बडैनी डेन्जोंगपा (अंग्रेज़ी: Danny Denzongpa, जन्म- 25 फ़रवरी, 1948, सिक्किम) प्रसिद्ध भारतीय फ़िल्म अभिनेता हैं। वह भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान 'पद्मश्री' (2003) से सम्मानित कलाकार हैं। सिक्किम में जन्में डैनी भूटिया जाति के हैं एवं भूटिया उनकी मातृभाषा है। अपने शूरुआती दिनों में डैनी नेपाली तथा हिन्दी फ़िल्मों में गायन करते थे। बौद्ध धर्म से ताल्लुक रखने वाले डैनी ने अपने कॅरियर की शुरुआत फिल्म ‘जरूरत’ से की थी। इस फिल्म में डैनी ने अपने शानदार एक्टिंग का चार्म लोगों के दिलों पर छोड़ दिया था। इसके बाद उन्हें कई सुपरहिट फिल्में ऑफर की गईं, जिनमें ज्यादातर में उन्होंने विलेन का किरदार निभाया, लेकिन बाकी के किरदार में भी डैनी जान फूंक देते थे।
परिचय
25 फ़रवरी, 1948 को सिक्किम में जन्में डैनी का पूरा वास्तविक नाम शेरिंग फिंसो डेंग्जोंग्पा है। हिन्दी फिल्मों के दर्शक भले ही उन्हें खलनायक समझते हों, लेकिन उससे भी पहले वे गायक हैं, चित्रकार हैं, लेखक हैं, संगीतकार हैं और माली हैं। पर्यावरण के संरक्षक हैं। पर्यटक हैं। बीयर फैक्टरी के मालिक होकर सफल व्यवसायी हैं। इतने सारे चेहरों से सुकून की जिंदगी जीने वाले वे एक भले इंसान हैं। उनका छोटा-सा नाम है, डैनी (डेंग्जोंग्पा)। यह नाम जया भादुड़ी का दिया हुआ है, जो पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन संस्थान के एक्टिंग कोर्स में उनकी सहपाठी रही हैं।
पारिवारिक जीवन
हिंदी डैनी ने मुंबई के समुद्र किनारे खड़े रहकर उससे बातें करते सीखी है। 'सनम बेवफा' और 'खुदा गवाह' फिल्मों के दौरान उन्होंने उर्दू सीखी। सिक्किम की राजकुमारी गावा से उनका विवाह हुआ है और उनका एक बेटा रिनझिंग और बेटी पेमा है। डैनी अपनी शर्तों पर काम करते हैं, अपने ही अंदाज में जिंदगी जीते हैं। वे रविवार के दिन कभी शूटिंग नहीं करते। मार्च-अप्रैल-मई में अपने परिवार के साथ छुट्टियाँ मनाते हैं।
व्यवसाय
डैनी को 'शोले' फिल्म में गब्बर सिंह का रोल ऑफर हुआ था, मगर फ़िरोज़ ख़ान की फिल्म 'धर्मात्मा' की फिल्म की शूटिंग में व्यस्त होने के कारण उन्होंने मना कर दिया, इसका डैनी को कोई अफसोस नहीं है। डैनी ने लता मंगेशकर, आशा भोंसले और मोहम्मद रफ़ी के साथ युगल गाने गाए हैं। उनकी दो बीयर फैक्ट्रियाँ हैं। उनका भाई इनकी देखरेख करता है। डैनी अपने सेहत के प्रति सबसे अधिक सावधान रहते हैं। उनका तर्क है कि यदि आप बीमार हैं, तो फिर करोड़पति-अरबपति होने का कोई अर्थ नहीं है। घुड़सवारी के शौकीन डैनी ने फिर 'वही रात' नाम से एक फिल्म निर्देशित की थी। बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिटने के बाद उन्होंने दोबारा डायरेक्टर के घोड़े पर सवार होने से तौबा कर ली।
कॅरियर
डैनी ने अपना फिल्म करियर नेपाली फिल्म 'सैइनो' से शुरू किया था। बचपन से उनकी इच्छा भारतीय सेना में भर्ती होने की थी। पुणे के आर्म्ड फोर्सेस मेडिकल कॉलेज के लिए उनका चयन भी हो गया था। इसी दौरान फिल्म एंड टीवी इंस्टीट्यूट के एक्टिंग कोर्स में प्रवेश हो जाने से वे वहाँ चले गए। बम्बइया सिनेमा में उन्होंने बी-ग्रेड की फिल्मों से शुरुआत की। पहली फिल्म थी फिल्मकार बी. आर. इशारा निर्देशित 'जरूरत' (1971)। इसके बाद गुलज़ार की फिल्म 'मेरे अपने' मिली। इस फिल्म से डैनी के अंदर बैठे कलाकार को सुकून मिला। लेकिन उन्हें सफलता मिली बी. आर. चोपड़ा की फिल्म 'धुँध' (1973) से।
