द नन 2 को एक सक्सेसफुल फ्रैंचाइजी बनाने में नाकाम रहे मेकर्स, यहाँ फिल्म का पूरा रिव्यु
2018 में रिलीज हुई फिल्म 'द नन' का सीक्वल 'द नन 2' आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। इस फिल्म की कहानी वहीं से शुरू होती है जहां फिल्म 'द नन' की कहानी खत्म होती है। फर्क सिर्फ इतना है कि 'द नन' का निर्देशन कोरिन हार्डी ने किया था और इस बार निर्देशन की जिम्मेदारी माइकल चाव्स के कंधों पर है, जो इससे पहले 'द कॉन्ज्यूरिंग: द डेविल मेड मी डू इट' और 'द कर्स ऑफ ला' का निर्देशन कर चुके हैं। 'द नन 2' को एक सफल फ्रेंचाइजी के तौर पर भुनाने की कोशिश की गई है। लेकिन इस फिल्म को देखकर यह अहसास ही नहीं होता कि आप किसी सफल फिल्म की फ्रेंचाइजी देख रहे हैं।
,फिल्म 'द नन 2' की कहानी पहली फिल्म की घटनाओं के चार साल बाद, साल 1956 में रोमानिया में शुरू होती है। फिल्म की कहानी को पहले भाग से जोड़ने के लिए दिखाया गया है कि मौरिस (जोनास ब्लोक्वेट) राक्षसी शक्ति नन वलाच (बोनी आरोन्स) के पास है। मौरिस के माध्यम से वह मैकगफिन को ढूंढने के लिए लोगों को मार रही है। मामले की जांच के लिए सिस्टर आइरीन (ताइसा फार्मिगा) और सिस्टर डेबरा (स्टॉर्म रीड) को फ्रांस के एक बोर्डिंग स्कूल में भेजा जाता है। जहां उनका सामना वालक से हुआ। दोनों सेंट लुसी की आंखों के अवशेष खोज रहे हैं। इस अवशेष में आइरीन और वालक दोनों के लिए अपराजेय शक्तियां हैं। पूरी फिल्म की कहानी बोर्डिंग स्कूल में ही खत्म हो जाती है. फिल्म की कहानी ऐसे मोड़ पर खत्म होती है कि ऐसा लगता है मानो हम 90 के दशक की हिंदी सिनेमा की कोई आम हॉरर फिल्म देख रहे हों।
कहने को तो 'द नन 2' एक हॉरर फिल्म है, जिसे देखने के बाद दर्शकों की रूह कांप जाएगी, लेकिन पूरी फिल्म में एक भी ऐसा पल नहीं था, जिससे दर्शक डरे हों। फिल्म की कहानी भी काफी उलझी हुई थी। दिमाग पर बहुत जोर देकर सोचना पड़ता है कि अगर ऐसी कोई घटना घटी होती तो इसके पीछे निर्देशक की क्या सोच रही होगी? जब किसी भी फिल्म को देखते समय ऐसी अनुभूति होने लगती है तो फिल्म देखने की उत्सुकता धीरे-धीरे खत्म हो जाती है। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भी ऐसा नहीं है कि सुनकर कोई रो पड़े। जबकि हॉरर फिल्मों में सबसे बड़ा खेल होता है बैक ग्राउंड म्यूजिक। फिल्म के कुछ दृश्यों में ट्रिस्टन निबी की सिनेमैटोग्राफी थोड़ी डराने वाली तो नहीं है, लेकिन इतना प्रभाव भी नहीं छोड़ पाती कि दर्शकों को लगे कि वे कोई डरावनी फिल्म देख रहे हैं।
,फिल्म के निर्देशक माइकल चावेस के पास इस फिल्म में खुद को साबित करने का सबसे बड़ा मौका था। लेकिन उनका निर्देशन कौशल, जो 'द कॉन्ज्यूरिंग: द डेविल मेड मी डू इट' और 'द कर्स ऑफ ला लोरोना' जैसी फिल्मों में देखा गया था, इस फिल्म में नहीं देखा गया। भले ही उनकी दोनों फिल्में औसत दर्जे की थीं, लेकिन यह फिल्म थोड़ी बेहतर थी। आम तौर पर किसी फ्रेंचाइजी की कोई भी फिल्म पहली फिल्म से बेहतर होनी चाहिए, लेकिन यह फिल्म पहली फिल्म द नन जितनी अच्छी नहीं है। उनकी सबसे बड़ी कमजोरी इस फिल्म में बोनी आरोन्स को वैलाच के रूप में ठीक से इस्तेमाल न कर पाना है। इस किरदार को प्रीक्वल में जो महत्व मिला था, वह इसमें नहीं दिया गया। ये इस फिल्म का सबसे कमजोर पहलू है। बोनी आरोन्स वैलाच को मुख्य भूमिका में लेकर एक बहुत अच्छी हॉरर फिल्म बना सकते थे, लेकिन फिल्म की कहानी कहीं और भटकती है।
,इस फिल्म के प्रीक्वल में जिस तरह से तैसा फार्मिगा, जोनास ब्लोकेट की जबरदस्त परफॉर्मेंस देखने को मिली थी, वैसी परफॉर्मेंस इस फिल्म में देखने को नहीं मिली। लेकिन ताइसा फार्मिगा ने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय करने की कोशिश की है। खासकर फिल्म के इमोशनल सीन में उनके चेहरे की मासूमियत दिल जीत लेती है। नन वैलैक के रूप में बोनी आरोन्स की भूमिका प्रभावशाली है, वह दर्शकों को काफी हद तक डराने में सफल रहती हैं, लेकिन फिल्म में उन्हें ज्यादा स्क्रीन टाइम नहीं मिलता है। फिल्म में बाकी कलाकारों की एक्टिंग भी औसत दर्जे की थी। वैसे तो सभी कलाकारों ने अपने किरदार के साथ न्याय करने की कोशिश की है, लेकिन अगर फिल्म का बाकी हिस्सा कमजोर हो तो किसी भी कलाकार का अभिनय निखर नहीं पाता।