Birth Anniversary : जानिए कैसे निरूपा रॉय के पड़े फिल्म इंडस्ट्री में कदम
Nirupa Roy Birth Anniversary : फिल्मफेयर मैगजीन को 1983 में निरूपा रॉय ने एक इंटरव्यू दिया था. इस इंटरव्यू में निरूपा रॉय ने उस घटना को याद किया था, जब उनकी फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री हुई.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कोकिला किशोरचंद्र बुलसारा (Kokila Kishorechandra Bulsara) उर्फ निरूपा रॉय (Nirupa Roy) केवल एक बेहतरीन अदाकारा ही नहीं थीं, बल्कि उन्हें भारतीय सिनेमा (Indian Cinema) की 'क्वीन ऑफ मिसरी' (Queen Of Misery) की पहचान मिली हुई थी. अपने पांच दशक लंबे करियर में निरूपा ने हिंदी सिनेमा के कई बड़े कलाकारों के साथ काम और उनके नाम करीब 275 फिल्में हैं. वह अपने दौर की लीडिंग एक्ट्रेसेस में से एक थीं. 1940 से लेकर 1950 तक निरूपा रॉय ने सिनेमा में अपनी छवि एक सम्मानित कलाकार के तौर पर बना ली थी. निरूपा रॉय की शुरुआत ही धार्मिक फिल्मों से हुई. उन्होंने रिकॉर्ड 40 धार्मिक फिल्मों में काम किया, जो कभी किसी ने नहीं किया था.
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ये दावा किया जाता है कि जब निरूपा रॉय धार्मिक फिल्में किया करती थीं, तब उनके दरवाजे पर लोग इंतजार किया करते थे कि उनकी एक झलक दिख जाए. वे निरूपा रॉय को देवी के इतने किरदारों में देख चुके थे कि वे उन्हें पूजने लगे थे. धार्मिक फिल्मों के बाद 70 और 80 के दशक में निरूपा रॉय को वो पहचान मिली, जिसके लिए कई सपोर्टिंग एक्टर्स तरसते हैं. निरूपा रॉय ने कई फिल्मों में मां के किरदार निभाए और फिर वह फिल्मों की सबसे पसंदीदा मां बन गईं.
जानिए कैसे निरूपा रॉय के पड़े फिल्म इंडस्ट्री में कदम?
निरूपा रॉय का फिल्मी सफर काफी दिलचस्प रहा है, लेकिन इस बात से कई लोग अंजान हैं कि आखिर उनकी फिल्मों में एंट्री कैसे हुए थी. इसके पीछे एक बहुत ही दिलचस्प कहानी है. फिल्मफेयर मैगजीन को 1983 में निरूपा रॉय ने एक इंटरव्यू दिया था. इस इंटरव्यू में निरूपा रॉय ने उस घटना को याद किया था, जब उनकी फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री हुई. अपनी फिल्म में एंट्री को लेकर जानकारी देने से पहले निरूपा रॉय ने खुलासा किया था कि उनके माता-पिता सिनेमा के बिल्कुल भी फैन नहीं थे. उन्होंने बताया था कि उनके माता-पिता सिनेमा को भ्रष्टकारी प्रभाव कहते थे.
ऑनलाइन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, निरूपा रॉय ने कहा था कि जब तक मेरी शादी नहीं हुई तब तक मैंने कोई फिल्म नहीं देखी थी. मेरे पिता और माता को लगता था कि फिल्म का एक भ्रष्टकारी प्रभाव है. तो जब मैं बॉम्बे आई तब मुझे फिल्मों के बारे में पता चला. बॉम्बे आने के बाद ही मुझे पता चला कि फिल्में होती क्या हैं. निरूपा रॉय ने उस दिलचस्प घटना को याद किया जब वह अपने पति कमल रॉय के साथ एक फिल्म के ऑडिशन के लिए गई थीं, जो एक अभिनेता बनना चाहता था. अभिनेत्री ने कहा था कि ऑडिशन एक गुजराती फिल्म के लिए था और उनके पति को रिजेक्ट कर दिया गया था, लेकिन उन्हें फिल्म में एक किरदार का ऑफर मिल गया था.
अभिनेत्री ने कहा था कि 1946 में विष्णु कुमार व्यास गुजराती फिल्म रणक देवी के लिए नए कलाकारों का ऑडिशन ले रहे थे. मेरे पति ने रोल के लिए अप्लाई किया था और इसके लिए मैं भी अपने पति के साथ गई थी. उन्हें रोल नहीं मिला, लेकिन उन लोगों ने मुझसे कहा कि वे मुझे फिल्म में एक्ट्रेस के तौर पर लेना चाहते हैं. ये सुनते ही मेरे पति ने तुरंत हामी भर दी. मुझे उनकी इच्छा पूरी करनी थी. मुझे जो भूमिका की पेशकश की गई थी, वह बाद में एक अन्य अभिनेत्री अंजना के पास चली गई. मुझे नहीं पता क्या हुआ. यह पहला कड़वा अनुभव था. व्यास ने ही मुझे मेरा स्क्रीन नाम निरूपा रॉय दिया था.