जिंदगी, जिद और जुनून... कैलाश खेर

Update: 2023-06-19 17:02 GMT
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | पद्मश्री कैलाश खेर, अभिनेत्री श्रिया सरन और मीनाक्षी दीक्षित आज 'अमर उजाला संवाद उत्तराखंड' के मंच पर थे। तीनों ने सिनेमा, कला और संस्कृति के विषय पर अपनी बात रखी। कैलाश खेर ने अपने ही अंदाज में कहा, सब जिंदगी जीते हैं, हम जुनून जीते हैं। वहीं, श्रिया सरन ने कहा- युवा शास्त्रीय नृत्य देखें, उसे बढ़ावा दें। मीनाक्षी दीक्षित ने कहा- दक्षिण के सिनेमा में अभिनेत्रियों को बहुत मौके मिल रहे हैं।
मीनाक्षी दीक्षित: मैं प्यारे से शहर रायबरेली से हूं। दुनिया कहां से कहां पहुंच गई। मुझे अभी भी लगता है कि छोटे शहरों को ही हम गहराई से जानते हैं। छोटे शहरों में सड़कें और वहां की सोच नहीं बदली है। अभी भी बच्चों को लोग डॉक्टर या इंजीनियर ही बनाना चाहते हैं। मैंने बहुत साल संघर्ष किया। मेरे अच्छे नंबर आते थे। मुझे भी अलग करना था। कथक सीखना था। मुझे लंबा समय लगा। लंबी लड़ाई लड़ी। माता-पिता को समझाना पड़ा। समाज एक्सेप्ट नहीं करता। मुझे लगता है कि आने वाले समय में यह चीज सुधरे।
श्रिया सरन: शुक्रिया जो आप लोगों को दो और तीन अक्तूबर याद है। ...यह जगह मेरे लिए महत्वपूर्ण है। मेरे पिता देहरादून से हैं। मेरे दादाजी यहां डीएवी कॉलेज में प्रोफेसर थे। मैं 16 साल तक हरिद्वार में ही थी। मेरे लिए यहां आना भावुकता भरा पल है। कई सारी यादें हैं। मेरे लिए यह घर वापसी है। हर गली में एक कहानी छुपी है। जाहिर है कि जो इंसान जिस दुनिया से गुजरा है, उसे ज्यादा समझता है। मैं कथक नृत्यांगना हूं। मुझे लगता है कि युवा शास्त्रीय नृत्य देखें, उसे बढ़ावा दें। मैं चाहूंगी कि शास्त्रीय नृत्व को बढ़ावा मिले। इसके लिए हमें परफॉर्मेंस को मौका देना होगा। मैं दिल्ली में पढ़ती थी तो ब्लाइंड स्कूल में काम करती थी। स्पा भी शुरू किया था, जहां दृष्टि बाधित लोग काम करते थे। सरकारें बहुत कर रही है, लेकिन हमें भी थोड़ा और ध्यान देने की जरूरत है। हम कहीं न कहीं खुद ही अपना काम करना भूल जाते हैं। हमें और संवदेनशील होने की जरूरत है। कैलाश जी का गाना 'एक परिंदा' मैंने संघर्ष के दिनों में बहुत सुना है।
कैलाश खेर: मैं पहले गा ही देता हूं ताकि सबके मन में प्रफुल्लता आया। 'टूटा-टूटा एक परिंदा ऐसे टूटा... अल्लाह के बंदे हंस दे, जो भी हो कल फिर आएगा...'। सभी के जीवन का कोई तो उद्देश्य होता है, कोई एक चाल होती है, उसकी एक पगडंडी होती है। सुविधाएं सबके पास नहीं होते, लेकिन सुविधाएं पाने का सबका सपना होता है। अमर उजाला के साथ भावनात्मक रिश्ता रहा है। हमारी जड़ें एक ही खंड से है, मेरठ। जन्म भले ही दिल्ली का हो, लेकिन जड़ें मेरठ की हैं। बाल्य अवस्था में हम वहीं थे। मेरठ जब आए, तब शहर नहीं देखा था। मेरठ का नाम सुनकर पगला जाते हैं। न्यूयॉर्क में पासपोर्ट रिन्यू हुआ तो उस पर छपा था, 'मेरुत (मेरठ) उत्तर प्रदेश'। लोग बोले- वाह। हमने कहा- यही तो तरक्की है। मेरठ के लोग कहां-कहां जाकर पासपोर्ट रिन्यू करा लेते हैं। जिंदगी सबको मिलती है, जुनून किसी-किसी को महादेव देते हैं। सब जिंदगी जीते हैं, हम जुनून जीते हैं। बाल्य अवस्था से ही फल लगा, जैसे बीज बोया। आपके लक्षण, अवयव, सूत्र बाल्य अवस्था से समझ आ जाते हैं कि ये अलग है। हमारे जैसे क्षेत्र में जिसे हम उत्तर की पट्टी कहते हैं। जब भी मैं ख्वाबों में होता हूं, सबको ये लगता है मैं सोता हूं। ...दुनिया में जो भी अलग है, लगता वो सबको गलत है। हमारे यहां बहुत जल्दी जजमेंट देने का हुनर है। वैसे कहेंगे कि मैं एक्सपर्ट नहीं हूं, लेकिन जजमेंट सबके तैयार रहते हैं। जब पूछें कि गलत क्यों है तो उसका जवाब उनके पास है नहीं। क्योंकि वे कंडीशंड माइंड में जी रहे हैं। मैं एक ऐसा बालक था- शिद्दत से आगे जिद है मेरी, वो भी मुद्दत तलक है। जुनून किसी के यहां पैदा हो जाए तो पगला जाएंगे। हमारे घर वाले भी पगला गए थे। हम बड़ों को भी टोकते थे। जब हमें यह सिखाया जा रहा था कि परिवारों में कैसे शिक्षा दी जाती है। तब कहते हैं कि झूठ नहीं बोलना बच्चे। फिर घरों में फोन आता है कहते हैं कि बोलो पापा घर पर नहीं है। ऐसे में बालक को आप असमंजस में डाल रहे हैं। बालक सोचेगा मन में कि कह तो सब रहे थे कि झूठ नहीं बोलना, लेकिन काम हमसे वही करा रहे हैं। लोग कहते हैं कि भगवान शिव को कैसे गा लेते हैं सुबह से शाम तक। यदि आप कटुता का विष पीना सीख लें तो वह भी गा देंगे जो गूंगे हैं। हमारी चाल-ढाल में हम अमृत सबको देते रहे, कटुता देते रहे। हमारे भी दिल दुखे, उपहास सहते रहे। संगीत में जब तक कामयाब नहीं होते, तब तक इज्जत नहीं मिलती। हमारे क्षेत्र में कामयाब बहुत ही कम लोग होते हैं। यहां कामयाबी की सबकी परिभाषा अलग-अलग है। पॉपुलर हो जाएं, पैसे हो जाएं तो कामयाब कहलाते हैं। हम अतरंगी थे। घर छोड़कर भाग गए कम उम्र में। ऋषिकेश में हमने पंडिताई सीखनी शुरू की। कहीं पुजारी बन जाएंगे। हम यूनिक गाते थे। सब पूछते थे कि क्या गाते हो, फिल्मी या भजन या क्लासिकल। जब गाने हिट शुरू हुए तो लोग कहने लगे कि ये सूफी गाते हैं। तब बाद में समझ आया कि हम जो गाते हैं वो आध्यात्मिक है।
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