अक्षय कुमार ने फिल्म 'रक्षा बंधन' के लिए बढ़ाया वजन, जानें डायरेक्टर ने कैसे उन्हें मनाया
ज्यादा ठहराव के साथ और ज्यादा कान्फिडेंस के साथ निडर होकर फिल्में बनाऊंगा।
अगले महीने रक्षा बंधन के दिन आनंद एल राय निर्देशित फिल्म 'रक्षा बंधन' सिनेमाघरों में रिलीज होगी। फिल्म में दहेज प्रथा की समस्या को उकेरा गया है। इस मुद्दे पर आनंद ने साझा किए अपने जज्बात...
दहेज के मुद्दे पर पिछली सदी के सातवें दशक में कई फिल्में बनी थीं। उस दौर से लेकर वर्तमान परिदृश्य में क्या बदलाव पाते हैं?
हम थोड़े समझदार हो गए हैं। हमने दहेज का नाम बदलकर गिफ्ट रख दिया है मगर नाम बदलने से प्राब्लम नहीं बदलेगी। जब तक एक लड़की खुद इस पर रोक नहीं लगाएगी, वह इस जंग में खुलकर नहीं लड़ पाएगी।
क्या लगता है कि इस फिल्म के माध्यम से संदेश पहुंचेगा और लोग जागरूक होंगे?
हां, मुझे लगता है कि इससे बदलाव आएगा। मेरा काम है मनोरंजन करते हुए अपनी बात कह देना। अगर एक इंसान की सोच अच्छी हो गई या अच्छे के लिए बदल गई तो यह कहानी सुनाना मेरे लिए सफल है।
आजकल जड़ों से जुड़े रहने वाला सिनेमा गुम हो गया है, क्या 'रक्षा बंधन' में वे चीजें देखने को मिलेंगी?
इस फिल्म की कहानी में एक मुद्दा और उसके समाधान के बारे में बात हुई है। मेरा समाज वो वाला हिंदुस्तान भी है, जहां परिवार साथ रहता है। जहां हम वैल्यूज समझते हैं। हमने धारणा बना ली है कि इस पीढ़ी में वो वैल्यूज नहीं हैं। मैं यह बिल्कुल नहीं मानता। नई पीढ़ी का खुद को व्यक्त करने का तरीका अलग हो सकता है, लेकिन उनमें इमोशंस या वैल्यूज की कमी नहीं है।
अक्षय कुमार ने कहा था कि उन्होंने एक लाइन सुनकर ही फिल्म के लिए हां कह दी थी। वो लाइन क्या थी?
कहानी सुनाने और फिल्म बनाने की वजह बिल्कुल साफ थी। मुझे एक साफ-सुथरी और रिश्ते की शुद्धता को छू पाने वाली कहानी चाहिए थी। यह कोरोना महामारी के दौरान सोची गई कहानी थी। जब हमें परिवार की कीमत समझ आई। यही वजह थी कि हमें पारिवारिक फिल्म की जरूरत महसूस होने लगी थी। इस कहानी का बीज वहीं से आया है।
अक्षय कुमार ने अपने अनुभवों से इनपुट दिए?
वह बहुत ही इमोशनल इंसान और बेहतरीन एक्टर हैं। जितना वह पर्दे पर खुद को निखार पाते हैं, उतना ही पर्दे के पीछे खुद को छिपाने में भी सक्षम हैं। मैं भी चालाकी से उनके अंदर झांक-झांक कर देखता रहा। शायद यही वजह है कि मैं उनका बेस्ट इमोशन, एक्सप्रेशन, उनके अंदर छुपा हुआ बच्चा ढूंढ़ पाया। हमने एक-दूसरे के साथ बहुत सारी बातें साझा कीं, जिससे हमें एक-दूसरे को समझने में आसानी हुई।
किरदार की खातिर वजन बढ़ाने के लिए अक्षय कुमार को कैसे मनाया? वे इसके लिए अक्सर राजी नहीं होते?
वजन की बात जो है, उसका लेना-देना उस खुशी, उस प्रोसेस, उस किरदार से था, जो वह निभा रहे थे। उस किरदार को निभाने के साथ ही उनकी सोच भी किरदार जैसी ही हो गई।
आपने हाल ही में अपना जन्मदिन मनाया है। अपने लिए क्या टारगेट सेट किया है?
मेरा लाइफ में एक ही टारगेट है- वह काम करो, जिसमें खुशी मिलती है। मुझे कहानियां कहने में खुशी मिलती है। ज्यादा ठहराव के साथ और ज्यादा कान्फिडेंस के साथ निडर होकर फिल्में बनाऊंगा।