फ़िल्म 'धुँध'
इस फिल्म के मिलने की कहानी दिलचस्प है। जब डैनी पुणे इंस्टीट्यूट में पढ़ाई कर रहे थे तो चोपड़ा साहब परीक्षक बनकर आए थे। डैनी का अभिनय देखकर वे प्रभावित हुए और भविष्य में कभी फिल्म में ब्रेक देने की बात भी उन्होंने कही थी। फिल्म 'धुँध' की कास्टिंग के दौरान डैनी उनसे मिले। चोपड़ा साहब ने पुलिस इंसपेक्टर का रोल ऑफर किया। मगर डैनी को नायिका के पति का रोल पसंद था। चोपड़ा साहब ने कहा कि पति के रोल के लिए उनकी उम्र छोटी है। डैनी ने दूसरे दिन मेकअप मैन पंढरी दादा से उम्रदराज पति का गेटअप बनवाया और सीधे चोपड़ा साहब के सामने जाकर हाजिरी दी। डैनी का फौरन सिलेक्शन हो गया। इस तरह 'धुँध' फिल्म में एक कुंठित, विकलाँग और लाचार पति के रोल को दर्शकों ने बेहद पसंद किया। खासतौर पर उनके द्वारा कैमरे की ओर फेंकी गई प्लास्टिक की प्लेट वाले सीन पर सिनेमाघरों में देर तक तालियाँ बजाई गईं। यह प्लेट फेंकने वाला सीन डैनी के दिमाग की उपज थी। इस फिल्म ने उन्हें स्टार विलेन का दर्जा दिलाया।
प्रमुख फ़िल्में
मेरे अपने (1971)
धुँध (1973)
चोर मचाए शोर (1974)
खोटे सिक्के (1974)
काला सोना (1975)
लैला मजनू (1976)
फकीरा (1976)
कालीचरण (1976)
संग्राम (1976)
लाल कोठी (1978)
अब्दुल्लाह (1980)
काली घटा (1980)
बुलंदी (1981)
कानून क्या करेगा (1984)
अंदर बाहर (1984)
युद्ध (1985)
जवाब (1985)
ऐतबार (1985)
प्यार झुकता नहीं (1985)
खोज (1988)
यतीम (1989)
सनम बेवफा (1991)
अग्निपथ (1990)
हम (1991)
खुदा गवाह (1992)
घातक (1996)
चाइना गेट (1998)
पुकार (2000),
16 दिसम्बर (2002)
रोबोट (2010)
बैंग बैंग (2014)
बेबी (2015)
नाम शबाना (2017)
फकीरा मचाए शोर
'धुँध' फिल्म के बाद डैनी को उसी तरह के अनेक रोल ऑफर किए गए, लेकिन प्रत्येक ऑफर पर सोच-समझकर फैसला वे लेते रहे। उन्होंने पुराने दिग्गज दिलीप कुमार और वर्तमान नायक आमिर ख़ान की तरह रोल पसंद करने के मामले में अपने चूजी को बनाया। कम काम और बेहतर परिणाम यह डैनी की सफलता का मूलमंत्र रहा है। फिल्म 'चोर मचाए शोर' (1974) में उनके साथी नायक शशि कपूर थे। डैनी ने लोकल दादा का रोल निभाकर दर्शकों को खुश किया था। इस फिल्म से शशि कपूर से उनकी दोस्ती हो गई, जो अगली फिल्म 'फकीरा' (1976) में परवान चढ़ी।
'फकीरा' फिल्म के कालखण्ड में 'खोया-पाया' फार्मूले पर धड़ाधड़ फिल्में बन रही थीं। निर्माता एन.एन. सिप्पी ने डैनी को शशि कपूर के भाई का रोल ऑफर किया। डैनी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि चॉकलेटी चेहरे के धनी शशि कपूर के भाई के रूप में दर्शक उन्हें कैसे स्वीकार करेंगे? लेकिन सिप्पी अपनी जिद पर अड़ गए। मजबूर होकर डैनी, शशि के भाई बने। फिल्म के आखिरी सीन में खोया भाई शशि उन्हें मिलता है। पहले वे उसकी पिटाई कर समुद्र में फेंक देते हैं। फिर यह सोचकर कि अरे वह तो उनका सगा भाई है, वे समुद्र में डूबकी लगाकर उसे निकालते हैं। भावुक होकर दोनों भाई भरत-मिलाप करते हैं। इस भावना-प्रधान सीन को देख दर्शक भूल गए कि डैनी जैसे चेहरे वाला शशि का भाई कैसे हो सकता है। इस फिल्म से डैनी ने यह सबक सीखा कि रोल कैसा भी हो, अगर पसंद है तो मना नहीं करना चाहिए।
