यह शब्द ही तो हैं जो किसी को भी अपने करीब ले आते हैं और दूर करने में भी इन्हीं शब्दों की भूमिका अहम है। मनोभावों को प्रकट करने का जरिया शब्द ही तो हैं। ऐसा मानना है बालीवुड में गीतकारों की श्रेणी में खुद के बूते अपने आप का अग्रणी पंक्ति में खड़ा कर चुके युवा गीतकार इरशाद कामिल का। तीन फिल्म फेयर अवार्ड तथा संगीत के अन्य हर प्रकार के अवार्ड को अपने नाम कर चुके इरशाद की जन्मभूमि मलेरकोटला पंजाब भले ही हो परंतु इनका बिलासपुर से गहरा नाता है। इनके ननिहाल बिलासपुर में हैं तथा पत्रकारिता के पितामह रहे शब्बीर कुरैशी इनके मामा थे। वरिष्ठ पत्रकार,कवि और साहित्यकार शब्बीर कुरैशी द्वारा संपादित हिम दिशा अखबार में इरशाद कामिल ने लिखना शुरू किया था।
बुधवार को वह 30 साल बाद बिलासपुर पहुंचे। इन्होंने चंडीगढ़ में द ट्रिब्यून और इंडियन एक्सप्रेस में एडिटोरियल सेक्शन तथा फील्ड पत्रकारिता में हाथ आजमाए। पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रोडक्ट ईरशाद कामिल ने अलग-अलग विषयों उर्दू और कृष्ण काव्य में मास्टर डिग्री की है। इन्होंने हिंदी विषय में पीएचडी के साथ अन्य कई संकायों में भाषा एवं संस्कृति में महारत हासिल की है। लेखन से शुरुआत करने वाले इरशाद को चंडीगढ़ ही में किसी सीरियल के डायरेक्टर से अचानक एक दिन के लिए डायलॉग लिखने का काम मिला, लेकिन वह एक दिन से दो हुए और फिर लगातार 22 दिनों तक रोज शूटिंग तथा रोज डायलॉग लिखने का काम करना पड़ा।
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