डेब्यू डायरेक्टर के तौर पर माधवन ने कर दिया कमाल, नम्बी नारायण को सच्चा उपहार है मूवी
ये अलग बात है कि पहली मूवी होने के नाते माधवन फिल्म के सींस पर कैंची नहीं चला पाए, सो उसके चलते फिल्म थोड़ी लम्बी जरूर हो गई है.
माधवन, सिमरन, रजित कपूर, राजीव रवीन्द्रनाथन, सैम मोहन, कार्तिक कुमार, अमान, दिनेश प्रभाकर, श्रीराम पार्थसारथी आदि
डायरेक्टर: माधवन
अगर फिल्म क्राफ्ट के नजरिए से ना देखें तो आप इस फिल्म की कहानी से भावुक तौर पर जुड़ जाते हैं. आपके अंदर से ढेर सारा गुस्सा, आदर, आंसू, इमोशंस, सम्मान, राष्ट्रप्रेम उफन उफन कर आने लगता है और खुद से ही सवाल पूछते हैं कि हमारे ही देश में ये हो रहा था और हमें ही पता नहीं था. यही सवाल हैं जो इस मूवी की नैया पर लगाएंगे. माधवन ने पहली बार फिल्म डायरेक्शन में हाथ आजमाते हुए इस मूवी को इस तरह इमोशंस में पिरोया है कि आप भी कहेंगे कि कमाल कर दिया है. ये अलग बात है कि आपको लगता है कि मूवी कम से कम 20 मिनट छोटी हो सकती थी.
इसरो साइंटिस्ट रहे नम्बी नारायण पर बनी फिल्म
ये कहानी सच्ची है, कहानी देश के एक बड़े वैज्ञानिक नम्बी नारायण (माधवन) की, जो विक्रम साराभाई से लेकर डॉक्टर कलाम और सतीश धवन जैसे मशहूर वैज्ञानिकों के साथ ना केवल काम कर चुका था, बल्कि एक तरह से उन्हीं के कद के आसपास था. लेकिन कुछ शातिर दिमाग लोगों ने उन्हें ऐसे दुष्चक्र में फंसाया कि उस पर थर्ड डिग्री इस्तेमाल हुई, पाकिस्तान को रॉकेट टेक्नोलॉजी बेचने का आरोप लगाकर जेल भेज दिया गया, उसे देशद्रोही कहकर लोगों ने उसके घर पर पत्थर मारे, कई सालों तक वो कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाता रहा और एक दिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे निर्दोष करार दिया. जिसके बाद वर्ष 2019 में मोदी सरकार ने उसे पदमभूषण से सम्मानित किया.
शाहरुख खान ने निभाया सूत्रधार का रोल
ये मूवी हमें नम्बी नारायण के अतीत में ले जाती है, जिसके सूत्रधार बनते हैं शाहरुख खान, जो अपने ही रोल में हैं और नम्बी नारायण का एक टीवी चैनल के लिए इंटरव्यू करके उनकी सारी कहानी जानते हैं. नम्बी नारायण इसरो में वैज्ञानिक थे, उनको प्रिंसटन यूनीवर्सिटी में रिसर्च करने का मौका मिलता है और वो सॉलिड की बजाय लिक्विड और क्रायोजेनिक पद्धति से रॉकेट इंजन को विकसित करना चाहते हैं. कैसे वो बहुत बड़े अमेरिकी साइंटिस्ट को रिसर्च गाइड बनने के लिए तैयार करते हैं, फिर नासा का इतना बड़ा ऑफर ठुकराकर देश सेवा के लिए वापस भारत आते हैं. फिर फ्रांस के रॉकेट प्रोजेक्ट में मदद करने के बहाने उनसे टेक्नोलॉजी सीखकर अपना खुद का इंजन बनाते हैं. फिर रूस से क्रायोजेनिक इंजन की डील करते हैं, लेकिन बदले में आधे पार्ट्स ही मिलने पर अपने क्रायोजेनिक इंजन बनाने में जुट जाते हैं, वो सभी बड़ी खूबसूरती से माधवन ने फिल्माया है.
देश को रॉकेट साइंस में आगे बढ़ाया
वैज्ञानिक विषय पर बनी फिल्म को भी उन्होंने वैज्ञानिकों के बीच की चुहलबाजी से बोर होने से बचा लिया है. एक शानदार उपहार नम्बी नारायण और उनके परिवार व उनके चाहने वालों को इस मूवी के जरिए दिया है. आम दर्शकों को तो पहली बार पता चलेगा कि नम्बी नारायण कौन थे और इस देश के लोगों पर उनके कितने अहसान हैं, कैसे कैसे उनको रॉकेट टेक्नोलॉजी ना जाने किस किस देश से लाकर भारत को दी. माधवन के लिए चुनौती थी कि उस दौर की पॉलटिक्स, खुफिया एजेंसियां, साइंटिस्ट्स की दुनिया और 1969 से लेकर आज तक के माहौल को वो भी कई देशों में फिल्माना था. माधवन इसमें मोटे तौर पर इसमें खरे उतरे हैं. खासतौर पर इमोशंस को उन्होंने बखूबी अपने कैमरे में कैद किया है और उसे पहले लिखा भी बेहतरीन है.
आर माधवन का अब तक बेहतरीन रोल
यूं आपको हिंदी पट्टी के रजित कपूर जैसे गिनती के सितारे ही इस मूवी में देखने को मिलेंगे, ज्यादातर साउथ के ही हैं. फिर भी धीरे धीरे जैसे जैसे आप मूवी के साथ जुड़ते चले जाएंगे, उसके किरदारों को भी अपनाते, पहचानते चले जाएंगे. आपको लगेगा कि वो आपकी लड़ाई लड़ रहे हैं और शाहरुख खान तो हैं ही. सारे ही कलाकारों ने अच्छी एक्टिंग की है, माधवन का तो अब तक का सबसे बेहतरीन रोल है ही, उनकी पत्नी के रोल में सिमरन, उनके दोस्त के रोल में राजीव रवीन्द्रनाथन और सैम मोहन ने भी अपनी छाप छोड़ी है.
हालांकि आम दर्शक को ये स्पष्टता नहीं मिलती कि उन्हें फंसाया क्यों गया था. ना ही हाल ही में तीस्ता सीतलवाड़ के साथ गिरफ्तार किए गए पूर्व आईबी अधिकारी आरबी श्रीकुमार का नाम लिया गया, जिसने अपने राजनैतिक आकाओं के इशारे पर नम्बी नारायण को इतना टॉर्चर किया था. उस वक्त ये आईपीएस अधिकारी केरल में तैनात था.
ईमानदार वैज्ञानिक के बारे में जानेंगे लोग
बावजूद इसके नम्बी नारायण के साथ जो कुछ हुआ, उनको शायद सुप्रीम कोर्ट के फैसले, मोदी सरकार के पदमभूषण से जितनी खुशी ना मिली हो, उससे ज्यादा इस मूवी को देखने से मिलेगी क्योंकि इस मूवी में बड़ी ईमानदारी से ना केवल उनकी यातनाओं को बल्कि देश के विकास में उनके योगदान और त्याग को बखूबी बड़े परदे पर फिल्माया है और जो आम आदमी तक जाएगा. इसके लिए निसंदेह माधवन और पूरी टीम बधाई की पात्र है. ये अलग बात है कि पहली मूवी होने के नाते माधवन फिल्म के सींस पर कैंची नहीं चला पाए, सो उसके चलते फिल्म थोड़ी लम्बी जरूर हो गई है.