कास्ट: आयुष्मान खुराना, एंड्रिया केवीचुसा, लोइतोंगबम डोरेन्द्र सिंह, कुमुद मिश्रा, मनोज पाहवा आदि
निर्देशक: अनुभव सिन्हा
स्टार रेटिंग: 3
कहां देख सकते हैं: थिएटर्स में
पूर्वोत्तर को बनाया कहानी का आधार
कहानी कहां की है, ये पता नहीं चलती या ज्यादातर समीक्षक पकड़ नहीं पाए, शहर या राज्य तो पता नहीं चले लेकिन इतना पता चलता है कि पूर्वोत्तर राज्यों में से किसी एक की है. या किसी एक के बजाय डायरेक्टर ने पूरे पूर्वोत्तर को इसमें समेट दिया है. एक अंडर कवर ऑफिसर अमन (आयुष्मान खुराना) है, जो वहां जोशुआ के रूप में काम करता है, एक ऐसा उग्रवादी जॉनसन डमी के रूप में वह भी खड़ा करता है, जो अन्य अलगाववादी उग्रवादियों की तरह उस राज्य को भारत से अलग राज्य बनाना चाहता है. भारत सरकार के साथ पूर्वोत्तर में अलगाववादियों के सबसे बड़े नेता सांगा (डोरेन्द्र) से शांति समझौते की बाधाएं हटाने में उसके हिसाब से ये तरीका काम आएगा.
दूसरी तरफ एक एडो (एंड्रिया केवीचुसा) नाम की लड़की है, जो बॉक्सिंग में भारतीय टीम के लिए खेलना चाहती है, लेकिन उसके साथ भेदभाव होता है. जबकि उसका अलगाववादी पिता वांगनाओ जॉनसन के नाम से ही एक नया उग्रवादी संगठन खड़ा कर देता है. इधर अमन का बॉस अबरार (मनोज पाहवा) सांगा को सत्ता पक्ष से मिलकर चुनाव लड़ने, मुख्यमंत्री बनने जैसे लालच देकर शांति समझौता करना चाहता है. सरकार के मंत्री कुमुद मिश्रा इस केस को सरकार की तरफ से अबरार के साथ संभालते हैं. लेकिन उसमें रोड़ा बन जाता है दूसरा जॉनसन यानी उस बॉक्सर लड़की एडो का पिता.
खुफिया अधिकारी बने हैं आयुष्मान खुराना
इधर अमन का बागी रुख देखने लायक है, पूर्वोत्तर के ज्यादातर किरदार वायरल वीडियोज वाले कश्मीरियों की तरह बात करते दिखाई देते हैं, खुद को भारतीय मानते ही नहीं हैं. अमन भी उनकी ही तरफदारी लेता दिखता है. अबरार को भी लगता है कि अमन पर भरोसा ठीक नहीं है, तो वह एक और ऑफिसर भेजकर जॉनसन बने उस लड़की के पिता पर हमला करवा देता है. बाद में अमन अपना रुख साफ करता है कि या तो जॉनसन और सांगा दोनों से शांति समझौता करो या फिर दोनों को जेल भेजो क्योंकि सांगा भी ड्रग्स, हथियारों का धंधा करता है.
ऐसे में जिन लोगों ने आईबी के ज्वॉइंट सेक्रेट्री रहे एमके धर की किताब 'ओपन सीक्रेट्स: इंडियाज सीक्रेट्स अनवेल्ड' पढ़ी होगी, वो लोग इस मूवी को देखकर नहीं चौंकेंगे. लेकिन यकीन मानिए बाकी आम लोगों में से बहुतों के सर के ऊपर से जा सकती है ये मूवी. दर्शक ये समझने की कोशिश करेगा कि आखिर कहना क्या चाहते हो. पूर्वोत्तर वालों की परेशानी क्या है, इसे समझाने के लिए वो जॉनसन का एक डायलॉग नक्शे के साथ इस्तेमाल करते हैं और फिर आपको अभी तक जेल में बंद शरजील इमाम की याद आ सकती है.
लोगों से कथित भेदभाव को दिखाया
इस सीन में वो बताता है कि कैसे 22 किमी की 'चिकन नेक' से शेष भारत पूर्वोत्तर भारत से जुड़ा हुआ है और जब इस इलाके में सेनाएं गुजरती हैं तो आस पास के इलाके वालों को कितना नुकसान होता है, फसलें सड़ जाती हैं और भी ना जाने क्या क्या. लेकिन ये आपको कनविंस नहीं करता. आज जो पूर्वोत्तर में इतने प्रोजेक्ट शुरू हुए हैं, इतना विकास हुआ है, वैसा अलगाववाद है नहीं कि हर गांव में लोग भारतीय सेना के खिलाफ बंदूकें लेकर खड़े हों. खेल मंत्री भी अभी तक उसी धरती से था, मणिपुर में खेल यूनिवर्सिटी बन ही गई है, सो इतना भेदभाव मुमकिन लगता नहीं. लेकिन नहीं है ऐसा भी नहीं कहा जा सकता.
हालांकि एमके धर की किताब में देश के लिए साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल अधिकारी करते दिखते हैं, तो अबरार उसी का उदाहरण है. लेकिन वो इस देश की खातिर कर रहा है, नेताओं से कई मुद्दों पर मतभेद आम है. वो इस मूवी में भी दिखता है, 'जनता की आवाज सुनी जाती है, लेकिन पांच साल में बस एक बार', जैसे डायलॉग ये तेवर दिखाते हैं.