Death Anniversary: कुछ ऐसी रही निर्देशक बिमल रॉय की जर्नी, जाने बातें
बिमल रॉय ने अपनी फिल्मों में समाज से जुड़े मुद्दों को दिखाना शुरू किया. संगीतकार सलिल चौधरी ने उन्हें 'दो बीघा जमीन' के लिए हिंदी फिल्मों में पहला ब्रेक दिया था.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बिमल रॉय (Bimal Roy)…ये बस एक नाम नहीं है. ये एक ऐसे शख्स रहे हैं जिनकी एक फिल्म ने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया था. हिंदी सिनेमा के इस महान निर्देशक ने ऐसी-ऐसी फिल्में बनाई हैं जिसके बारे में लोग आज भी सोच नहीं पाते. बिमल रॉय ने बंगाली और हिंदी भाषा में कई सारी फिल्में बनाईं. उनकी कुछ चुनिंदा फिल्मों में परिणीता, बिराज बहु, मधुमति, सुजाता, परख और बंदिनी शामिल हैं. ये उनकी कुछ ऐसी फिलेमें हैं जिन्हें अलग-अलग कैटेगरी के तहत अवॉर्ड दिया गया था. आज उनकी डेथ एनिवर्सरी है. आज हम इस महान शख्स और शख्सियत से लेकर तमाम फिल्मों को याद कर रहे हैं. तो आइए चलिए इस सफर पर हमारे साथ-
जमींदारी से कर दिए गए थे बिमल रॉय बेदखल
बिमल रॉय का जन्म 12 जुलाई 1909 को हुआ था. उनका जन्म एक जमींदार परिवार में हुआ था. उनके पिता की आकस्मिक मृत्यु हो गई थी जिसके बाद उनके घर में कलह होने लगा और पारिवारिक विवाद की वजह से उन्हें जमींदारी से बेदखल होना पड़ा. हालांकि, यही उनके जीवन में एक टर्निंग प्वॉइंट बी साबित हुआ. पढ़ाई करने के बाद वो फिल्मों में कुछ करने के लिए कलकत्ता चले गए थे. धीरे-धीरे उन्होंने काम सीखा और फिर अपनी फिल्में बनाने लगे. बिमल रॉय की लोकप्रियता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि मधुबाला को उनकी फिल्म में काम न कर पाने का मलाल था.
बिमल रॉय ने अपनी फिल्मों में समाज से जुड़े मुद्दों को दिखाना शुरू किया. संगीतकार सलिल चौधरी ने उन्हें 'दो बीघा जमीन' के लिए हिंदी फिल्मों में पहला ब्रेक दिया था. इस फिल्म की कहानी भी सलिल चौधरी ने ही लिखी थी और अभिनेता बलराज साहनी को मेन लीड के लिए बिमल रॉय से भी उन्होंने ही मिलवाया था. अपने करियर की पहली ही फिल्म ने उन्हें रातों-रात इतना फेमस कर दिया जिसका अंदाजा आप नहीं लगा सकते. यही वो फिल्म थी जिसने बिमल रॉय को कतार में सबसे आगे खड़ा कर दिया. ये फिल्म साल 1950 में आई थी. इस फिल्म को कांस में इंटरनेशनल अवॉर्ड से नवाजा गया था.
इंटरनेशनल लेवल पर मिली उनकी फिल्म को काफी सराहना
ये फिल्म किसानों को समर्पित थी. इंटरनेशनल लेवल पर भी इस फिल्म को काफी सराहना मिली और इस फिल्म ने कई सारे अवॉर्ड्स जीते. इस पिल्म को देखने के बाद अभिनेता राज कपूर ने कहा था कि, 'मैं इस फिल्म को क्यूं नहीं बना सका. अगले हजार साल बाद भी भारत की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की लिस्ट बनी तो ये फिल्म उसमें जरूर शामिल होगी.'
निर्देशक बिमल रॉय को कांस पुरस्कार के अलावा 11 फिल्म फेयर और नेशनल अवॉर्ड मिले. साल 1958 में उनकी फिल्म 'मधुमति' को 9 फिल्म फेयर अवॉर्ड मिले थे. ये भी चौंकाने वाली बात है कि उनके नाम ये रिकॉर्ड 37 साल तक कायम रहा. कैंसर से पीड़ित होने के चलते साल 1965 में महज 55 साल की उम्र में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया लेकिन हिंदी सिनेमा को हमेशा के लिए अमर कर गए.