चेतन आनंद की फिल्म 'नीचा नगर' की रिलीज के 75 साल पूरे, कोई नहीं तोड़ पाया रिकॉर्ड

फ्रांस के मशहूर शहर कान में होने वाले फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई भारतीय फिल्म 'नीचा नगर' के पहले प्रदर्शन के 29 सितंबर 2021 को 75 साल पूरे हो रहे हैं।

Update: 2022-06-16 03:30 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। फ्रांस के मशहूर शहर कान में होने वाले फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई भारतीय फिल्म 'नीचा नगर' के पहले प्रदर्शन के 29 सितंबर 2021 को 75 साल पूरे हो रहे हैं। फिल्म 'नीचा नगर' इकलौती ऐसी फिल्म है जो 75 साल बाद भी लोगों की याददाश्त से उतरी नहीं है। फिल्म में गांधी टोपी लगाने वाला और चरखा कातने वाला एक आम आदमी कैसे सर्वहारा समाज के लिए इलाके के सबसे बड़े दबंग से भिड़ जाता है, यही इस फिल्म की कहानी है। ये कहानी 75 साल बाद के भारत में भी सामयिक है। कालजयी फिल्मों की यही असली बानगी होती है। और, यही वजह है कि फिल्म 'नीचा नगर' का नाम सुनते ही अब भी भारतीय सिनेमा का सिर फख्र से ऊंचा हो जाता है। ये उस वक्त की फिल्म है जब सत्यजीत रे का सिनेमा के पटल पर उदय भी नहीं हुआ था। फिल्म 'नीचा नगर' ने कान फिल्म फेस्टिल का बेस्ट फिल्म अवार्ड (पाम डि ओर) भी जीता।

गोर्की की गलियों की कहानी

रूसी साहित्य में जिनको जरा भी दिलचस्पी है उन्हें मैक्सिम गोर्की का नाम जरूर पता होगा। 19वीं सदी के आखिरी और 20वीं सदी के शुरूआती सालों में मैक्सिम गोर्की ने जो किया, उस पर पूरी दुनिया ने गौर किया। सन 1950 में किशन चंदर ने लिखा, 'हम सबको गोर्की के सुलगते अल्फाज याद रखने होंगे। हमें साम्राज्यवाद के भगवानों के खिलाफ संघर्ष जारी रखना होगा। हम इन भगवानों के आगे सिर झुकाने से इंकार करते हैं।' भीष्म साहनी के मुताबिक, 'गोर्की ने जो किया उसके बराबर की हलचल साहित्य के जरिए कोई दूसरा पैदा न कर सका।' 'नीचा नगर' गोर्की की 1902 की रचना 'द लोअर डेप्थ्स' पर आधारित है। फिल्म की कहानी ऐसी है कि इसके कांस फिल्मोत्सव में पहली बार प्रदर्शित होने के 75 साल बाद भी हालात कुछ खास बदले नहीं हैं।

साम्राज्यवादी षडयंत्रों का पर्दाफाश

फिल्म 'नीचा नगर' की कहानी ये है कि गरीबों के एक इलाके में आने वाली साफ पानी की पाइप लाइन को वहां का एक दबंग बंद कर देता है। बस्ती में पानी को लेकर हाहाकार है। गंदा पानी पीने से लोग मर रहे हैं, बीमार हो रहे हैं। तो यही शख्स इन मरीजों के लिए एक चैरिटी अस्पताल खोल देता है और लोगों के लिए भगवान बन जाता है। इंसान की बेसिक जरूरतों पर कब्जा करके फिर उसमें फंसे लोगों को हल्की सी मदद करके भगवान बनने का ये सिलसिला पुराना है। 29 सितंबर 1946 को इसे कान फिल्म महोत्सव में जो पहली बार दिखाया गया और इश तारीख को ही इसकी रिलीज डेट माना गया।

अब्बास और अंसारी की जुगलबंदी

फिल्म 'नीचा नगर' लिखी ख्वाजा अहमद अब्बास और हयातुल्लाह अंसारी ने। 1941 में अपनी पहली फिल्म 'नया संसार' लिखने से लेकर राज कपूर की फिल्म कंपनी के लिए 1991 में 'हिना' लिखने तक 50 साल में अब्बास ने कोई 45 फिल्मों में अपनी कारस्तानी दिखाई। हिंदी सिनेमा की पहली बायोपिक 'डॉ. कोटनीस की अमर कहानी' भी अब्बास की ही लिखी हुई है। फिल्म 'नीचा नगर' में जिन हयातुल्ला अंसारी की कहानी पर अब्बास ने पटकथा लिखी, वह कांग्रेस के उर्दू अखबार 'कौमी आवाज' के लंबे समय तक संपादक रहे। उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य का कार्यकाल पूरा करने के बाद उन्होंने राज्यसभा में भी अपना कार्यकाल पूरा किया।

जब कामिनी कौशल को गुस्सा आया

साल 1946 में कान फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई इस फिल्म को इस फेस्टिवल का बेस्ट फिल्म का सबसे बड़ा पुरस्कार मिला, जिसे अब तक कोई दूसरी भारतीय फिल्म हासिल नहीं कर पाई है। अपने समय की इतनी कामयाब फिल्म का जिक्र सिनेमा के सौ साला जश्न में न पाकर कामिनी कौशल ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय को खूब खरी खटी सुनाई थी। उनका कहना था, 'मेरी ये डेब्यू फिल्म  कान फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट फिल्म का अवार्ड पाने वाली पहली भारतीय फिल्म रही, लेकिन अब जबकि केंद्र सरकार देश में सिनेमा के 100 साल पूरे होने का जश्न मना रही है तो इस फिल्म का कहीं जिक्र ही नहीं। मुझे बहुत दुख होता है ये देखकर। मैं समझ सकती हूं कि मैं बुजुर्ग हो चुकी हूं और लोगों की याददाश्त से उतर चुकी हूं।' 'नीचा नगर' के 10 साल बाद आई सत्यजीत रे की फिल्म 'पाथेर पांचाली' का प्रचार प्रसार और ब्रांडिंग कितनी भी की गई हो लेकिन तथ्य यही है कि भारतीय सिनेमा को विश्व परिदृश्य पर चर्चा दिलाने का पहला काम चेतन आनंद ने ही किया।

चलते चलते...

नेहरू की नीतियों के समर्थक रहे चेतन आनंद ने भारत और चीन युद्ध का जो मार्मिक फिल्मांकन फिल्म 'हकीकत' में किया, वह उनके सिनेमाई कौशल का चरमोत्कर्ष माना जा सकता है। इसी फिल्म से डेब्यू करने वाली प्रिया राजवंश से उनका आजीवन रिश्ता चला। कैफी आजमी और मदन मोहन के साथ अपनी फिल्मों में बेजोड़ संगीत रचने वाले चेतन आनंद को उनके भाइयों देव आनंद और विजय आनंद के साथ भी याद किया जाता है, लेकिन जब भी साम्राज्यवाद का मुखौटा उतारने वाली फिल्मों का जिक्र होगा, उसमें उनकी बनाई फिल्म 'नीचा नगर' का जिक्र सबसे पहला होगा।


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