया गाना, 'मेरी दुनिया है तुझमें कहीं...'

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चलते चलते...

और, चलते चलते एक दिलचस्प किस्सा फिल्म की शूटिंग का उस दिन का, जब महेश मांजरेकर अपने गुस्से पर काबू नहीं रख सके। महेश मांजरेकर ने बाद में सार्वजनिक रूप से अपनी इस हरकत के लिए माफी भी मांगी। हुआ यूं कि फिल्म के क्लाइमेक्स का जो सीन है जिसमें रघु अपनी मां से खुद को मार देने के लिए कहता है, उससे पहले रीमा लागू पर मांजरेकर खूब गुस्सा हुए। हुआ यूं कि शूटिंग में थोड़ा समय था तो रीमा लागू जाकर मेकअप लगाए लगाए ही सो गईं। शॉट रेडी हुआ तो रीमा लागू को बुलाया गया। वह आईं तो जाहिर था कि सो जाने की वजह से उनकी आंखें सामान्य नहीं दिख रही थी। इसी बात पर महेश मांजरेकर उन पर पूरी यूनिट के सामने बरस पड़े। रीमा लागू ने उस वक्त कुछ नहीं कहा और जाकर फिर से मेकअप कराया और सीन की शूटिंग कर दी। बाद में महेश मांजरेकर को एहसास हुआ कि उनसे गलती हो गई है। रीमा शायद थकान की वजह से सो गई थीं। महेश ने बाद में सार्वजनिक रूप से माना कि उन्हें उस दिन गुस्सा नहीं होना चाहिए था। फिल्म 'वास्तव- द रियलिटी' की शोहरत दक्षिण भारत तक पहुंची और इस फिल्म का साल 2006 में तमिल रीमेक भी बना, फिल्म 'डॉन चेरा' के नाम से।

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