साहित्य और सिनेमा की अनूठी कड़ी थे बासु चैटर्जी
सिनेमा से जोड़ने की कड़ी में बासु चटर्जी का नाम हमेशा ही
मनोरंजन | साहित्य को सिनेमा से जोड़ने की कड़ी में बासु चटर्जी का नाम हमेशा ही एक स्वर्णिम पुल के रूप में देखा जायेगा. वर्तमान दौर में जिसे लीक से हटकर सिनेमा कहते हैं, चूंकि वह छोटे शहरों और आम लोगों की बात करते हैं, उन गलियों में तो बासु की फ़िल्में कबकी रजनीगंधा की सदाबहार सुगंध फैला चुकी हैं. वर्तमान में फ़ेमिनिज़्म का झंडा सोशल मीडिया पर लेकर आन्दोलन करने वालों को एक बार पलट कर बासु दा की फ़िल्में देखनी चाहिए कि किस तरह बगैर लाग लपेट के उन्होंने महिला किरदारों को सशक्त रूप से दर्शाया. बासु दा ने 93 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया है. ऐसे में उनके बेहद क़रीबी मित्र और सुप्रसिद्ध लेखक, गीतकार और निर्माता अमित खन्ना ने श्रद्धांजलि स्वरूप उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें शेयर कीं.
साहित्य और सिनेमा की अनूठी कड़ी थे बासु चैटर्जी मिडल क्लास के अपने फ़िल्मकार
हमारी 45 साल पुरानी दोस्ती थी. मैं अभी भी उनसे जुड़ा रहा. लॉकडाउन शुरू हुआ तो उन्हें अस्पताल भेजा गया था. पिछले कुछ हफ़्तों से उनकी तबीयत ठीक नहीं थी. तो बात नहीं हो पाई थी. हालांकि बीच में मुझे जानकारी मिली थी कि उनकी हालत सुधर गई है. हालांकि वे काफ़ी कमज़ोर हो गए थे. मैंने उनकी बेटी रूपल को कहा था, उन्होंने भी कहा था वह बात कराएंगी, लेकिन इस बात का अफ़सोस है कि बात हो नहीं सकी. वह बेहद सरल और सहज इंसान थे. उन्हें दुनिया और सिनेमा की चकाचौंध से ख़ास मतलब नहीं था. उन्हें पढ़ने का शौक़ था और फ़िल्में देखना उन्हें पसंद था. जब तक वह स्वस्थ रहे, हर फ़िल्म महोत्सव का हिस्सा हुआ करते थे. उन्होंने फ़िल्मों में साहित्य को ख़ूब तवज्जो दी. उनका यह अहम योगदान रहेगा. जैसे वे वास्तविक जीवन में सरल थे, वैसी ही फ़िल्में बनाते थे. उन्हें पढ़ने का ख़ूब शौक़ था और उनकी आम बातचीत में भी आम लोगों की ही चर्चा होती थी. चूंकि उनका बचपन मथुरा में बीता था फिर बाद में मिडल क्लास मुम्बईकर बने. तो ऐसे में, एक मिडल क्लास परिवार के दर्द को और उनकी बातों को अच्छी तरह से समझते थे, इसलिए उनकी दुनिया को उन्होंने सरलता से फ़िल्मों में दिखाया है. साथ ही यह भी ख़ास बात रही कि वह मूलत: कार्टूनिस्ट रहे, फ़िल्म सोसाइटी से भी जुड़े रहे और उससे ही इन्फ़्ल्युएन्स होकर वह फ़िल्मों में आए थे.