अमिताभ के साथ 'अग्निपथ'
फिल्मी दुनिया में अठारह साल गुजारने के बाद डैनी को पहली बार फिल्म 'अग्निपथ' (1991) में अमिताभ बच्चन के साथ काम करने का मौका मिला। अमिताभ इस दौर में सुपरस्टार की हैसियत पा चुके थे। डैनी चाहते थे कि पहली बार में वे अपने को अमिताभ के सामने प्रूव करें वरना हमेशा बौना-एक्टर होकर रह जाएँगे। शूटिंग के पहले दिन डैनी अपने कमरे में चहलकदमी कर रहे थे और पटकथा मुहैया नहीं कराने पर एक सहायक निर्देशक पर नाराज हो रहे थे। अमिताभ के सामने वे पूरी तैयारी के साथ जाना चाहते थे। पास के कमरे में ठहरे अमिताभ सब सुन रहे थे। सहायक के जाने के बाद वे खुद डैनी के कमरे में आए। पटकथा की कॉपी दी और कहा- चलो, एक बार रिहर्सल कर लेते हैं।' अपने सामने इतने महान कलाकार को इतना विनम्र पाकर डैनी बर्फ की तरह पिघल गए। उनके मन में अमिताभ के प्रति सम्मान कई गुना बढ़ गया। इसके बाद 'हम' और 'खुदा गवाह' जैसी फिल्मों में वे फिर साथ दिखाई दिए।
डैनी फिल्म 'खुदा गवाह' को 'अग्निपथ' के दौरान अमिताभ से हुई दोस्ती का एक्सटेंशन मानते हैं। वैसे 'अग्निपथ' फिल्म बॉक्स ऑफिस पर असफल रही थी। डैनी भी फिल्म के इस दोष को स्वीकार करते हैं कि अमिताभ से आवाज बदलवाकर निर्देशक ने सबसे बड़ी भूल की थी।
'अजनबी' फिल्म बनी सीरियल
'अजनबी' (1993) फिल्म की कथा-पटकथा स्वयं डैनी की लिखी हुई थी। अपने मित्र रोमेश शर्मा के साथ नए कलाकारों को लेकर अजनबी की शूटिंग पूरी की गई। लेकिन फिल्म को कोई खरीददार नहीं मिला। लिहाजा मजबूर होकर उसे टीवी धारावाहिक में बदला गया। पहले एपिसोड से ही 'अजनबी' को बेहतर रिस्पांस मिला। बावन एपिसोड के बाद तेइस एपिसोड का विस्तार मिलना अजनबी की लोकप्रियता और श्रेष्ठता का प्रमाण है। फिल्म 'खुदा गवाह' के बाद डैनी ने फिल्मों में काम करना कम कर दिया क्योंकि विलेन के रोल पहले जैसे दमदार नहीं लिखे जाने लगे। हीरो ही विलेन बनने लगे। इसलिए डैनी ने जिस ऊँचाई को पाया था, उससे निचले पायदान पर खड़े होकर काम करना उनके जैसे खुद्दार व्यक्ति को गवारा नहीं था। वे पहले से ज्यादा चूजी हो गए।
सन 2000 में बोनी कपूर की बड़े बजट की फिल्म 'पुकार' में आतंकवादी के रोल में वे नजर आए, जिसकी जिंदगी का मतलब पूरे भारत को खत्म करना रहता है। इस फिल्म का निर्देशन राजकुमार संतोषी ने किया था। संतोषी ने उन्हें 'घातक' और 'चाइना गेट' जैसी फिल्मों में भी सशक्त रोल निभाने को दिए। 2002 में उन्हें फिल्म '16 दिसंबर' का ऑफर मिला। मणिशंकर नामक डायरेक्टर का नाम तक उन्होंने कभी नहीं सुना था। मना करने का इरादा लेकर वे मणिशंकर से मिले। लगातार चार घंटे तक जब उन्होंने अपना रोल फ्रेम-दर-फ्रेम सुना, तो फौरन हाँ कर दी। हालाँकि फिल्म लो-बजट थी। फिल्म को चारों तरफ से नोटिस किया गया और डैनी के रोल की सराहना हुई। हॉलीवुड एक्टर ब्रेड पिट के साथ फिल्म 'सेवन इयर्स इन टिबेट' में डैनी को काम करने का मौका मिला है। रजनीकांत के साथ डैनी 'रोबोट' में नजर आए।