अगर आप लंबे समय से किसी अच्छी थ्रिलर वेब सीरीज का इंतजार कर रहे थे, तो वह अब खत्म हो चुका है. जी5 पर आज रिलीज हुई दुरंगा का पहला सीजन आपको जरूरी मनोरंजन देगा. साथ ही सीरीज खत्म होने पर आपको इसके दूसरे सीजन का इंतजार भी रहेगा. गुलशन देवैया अपने अब तक के करियर के सबसे यादगार रोल में हैं और दृष्टि धामी की खूबसूरती तथा अभिनय कहानी में चार चांद लगाते हैं. हिंदी एंटरटेनमेंट कंटेंट में यह रीमेक का दौर है. फिल्में और वेबसीरीज धड़ल्ले से क्षेत्रीय और विदेशी कंटेंट को हिंदी में ला रही हैं, लेकिन ज्यादातर कहानियों का हिंदी में आते-आते कचरा हो जाता है. लेकिन दुरंगा ओरीजनल सीरीज की आत्मा को बचाए रखने के साथ इसे सुंदर और सशक्त ढंग से भारतीय परिवेश में ढालती है. दुरंगा लोकप्रिय और पुरस्कृत साउथ कोरियन ड्रामा सीरीज 'फ्लावर ऑफ ईविल' का हिंदीकरण है. गोल्डी बहल ने इसकी रचनात्मक कमान संभाली और चारूदत्त आचार्य ने स्क्रिप्ट और संवादों में इसे देसी रंग दिया.
सीरियल किलर का सच
दुरंगा की मूल कहानी सरल है. समित पटेल (गुलशन देवैया) मुंबई में अपनी पत्नी इरा जयकर पटेल (दृष्टि धामी) के साथ रहता है. दोनों की एक छह साल की बच्ची है. इरा पुलिस अफसर है. जबकि समित खाना बनाने, बर्तन धोने से लेकर घर की सारी जिम्मेदारियों और बच्ची को संभालता है. कुछ कलाकृतियां भी बनाता है. लेकिन तभी महानगर में कुछ हत्याएं होती हैं. हत्याओं के ढंग को देख कर पुलिस का अनुमान है कि 17 साल पहले मर चुके सीरियल किलर बाला बाणे (जाकिर हुसैन) की नकल करते हुए, कोई कत्ल कर रहा है या फिर कहीं बाला बाणे ही तो नहीं लौट आया? केस की छानबीन में कुछ ऐसी बातें सामने आती हैं, जो समित को संदिग्ध बनाती हैं. समित पटेल वास्तव में बाला बाणे का बेटा है और उसका असली नाम अभिषेक बाणे है. गांव के सरपंच के खून में वांटेड अभिषेक ने कुछ साल पहले अपनी पहचान बदल ली थी. इरा इन बातों से बेखबर है. अब यह पेंच क्या है? क्या है सच? समित आदर्श पति और आदर्श पिता है या फिर इसकी आड़ में उसका खूंखार व्यक्तित्व कुछ और गुल खिला रहा है?
कहानी के नए कनेक्शन
दुरंगा में सस्पेंस के अलग-अलग रंग आपको देखने मिलेंगे. 11 साल से विवाहित समित पटेल और इरा जयकर पटेल की कहानी, पहले सीजन के कुल नौ एपिसोड में आगे बढ़ने के साथ-साथ रोचक होती जाती है. निर्माता-निर्देशक ने न छलांगे लगाई है और न दौड़े हैं. कहानी में कुछ और अहम किरदार हैं. सब मिलकर एक सधी रफ्तार से आगे बढ़ते हैं और सीरीज को कहीं शिथिल नहीं पड़ने देते. इसका रोमांच शुरू से अंत तक बना रहता है. यहां विकास सरोदे (अभिजीत खांडकेकर) एक ब्लॉग जर्नलिस्ट है, जो क्राइम की दुनिया के पर्दों को हटाता जाता है. इसी तरह डॉक्टर मनोहर पटेल (राजेश खट्टर) और अनुप्रिया पटेल (दिव्या सेठ शाह) कहानी में समित पटेल के माता-पिता के रूप में सामने आते हैं, तो रोमांच का नया दरवाजा खुलता है कि समित पटेल/अभिषेक बाणे से उनका कनेक्शन क्या है!
अभी बहुत कुछ बाकी है
दुरंगा दर्शक के सामने लगातार नई-नई चीजें और समय-समय पर छोटे-छोटे नए किरदार लाती है. वे सब कहानी में निरंतर कुछ नया जोड़ते हैं. अंततः अमित साध भी नजर आते हुए चौंकाते हैं और दूसरे सीजन पर आपकी नजर टिक जाती है. दुरंगा बढ़िया ढंग से शूट की गई है और तकनीकी रूप से मजबूत है. लेकिन इसकी सबसे सशक्त कड़ियां गुलशन देवैया और दृष्टि धामी हैं. दोनों का परफॉरमेंस बहुत अच्छा है. खास तौर पर गुलशन अपने व्यक्तित्व को जरा भी लाउड किए बगैर आंखों और मुस्कान से अभिनय करते हैं. पुलिस अफसर के नजरिये से दृष्टि धामी कुछ कोमल नजर आती हैं, लेकिन अपने अभिनय से बांधे रहती हैं. उन्होंने अपने रोल से न्याय किया है. मराठी की दुनिया से आए अभिजीत खांडकेकर भी याद करते हैं. राजेश खट्टर, दिव्या सेठ शाह और बरखा बिष्ट ने अपने किरदारों को अच्छे ढंग निभाया है. सीरीज का अंत चौंकाता है और कुछ इस तरह से खत्म होता है कि अभी तो बहुत कुछ बाकी है. दुरंगा की नौ कड़ियां खत्म होने पर निश्चित ही आप दूसरे सीजन का इंतजार करेंगे.