'कालीन भइया' बनकर सबके दिलों पर छाए पंकज त्रिपाठी ने कहा- 'असली दुनिया अब काल्पनिक लगती है'...जानें क्यों
Mirzapur 2: 'गैंग ऑफ़ वासेपुर' से लोगों की निगाह में आए पंकज त्रिपाठी अब 'कालीन भइया' बनकर सबकी ज़ुबान पर हैं।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Mirzapur 2: 'गैंग ऑफ़ वासेपुर' से लोगों की निगाह में आए पंकज त्रिपाठी अब 'कालीन भइया' बनकर सबकी ज़ुबान पर हैं। उनकी अदायगी को लेकर दर्शकों में एक अलग किस्म का उत्साह देखा जा रहा है। इसके पीछे एक बड़ी वज़ह है कि बिहार में पले बड़े पंकज त्रिपाठी आज भी जमीन से जुड़े हुए हैं। दैनिक जागरण डॉट काम से हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि उनके घर में बातचीत मातृभाषा में होती है। हालांकि, उन्हें लगता है कि असल दुनिया में अब लोग काल्पनिक हो गए हैं।
आम लोगों के बीच अपनी मातृभाषा ख़ासकर अवधी- भोजपुरी को लेकर शर्मिंदगी के विषय पर पंकज त्रिपाठी कहते हैं- 'आज कल हमारा रियल वर्ल्ड काफी फिक्शनल लगता है। वहीं, हम फिक्शन वर्ल्ड में रियलिटी खोज़ते हैं। फिक्शन दुनिया में हम रियलिज़्म को हासिल करना चाहते हैं। हमारे ऊपर इतना दबाव है, कि लगाता है कि अग्रेंजी भाषा नहीं है, अंग्रेजी क्लास है। हमारे यहां (अवधी- भोजपुरी) लोगों को लगता है कि अगर हम अपनी मातृभाषा में बात करें, तो कहीं पिछड़े ज्ञात ना हो जाएं। मैं बार-बार कहता हूं कि जो लोकल है, वही ग्लोबल है। अगर हमें ग्लोबल होना है, तो अपनी लोकल चीज़ों को संरक्षित करें और उस पर प्राउड फ़ील करें।'
भाषा को लेकर पंकज त्रिपाठी ने बताया कि वह अब भी भोजपुरी में बात करते हैं। उनके बच्चे ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया उनकी भाषा जानती है। क्योंकि वह बात-बात में भोजपुरी में बात करने लगते हैं।
'मिर्ज़ापुर' जैसी यूपी और बिहार या छोटे शहरों की कहानी को पर्दे पर आने को लेकर पंकज कहते हैं- 'पिछले 5-10 सालों में अनुराग कश्यप, इम्तियाज़ अली, तिग्मांशु धूलिया और राम गोपाल वर्मा जैसे लोग आए। इनके राइटर भी छोटे शहरों से आए। ख़ासकर बैंडिट क्वीन फ़िल्म से काफी संख्या में लोग आए, जो दिल्ली में थिएटर करते थे। या हजारीबाग और इलाहाबाद के रहने वाले लोग आए, जो छुट्टियों में बिजनौर और सिवान जैसे शहरों में नानी-मौसी के घर जाया करते थे। पहले मेकर थे, जो छुट्टियों में स्विटजरलैंड जाते थे, उनकी मौसी वहां रहती थी। ऐसे में छोटे शहर के स्टोरी टेलर आए, तो कहानी भी छोटे शहरों की आ गई।'