नाटो ने लिथुआनिया को दी धमकी, जानिए क्या है पूरा मामला

इस सैन्य अड्डे से परमाणु मिसाइल हमले का अभ्यास भी सीधे तौर पर नाटो को चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।

Update: 2022-06-21 11:07 GMT

यूक्रेन और रूस जंग के बीच उत्‍तर अटलांटिक संधि संगठन नाटो के बीच तनाव बढ़ता ही जा रहा है। रूस के विदेश मंत्री ने नाटो सदस्‍य देश लिथुआनिया से मांग की है वह कैलिनिनग्राद पर खुलेआम लगाए गए शत्रुतापूर्ण प्रतिबंधों को तत्‍काल हटाए। खास बात यह है कि रूस की यह चेतावनी ऐसे समय आई है, जब लिथुआनिया ने नाटो देशों से चौतरफा घिरे रूस के परमाणु सैन्‍य क‍िले कैलिनिनग्राड को रेल के जरिए जाने वाले सामानों पर प्रतिबंध लगा दिया है। यूरोपीय संघ और नाटो देशों पोलैंड तथा लिथुआनिया के बीच बसा रूस का कैलिनिनग्राड शहर रेल के जरिए रूस से सामान मंगाता है। यही नहीं कैलिनिनग्राड के गैस की सप्‍लाइ भी लिथुआनिया के जरिए होती है। बाल्टिक देश लिथुआनिया ने पिछले सप्‍ताह ऐलान किया था कि वह रूप पर लगे यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों की सूची में शामिल सामानों को रेल के जरिए कैलिनिनग्राड भेजे जाने को प्रतिबंधित करने जा रहा है।

कलिनिनग्राद का इतिहास 800 साल पुराना
दरअसल, कोएनिग्सबर्ग को 1255 में ट्यूटनिक नाइट्स ने स्थापित किया था। यह जगह बाद में जर्मन सेना के नियंत्रण में चली गई थी। यह दार्शनिक इमैनुएल कांट के लिए उतनी ही प्रसिद्ध है। कांट ने कोएनिग्सबर्ग में अपना पूरा जीवन व्यतीत किया। यह जगह प्रसिद्ध दार्शनिक हन्ना अरेंड्ट से भी जुड़ी हुई है। यूरोप के बाकी हिस्सों की तरह यहां भी युद्ध और शांति ने स्थानीय जातीय संरचना और राजनीतिक सीमाओं को खत्म कर दिया। डेंजिग के मुक्त शह के निर्माण और पोलिश गलियारे की स्थापना के साथ प्रथम विश्व युद्ध के बाद पूर्वी प्रशिया जर्मनी से अलग हो गया।

रूस ने नाजी जर्मनी को हराकर कलिनिनग्राद पर किया अधिकार

द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक यह हिस्सा जर्मनी के अधीन बना रहा। सोवियत रेड आर्मी ने जर्मनी को हराकर इस हिस्से पर अपना कब्जा जमा लिया था। बाद में पोलैंड और सोवियत संघ के बीच इस क्षेत्र के विभाजन पर याल्टा सम्मेलन में सहमति बनी। इसके बाद दोनों देशों ने 1945 में पोस्टडैम में बिग थ्री (रूस, अमेरिका और ब्रिटेन) की बैठक में औपचारिक मान्यता दे दिया। कोएनिग्सबर्ग शहर और उसके आस-पास का क्षेत्रों को स्टालिन ने रूस का हिस्सा बना लिया। बाद में स्टालिन ने पोसिडियम आफ सुप्रीम सोवियत के चेयरमैन और सोवियत यूनियन के हेड आफ स्टेट मिखाइल कालिनिन के सम्मान में इसका नाम बदल दिया।

जर्मन को खदेड़कर रूसियों को बसाया गया

कलिनिनग्राद में जर्मन, पोलिस, लिथुआनियाई और यहूदियों की आबादी ज्यादा थी। इसे खतरा मानते हुए स्टालिन ने इस क्षेत्र से जर्मनों को खदेड़ना शुरू कर दिया। इसके बाद पूरे इलाके में रूसी लोगों को बसाने के लिए सोवियत संघ ने विशेष अभियान चलाया। इस दौरान कलिनिनग्राद में जर्मन विरासत के सभी निशान मिटाने की कोशिश की गई। साम्यवाद के पतन के बाद यह क्षेत्र अपनी सोवियत विरासत से उबर गया, 1996 में रूसी सरकार से मिल रही विशेष आर्थिक पैकेज से लाभान्वित होता रहा। हाल के तनाव के दौरान कलिनिनग्राद का रणनीतिक महत्व काफी ज्यादा बढ़ गया है।
नाटो के खिलाफ रूस का महत्वपूर्ण सैन्य अड्डा है कलिनिनग्राद
रूस के लिए कलिनिनग्राद एक ऐसा सैन्य अड्डा है, जो पूरे यूरोप पर भारी पड़ सकता है। रूस इस जगह से बाल्टिक सागर में यूरोपीय और नाटो देशों की आवाजाही को पूरी तरह से रोक सकता है। अगर नाटो के साथ भविष्य में कोई युद्ध होता है तो कलिनिनग्राद रूसी अभियानों के लिए एक महत्वपूर्ण लांचपैड होगा। इसलिए रूसी सेना कलिनिनग्राद में अपनी सैन्य शक्ति को काफी तेजी से बढ़ा रही है। यूक्रेन में जारी स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन के दौरान इस सैन्य अड्डे से परमाणु मिसाइल हमले का अभ्यास भी सीधे तौर पर नाटो को चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।


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