Mumbai.मुंबई: ऋतुपर्णो घोष एक निर्देशक, कहानीकार, लेखक का नाम नहीं बल्कि एक ‘जॉनर’ का नाम है, इंटलैक्चुअल सिनेमा वाला! सत्यजीत रे के निधन बाद शून्यता आ गई थी. उस वैक्यूम को भरने का काम कुछ अलग सोच के मालिक ऋतुपर्णो ने किया. ‘हीरेर अंगूठी’ से शुरू हुआ सफर चोखेरबाली, रेनकोट से होता हुआ चित्रांगदा तक शानदार रहा. एक ऐसा रचानाकार जिसे खुद को दीदी या दादा कहलाने से फर्क नहीं पड़ा, महिलाओं की तरह बनना संवरने में शर्मिंदगी नहीं महसूस की और अपनी सेक्सुएलिटी को लेकर कुछ नहीं छिपाया. 31 अगस्त 1963 को इनका जन्म हुआ था.
1993 से 2013 के छोटे से वक्फे में इस हुनरमंद ने गजब की फिल्में बनाईं. बंगाली में, हिंदी में और अंग्रेजी में भी. अपनी कहानी -पटकथा लिखते भी थे और उसे स्क्रीन पर उतारते भी थे. ऐसी दीदादिलेरी की रबिन्द्रनाथ ठाकुर की ‘चोखेरबाली’ और ओ हेनरी की ‘द गिफ्ट ऑफ मैगी’ को अपने अंदाज में पर्दे पर उतारा. एक इंटरव्यू में चोखेरबाली को लेकर अपनी सोच जाहिर की. बताया कि एंड उन्होंने वैसा नहीं रखा. इसकी प्रेरणा भी टैगोर के उस कथन से ली जो उन्होंने चोखेरबाली के प्रकाशन के बाद कही थी. महान रचनाकार ने 1910 में कहा था- ‘जब से चोखेर बाली प्रकाशित हुई है, मुझे हमेशा इसके अंत पर अफसोस होता है. इसके लिए आप मेरी निंदा कर सकते हैं.’
खैर, डॉक्युमेंट्री बनाने वाले पिता सुनील घोष की इस संतान ने बड़ी दिलेरी दिखाई. ऋतुपर्णो सिनेमा में रमे थे. रेनकोट के गीत गुलजार से लिखाए तो कुछ में अपना हुनर भी दिखाया. हिंदी न लिखना जानते थे न पढ़ना इसलिए जो लिखा वो भी मैथिली भाषा में. साक्षात्कार में जब उनसे पूछा गया कि रेनकोट में गुलजार ने सारे गाने लिखे इस पर आपका क्या कहना है. उन्होंने कहा, “मथुरा नगरपति कहै तुम गोकोली जाओ मैंने लिखा; पिया तोरा कैसा अभिमान मेरा है और अकेले हम नदिया किनारे भी मेरा है. इन सभी के बोल मैंने लिखे हैं. और यह हिंदी नहीं है, मैं हिंदी नहीं जानता, मैं हिंदी में नहीं लिखता. यह मैथिली है, जो एक संकुल भाषा है, संस्कृत, थोड़ी-सी हिंदी और ब्रजभाषा का मिश्रण है.” इकोनॉमिक्स ग्रैजुएट ने अपने पंखों को कभी बांध कर नहीं रखा. एड फिल्मों के लिए काम किया तो बांग्ला पत्रिका को भी एडिट किया. खुद को बड़ी सहजता से एक्सेप्ट भी किया. रबिबार के संपादकीय में खुद को ‘जोकर’ तक बताने से गुरेज नहीं किया. 26 फिल्में की और एक दो नहीं बल्कि 12 नेशनल अवॉर्ड अपने नाम किए. 30 मई 2013 को मात्र 49 साल में ऋतुपर्णो का निधन हो गया.
वो वैक्यूम जो रे, रित्विक घटक के जाने से पैदा हो गया था वो एक बार फिर क्रिएट हो गया.