पुनर्जन्म पर स्वर कोकिला ने कहीं थी, 'लता मंगेशकर तो नहीं बनना चाहती'
स्वर सरस्वती लता मंगेशकर ने दुनिया को अलविदा कह दिया है
स्वर सरस्वती लता मंगेशकर ने दुनिया को अलविदा कह दिया है। बॉलीवुड सितारे उनसे जुड़ी अपनी यादें साझा कर रहे हैं। छोटी उम्र से लता मंगेशकर ने गाना शुरू कर दिया था। बचपन में वह अपने पिता के साथ कार्यक्रमों में जाती थीं और स्टेज पर गाया करती थीं। गायिकी की दुनिया में वह जिस ऊंचाई तक पहुंचीं वह किसी और के लिए मुश्किल है क्योंकि लता मंगेशकर तो एक ही हैं। क्या आप जानते हैं कि उनका लोहा भले ही हर कोई मानता हो लेकिन जब लता मंगेशकर से पूछा गया कि वह अगले जन्म में क्या बनना चाहती हैं तो उन्होंने यह कहकर सभी को हैरान कर दिया कि कम से कम लता मंगेशकर तो नहीं बनना चाहतीं।
बचपन में शरारती थीं लता
लता मंगेशकर का यह किस्सा दिग्गज लेखक और गीतकार जावेद अख्तर ने बताया था। जावेद अख्तर कहते हैं कि इसकी एक वजह शायद उनके बचपन का संघर्ष था। उन्होंने जब यह बात कही होगी तब वह अपनी उन यादों के साथ रही होंगी। क्लासिक लीजेंड्स नाम के अपने शो में जावेद अख्तर कहते हैं कि 'पांच भाई-बहनों में लता मंगेशकर सबसे बड़ी थीं। वह बचपन से बहुत शरीफ लेकिन शरारती थीं। उनके पिता म्यूजिक सिखाते थे लेकिन ये बच्ची बैठती ही नहीं थी तो सीखें कैसे। बच्ची सामने भले ही नहीं बैठती थी लेकिन जैसे वह हवा से यह सब सीख रही थी। एक बार लता मंगेशकर के पिता जब कमरे से चले गए तो उनका स्टूडेंट्स रियाज कर रहा था जो कि थोड़ा गलत गा रहा था तब 7-8 साल की लता मंगेशकर उस स्टूडेंट्स को सिखाती हैं कि ये ऐसे गाया जाएगा। यह देखकर दीनानाथ मंगेशकर अपनी पत्नी से कहते हैं कि हीरा तो यहां है।'
छोटी उम्र में बड़ी जिम्मेदारी
दीनानाथ मंगेशकर ने 3 मराठी फिल्में बनाईं जो सफल नहीं हो पाईं। दोबारा उन्होंने फिर से कंपनी को चलाने की कोशिश की लेकिन बात जमी नहीं। उस जमाने में थियेटर्स एक जगह से दूसरी जगह जाया करते थे तब उसमें काम करने वाले बच्चे भी इधर से उधर जाया करते थे। उसी बीच परिवार पूना आ गया। दीनानाथ की तबीयत ठीक नहीं रहने लगी। 12 साल की उम्र में लता मंगेशकर को कॉन्सर्ट में मौका मिल जाता था जिससे जैसे-तैसे परिवार का गुजारा चल रहा था। दीनानाथ मंगेशकर का निधन हो गया और 14 साल की उम्र में लता मंगेशकर पर परिवार की पूरी जिम्मेदारी आ गई।
मराठी गानों से शुरू किया करियर
जावेद अख्तर कहते हैं कि 'एक बार लता मंगेशकर ने बताया कि कैसे उन्हें यह सब एक्टिंग करना पसंद नहीं आता था। कोई आईब्रो ठीक करने के लिए कहता तो कोई बाल सही कर रहा होता था। उन्हें ऐसे लगता कि जैसे कोई उनकी बेइज्जती कर रहा हो और वह घर आकर रोती थीं। मगर परिवार को संभालना था तो कोई रास्ता नहीं था। 1943 में उन्हें मराठी गाने मिलने लगे। इसी साल उन्हें पहला हिन्दी पहला गाना मिल गया। मंगेशकर परिवार मुंबई आ गया। थोड़ा-बहुत काम लता मंगेशकर को मिलना शुरू हो गया।'
'लता जी का कहना है कि मुझे अनिल बिस्वास ने सिखाया कि माइक पर कैसे गाना है। काम भले ही मिल गया था लेकिन ऐसा भी नहीं था जिंदगी बदल गई। उन दिनों वह लोकल ट्रेन से घर से स्टूडियो जाती थीं।'
हर लाइन पर देती थीं ध्यान
जावेद अख्तर से लता मंगेशकर ने अपने गानों को लेकर कहा था, 'जब मैं गाना लेती हूं तो मैं उसके वर्ड्स पर ध्यान देती हूं कि ये गाना कह क्या रहा है। इस गाने का मूड क्या है। ये जो लाइन लिखी गई है इसका मतलब क्या है? मैं किस वर्ड पर स्ट्रेस करूं।' जावेद अख्तर बताते हैं कि 'फिल्म सिलसिला में मेरा लिखा गाना ये कहां आ गए हम, इस गाने में एक लाइन है 'हुई और भी मुलायम दिन शाम ढलते ढलते'। किसी और सिंगर को यह गाना दिया जाता तो वह भी यही गाता लेकिन लता मंगेशकर को जो चीज लता मंगेशकर बनाती है वह है उस लाइन को जिस तरह अदा किया। वह कोई और नहीं कर सकता।'
खुद के गाने नहीं सुनती थीं
जिनके गाने दुनियाभर में प्रशंसक सुनते हैं क्या आप जानते हैं कि लता मंगेशकर अपना गाना नहीं सुनती थीं। बॉलीवुड हंगामा के साथ एक इंटरव्यू में लता मंगेशकर ने बताया, इसकी वजह थी कि अगर वह ऐसा करेंगी तो उन्हें अपने ही गाने में कई गलतियां मिलेंगी। ऐसे में वह अपना गाना नहीं सुनती थीं।