Kota Factory 2 Review: पड़ी 'सेक्स एजुकेशन' की कटिया, जीतू भैया फिर नंबर वन

छोटे शहरों और कस्बों में जीवन की धुरी एक अलग ही बिंदु पर टिकी रहती है। ‘ब्रह्मचर्य ही जीवन है, वीर्य नाश ही मृत्यु है’

Update: 2021-09-25 07:58 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। छोटे शहरों और कस्बों में जीवन की धुरी एक अलग ही बिंदु पर टिकी रहती है। 'ब्रह्मचर्य ही जीवन है, वीर्य नाश ही मृत्यु है' जैसी इक्का दुक्का किताब ही पिता से पुत्र को मिलने वाली पूरी 'सेक्स एजुकेशन' होती है। और, ये दिक्कत मेट्रो शहरों में न हो, ऐसा भी नहीं है। नेटफ्लिक्स पर प्रसारित होने वाली सीरीज 'सेक्स एजूकेशन' इसकी सबसे ज्यादा देखी जाने वाली सीरीज में शामिल है और शायद नेटफ्लिक्स की इस बूटी को इसीलिए सौरभ खन्ना और अरुणभ कुमार ने इस बार इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी में लगे किशोरों की कहानी 'कोटा फैक्ट्री' में भी घोल दिया है। राजस्थान का कोटा शहर कंपटीशन की तैयारी करने वाले छात्रों की फैक्ट्री बन चुका है, ये बात 'कोटा फैक्ट्री' के पहले ही सीजन में स्थापित कर दी गई थी। इस बार मामला थोड़ा ऊपर का है और थोड़ा पर्सनल सा भी।

वेब सीरीज 'कोटा फैक्ट्री 2' में मामला रंगीन होती जिंदगी से शुरू होता है। वैभव को उसी माहेश्वरी कोचिंग में प्रवेश मिल गया है जिससे उसके पिता को कभी बेइज्जत करके निकाला गया था। लेकिन, उसको फिजिक्स के टीजर का पढ़ाना समझ नहीं आ रहा है और यहां से कहानी में एंट्री होती है जीतू भैया की। वह सारे छात्र छात्राओं के 'भैया' हैं और सारी छात्राएं उनकी 'दीदी'। छात्र जीवन का मर्ज कैसा भी हो, हर समस्या का इलाज जीतू भैया के पास है। रसमलाई उनकी फेवरिट स्वीट डिश है और उनका नया सपना है अपना खुद का कोचिंग इंस्टीट्यूट खोलना जिसके बाहर लगा बोर्ड फ्लैक्सी का नहीं, बल्कि दीवार पर चुनवाया गया है। यही उनके अगले लक्ष्य के दृढ़ होने की निशानी है। वैभव और वर्तिका की प्रेम कहानी चुंबन तक आ पहुंची है। मीणा को तनाव मुक्त होने का नया 'ज्ञान' मिला है लेकिन वह उसकी आदत न बन जाए तो ये 'सेक्स एजूकेशन' भी जीतू भैया ही देते हैं।

वेब सीरीज 'कोटा फैक्ट्री' की कसौटी इस बार सीक्वेल वाली है। पिछले सीजन में कहानी नई थी। टीवीएफ का ब्रांड था और रिश्तों व भावनाओं की जो परंपरा टीवीएफ ने अपनी वेब सीरीज में 'परमानेंट रूममेट्स' से शुरू की थी, उसके छीटें इस श्वेत श्याम सीरीज पर भी पड़े दिखते थे। टीवीएफ की कहानियों का यही परमानेंट डीएनए है। इस बार जीतू भैया के सामने फंड की चुनौती है। विदेश में बैठे दोस्त से आस भले न पूरी होती दिखे, लेकिन यहां वहां भटकने वाले देसी उनके सिपहसालार बने दिखते हैं। केमिस्ट्री टीचर भी उनकी कहानी में सबक बनकर आती हैं। आईआईटी में रैंक हासिल करने वालों के चेहरे कैसे अखबारों के विज्ञापनों के लिए जुगाड़े जाते हैं, इसकी झलक भी है और झलक इस बात की भी है कि आखिर एक प्रतियोगी परीक्षा पास न कर पाने वालों को दुनिया खत्म सी क्यों दिखने लगती है?

