Dr. Arora Review: केवल वयस्कों के लिए है यह वेबसीरीज, पहले पढ़ लें रिव्यू तभी देखें

अगर आपने पहले वाला कंटेंट देखा और पसंद किया है तो डॉ. अरोड़ा को भी देख सकते हैं.

Update: 2022-07-23 04:04 GMT

ओटीटी ने जो आजादी दी है, उसने कई फिल्म मेकर्स की क्रिएटिविटी को बदला है. इनमें एक बड़ा नाम लेखक-निर्देशक इम्तियाज अली का है. जब से उनकी प्यार की सेंसेटिव कहानियां बड़े पर्दे पर फ्लॉप हुई हैं, उन्होंने ओटीटी पर सेक्स को अपना केंद्रीय विषय बना लिया है. नेटफ्लिक्स पर वेब सीरीज शी के दो सीजन लाने बाद वह अब सोनी लिव पर वेब सीरीज लाए हैं, डॉ. अरोड़ा (गुप्त रोग विशेषज्ञ). एक्टर कुमुद मिश्रा इसमें डॉ. विशेष अरोड़ा के रोल हैं. इस डॉक्टर का कहना है, जब तक गुप्त रहेगा तब तक रोग रहेगा. लेकिन समाज क्या इस गुप्त पर खुल कर चर्चा करने के लिए तैयार है? सीरीज इसी सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश करती है.



Full View

शहर-दर-शहर घूमती कहानी
औसतन 35-35 मिनिट की आठ कड़ियों वाली इस सीरीज की शुरुआत बड़े सस्ते अंदाज में होती है, लेकिन दो कड़ियां गुजरने के बाद जब नए किरदार मैदान में जमते और डॉ. अरोड़ा की जिंदगी की कहानी खुलती है तो यह थोड़े ट्रेक पर आती है. सीरीज की मुख्य समस्या यह है कि हमारे समय से काफी पीछे 1990 के दशक के आखिरी वर्षों में जाती है. जबकि हम 2022 में है. सोच और व्यवहार के स्तर पर बहुत कुछ बदल चुका है. यौन समस्याओं के प्रति संकीर्ण सोच को दिखाने के लिए इम्तियाज अली ने अपनी कहानी को यूपी, एमपी और राजस्थान के सीमावर्ती शहरों झांसी, मुरैना और सवाई माधोपुर में रखा है. डॉ. अरोड़ा हफ्ते के सातों दिन इन शहरों में घूमते रहते हैं. हर जगह उनका क्लीनिक है.

समस्याएं पुरुषों की
सीरीज बाली उमर से लेकर बढ़ती उम्र तक के लोगों की समस्याओं और सोच को पकड़ने की कोशिश करती है. यहां पड़ोस में रहने वाले जवान युवक-युवती हैं, तो स्कूल में पढ़ने वाले किशोर और उसके पिता के बीच का तनाव है, एक बाबा है जिससे महिलाएं आशीर्वाद पाने आती हैं तो एक शहर का एसपी बेडरूम में पूरी तरह नाकाम है. यहां एक लड़की मजबूरी में गलत धंधे में है तो खुद डॉ. अरोड़ा का अतीत भी है, जिसमें पत्नी ने उन्हें छोड़ कर दूसरी शादी कर ली. इम्तियाज ने तमाम लोगों की समस्याओं को डॉ. अरोड़ा की लव स्टोरी के धागे में पिरोया. डॉ. अरोड़ा का किरदार ही इस सीरीज को बिखरने से बचाता है. डॉ. अरोड़ा के पास आने वाले हर जोड़े में समस्या पुरुष की है. कुछ रिश्ते नई उम्र के हैं और कहीं बात बरसों पुरानी हो चुकी है. डॉ. अरोड़ा की ये कहानियां साथ दो बातें करती है. एक तो समझाने की कोशिश करती है कि इन मुद्दों पर शरमाने के बजाय खुल कर बात करना और डॉक्टर की सलाह लेना बेहतर है और दूसरे खुद डॉ. अरोड़ा अपने पास आने वालों से इस अंदाज में बात करते हैं कि देखने वालों का भी जनरल नॉलेज बढ़े. यह सीरीज पूरी तरह से केवल वयस्क दर्शकों के लिए है.


जो तुमको हो पसंद
कुमुद मिश्रा सीरीज को अपनी संवेदनशील अदायगी से संभालते हैं. उनका अंदाज सस्ती कॉमेडी वाला और संवाद दोहरे अर्थ वाले नहीं हैं. विद्या मलावडे के साथ उनकी कहानी दर्शक को अंत तक बांधे रहती है. संदीपा धर, राज अर्जुन और विवेक मुश्रान ने किरदारों को खूबसूरती से निभाया है. सीरीज की कमजोरी इसकी राइटिंग है, जो कई जगह पर औसत से नीचे चली जाती है. सीरीज में कुछ ट्रेक आकर्षक हैं, जबकि कुछ सिर्फ इसे आगे बढ़ाने के लिए रखे गए मालूम पड़ते हैं. फिल्म में चार गाने भी हैं. जो समय-समय पर बैकग्राउंड में बजते हैं. निर्माताओं ने सीरीज का अंत कुछ अंदाज में किया है कि अगर दर्शकों ने पसंद किया तो अगला सीजन बनाया जा सकता है. टैबू कहने वाले विषयों पर बीते कुछ वर्षों में कंटेंट लगातार बना है और कुछ सफल भी रहा है, जिनमें विक्की डोनर, शुभ मंगल सावधान, लस्ट स्टोरीज, पार्च्ड, पैड मैन, अलीगढ़, खानदानी शफाखाना, बधाई हो, बधाई दो से लेकर हाल में आई जनहित में जारी शामिल हैं. डॉ. अरोड़ा इसी कड़ी को आगे बढ़ाती है. अगर आपने पहले वाला कंटेंट देखा और पसंद किया है तो डॉ. अरोड़ा को भी देख सकते हैं.

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