Death Anniversary : दादासाहेब फालके ने महज 15 हजार में बनाई थी भारत की पहली फिल्म, जानिए पूरी कहानी

आज बॉक्स ऑफिस पर करोड़ों का बिज़नेस करने वाले एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की भारत में शुरुआत करने का श्रेय दादासाहेब फालके को जाता हैं क्योंकि इस देश में पहला सिनेमा उन्होंने बनाया.

Update: 2022-02-16 02:08 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मानों में से एक दादासाहेब फालके पुरस्कार (Dadasaheb Phalke Puraskar) प्रतिवर्ष एक विशेष व्यक्ति को दिया जाता है जिसने मनोरंजन की दुनिया में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. साउथ सुपरस्टार रजनीकांत (Rajinikanth) पिछले 5 दशकों से यह पुरस्कार प्राप्त कर रहे हैं. दादासाहेब फालके (Dadasaheb Phalke) ने देश की पहली फिल्म बनाई इसलिए उन्हें भारतीय चित्रपट सृष्टि के जनक कहा जाता है.19 साल के अपने करियर में उन्होंने लगभग 95 फिल्में बनाई. उनकी पहली फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' उन्होंने महज 15 हजार में बनाई थी. आज उनके पुण्यतिथि के मौके पर हम जानेंगे किस तरह से उनका फिल्मी सफर शुरू हुआ.

भारतीय सिनेमा के जनक दादासाहेब फालके का असली नाम 'धुंडीराज गोविंद फालके' था. उनका जन्म 30 अप्रैल, 1870 को हुआ था. वे एक महान लेखक होने के साथ-साथ एक महान निर्देशक भी थे. दादासाहेब फालके हमेशा से कला में रुचि रखते थे. वह इसी क्षेत्र में करियर बनाना चाहते थे. 1885 में उन्होंने जेजे कॉलेज ऑफ आर्ट में प्रवेश लिया. आर्ट कॉलेज के बाद उन्होंने आगे की शिक्षा वडोदरा के कलाभवन में पूरी की. 1890 में, दादा साहब वडोदरा चले गए जहां उन्होंने कुछ समय तक फोटोग्राफर के रूप में काम किया. पहली पत्नी और बच्चे की मौत के बाद उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी.
यह फिल्म देखकर लिया बड़ा फैसला
फिर दादासाहेब फालके ने अपनी प्रिंटिंग प्रेस शुरू की. भारतीय कलाकार राजा रवि वर्मा के साथ काम करने के बाद जब वे पहली बार भारत से बाहर जर्मनी गए. वहां उन्होंने अपने जिंदगी में पहली बार फिल्म 'द लाइफ ऑफ क्राइस्ट' देखी और इस फिल्म को देखने के बाद उन्होंने भारत में आकर पहली फिल्म बनाने का फैसला किया. पहली फिल्म बनाने के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा था. इस फिल्म को बनाने के लिए उन्हें छह महीने लग गए.
15 हजार में बनाई पहली फिल्म
अपनी पत्नी और बेटे की मदद से दादा साहब ने अपनी पहली फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' बनाई. इस फिल्म को बनाने में उन्हें 15,000 रूपए लगे थे. हालांकि आज यह रकम मामूली लग रही है, लेकिन उन दिनों यह बहुत बड़ी राशि थी. इस फिल्म में दादा साहब ने खुद राजा हरिश्चंद्र का अभिनय किया था. उनकी पत्नी कॉस्ट्यूम का काम संभालती थीं और उनका बेटा, हरिश्चंद्र के बेटे की भूमिका निभा रहा था. चूंकि कोई भी महिला काम करने के लिए तैयार नहीं थी, इसलिए दादा साहब की फिल्म में एक पुरुष ने एक महिला का किरदार निभाया था. यह एक ब्लैक एंड वाइट और साइलेंट फिल्म थी.


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