सौरभ खन्ना ने अरुणभ कुमार के साथ मिलकर 'कोटा फैक्ट्री' का जो दूसरा सीजन लिखा है, उसमें बातें करने पर जोर ज्यादा है। कहानी होती नहीं दिखती, किरदार उसे बताते दिखते हैं। ये इस सीजन की सबसे कमजोर कड़ी है। बार बार हस्त मैथुन को सामान्य दैनिक क्रिया बताना या फिर कि माहवारी के दिनों में महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों के आंकड़े कहानी के हिसाब से तो ठीक हैं लेकिन इनका दोहराव बताता है कि दर्शकों को ज्ञान धीरे से सरकाकर दिया जा रहा है। पिछला सीजन अच्छा गया था तो दूसरे सीजन में इसके रचयिताओं ने थोड़ी छूट ले ली है। मामला बॉर्डर लाइन पर आ टिका है। अगले सीजन में टीम को बहुत सतर्क रहना जरूरी है।

'कोटा फैक्ट्री 2' में कुल मिलाकर पांच ही एपोसीड्स हैं और कहानी जहां खत्म होती है, वहां भी दिल धक से रह ही जाता है यानी कि अभी तीसरा सीजन भी आने वाला है। राघव सुब्बू ने एक कमजोर सी पटकथा को अपने सिनेमैटोग्राफर्स श्रीदत्ता नामजोशी और गौरव गोपाल झा के साथ मिलकर आकर्षक बना दिया है। अमित त्रिवेदी का पहले एपिसोड में आया गाना भी हिट है। समय आ गया है कि वेब सीरीज के गानों को अलग से रिलीज करने की कोशिशें और आगे बढ़ाई जानी चाहिए और ये गाने एफएम चैनलों पर भी बजाए जाने चाहिए।

कलाकारों में वेब सीरीज 'कोटा फैक्ट्री 2' के स्टार कलाकार जितेंद्र कुमार ही हैं। जीतू भैया कारोबारी बन रहे हैं तो थोड़ा मोटे भी हो गए हैं। कक्षाओं का ज्ञान तो वह देते ही हैं, इस बार ज्यादा समय वह दूसरों की व्यक्तिगत समस्याएं सुलझाने में देते दिखते हैं। जितेंद्र कुमार के ऊपर ही इस सीरीज को आगे ले जाने की जिम्मेदारी है और मामला सीक्वेल का हो तो जिम्मेदारी दोगुनी भारी हो जाती है। अपने किरदार के बदले हालात के हिसाब से जितेंद्र कुमार ने इस बार अपने हाव भाव अच्छे से बदले हैं। इस बार किरदार की परतें धीरे धीरे खुलती हैं और वैसे ही धीरे धीरे खुलता है जितेंद्र कुमार का अभिनय। जितेंद्र कुमार हिंदी मनोरंजन जगत के साथ हुई वह इंजीनियरिंग हैं, जिसके फॉर्मूले का कॉन्सेप्ट अभी तक मुंबइया फिल्म निर्माताओं के समझ नहीं आया है।

जितेंद्र कुमार के बाद पिछली बार की तरह इस बार भी 'कोटा फैक्ट्री' के दूसरे स्टार कलाकार मयूर मोरे ही हैं। वैभव के किरदार में दूसरे साल में आने वाली गंभीरता आने लगी है। अब वह साथियों की कद्र करता है। उनकी दिक्कते दूर करने की कोशिश करता है। मयूर मोरे आने वाले दिनों का ऐसा कलाकार है जिस पर फिल्म निर्देशकों को अभी से पैनी नजर रखनी चाहिए। रेवती पिल्लई का भोलापन इस बार निखार पर है। एहसास चानना अब दीदी से 'दादी' बनने की राह पर दिखती हैं। रंजन राज और आलम खान का हास्य व्यंग्य सीरीज की सबसे बड़ी राहत है। लेकिन, इस बार शो का सरप्राइज रहे समीर सक्सेना जिन्होंने माहेश्वरी का किरदार निभाया है। पहले दिन के परिचय में बोली गई उनकी एक एक लाइन पिघलते शीशे सी दर्शकों के दिमाग पर गिरती है और पहले ही सीन से वह दर्शकों की नफरत हासिल करने में कामयाब रहे। वेब सीरीज 'कोटा फैक्ट्री 2' छात्र जीवन का कोई जीवन बदल देने वाला अनुभव भले न दिलाती हो लेकिन वीकएंड पर देखने लायक सीरीज ये जरूर है।

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