धार्मिक पहचान छिपाकर किए जाने वाले विवाहों पर अंकुश लगाने के लिए योगी सरकार लाई अध्यादेश

इतिहास एक बार फिर अपने आप को दोहरा रहा है।

Update: 2020-12-01 12:19 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। इतिहास एक बार फिर अपने आप को दोहरा रहा है। अंतर केवल इतना है कि जिन तर्कों के सहारे 1968 में मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों के धर्म स्वातंत्र्य कानूनों का कुछ लोगों द्वारा विरोध किया गया था। आज उन्हीं तर्कों का इस्तेमाल कुछ लोग उत्तर प्रदेश के 'विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020' के खिलाफ कर रहे हैं। दरअसल पिछली सदी के छठे दशक में मध्य प्रदेश, ओडिशा, बिहार आदि राज्यों के आदिवासी इलाकों में धर्म परिवर्तन की घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि हुई थी। कई जगहों पर विरोध के फलस्वरूप हिंसक झड़पें भी हुईं।


यदि कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से दूसरा धर्म अपना रहा है तो इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए

हालांकि अपनी पसंद की उपासना पद्धति अपनाने और जरूरत पड़ने पर दूसरे धर्म को अपनाने का अधिकार हमारे संविधान के अनुच्छेद 25 में सबको उपलब्ध है, इसलिए यदि कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से दूसरा धर्म अपना रहा है तो इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। हालांकि इन मामलों में सब कुछ इतना सीधा नहीं था। तब इन राज्यों में धर्म परिवर्तन के मामलों में व्यापक तौर पर धोखा, लालच और जोर-जबरदस्ती की शिकायतें मिल रही थीं। लिहाजा लोगों को ऐसे फरेब से बचाने के लिए मध्य प्रदेश और ओडिशा आदि राज्यों ने 1968 में धर्म स्वातंत्र्य कानून बनाया।


धोखे से, लालच देकर या बलपूर्वक किए जाने वाले धर्म परिवर्तन गैर-कानूनी और दंडनीय हैं

इसमें धोखे से, लालच देकर या बलपूर्वक किए जाने वाले धर्म परिवर्तनों को गैर-कानूनी और दंडनीय कर दिया गया। हालांकि इनमें किसी के अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन पर कोई बंदिश नहीं थी, लेकिन ईसाई मिशनरियों को इस पर आपत्ति थी। ऐसे में मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। ईसाई मिशनरियों का तर्क था कि अनुच्छेद 25 में धर्म के प्रचार के अंतर्गत दूसरों का धर्म परिवर्तन कराने का अधिकार भी शामिल है और इस कानून द्वारा उस पर पाबंदी लगाई गई है, जो उनके र्धािमक आजादी के अधिकार का उल्लंघन करता है।

धार्मिक आजादी: व्यक्ति को अपनी उपासना पद्धति को झूठ, फरेब से सुरक्षित रखने का अधिकार है

रेवरेंड स्टेनिसलॉस बनाम मध्य प्रदेश के उस मुकदमे में इस बात का निस्तारण करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने 1977 में एक अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रतिपादित किया। न्यायालय ने कहा कि 'धार्मिक आजादी के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को अपनी उपासना पद्धति को झूठ, फरेब, धोखा, लालच और जोर-जबरदस्ती से सुरक्षित रखने का अधिकार भी शामिल है। ऐसे में सरकारों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वे इससे समाज की रक्षा करें। लिहाजा धर्म स्वातंत्र्य कानूनों में धर्म के प्रचार के अधिकार पर किसी प्रकार की कोई पाबंदी नहीं लगाई गई है, अपितु धोखे, लालच और जोर-जबरदस्ती पर पाबंदी लगाकर लोगों को संविधानसम्मत अधिकार सुनिश्चित किया गया है।'

यूपी में नया अध्यादेश: झूठ, फरेब, प्रलोभन देकर कराए जाने वाले धर्म परिवर्तन गैर-कानूनी घोषित

ठीक यही सिद्धांत प्रकारांतर से उत्तर प्रदेश के नए अध्यादेश पर भी लागू होता है। इसकी धारा-3 में झूठ, फरेब, जोर-जबरदस्ती या कपट पूर्ण साधन या प्रलोभन देकर कराए जाने वाले धर्म परिवर्तन को गैर कानूनी घोषित किया गया है, क्योंकि कोई भी सभ्य समाज ऐसे कार्य को मान्यता नहीं देता। उपासना पद्धति हर व्यक्ति की आस्था से जुड़ी होती है और उसे इसकी रक्षा का अधिकार है। यदि कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से किसी दूसरी उपासना पद्धति को चुनता है तो उस पर किसी को आपत्ति नहीं हो सकती और इस कानून में भी ऐसा कुछ भी नहीं है जो अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन में बाधा खड़ी करता है। इसमें तो केवल धोखा, लालच, फरेब जैसे साधनों से धर्म परिवर्तन पर पाबंदी लगाई गई है। वैसे भी समाज के कमजोर तबके को अधिक सुरक्षा की आवश्यकता पड़ती है इसलिए इस कानून में महिलाओं तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के मामलों में गैर कानूनी धर्म परिवर्तन पर अधिक कठोर दंड की व्यवस्था की गई है। जहां आमतौर पर गैर कानूनी धर्म परिवर्तन करने पर पांच साल तक की सजा और न्यूनतम 15,000 रुपये के जुर्माने की व्यवस्था है वहीं महिलाओं तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के मामलों में 10 वर्ष तक की सजा और न्यूनतम 50,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

धार्मिक पहचान छिपाकर किए जाने वाले विवाहों की समस्या के निराकरण की व्यवस्था

देखा जाए तो धर्म की तरह विवाह भी हर व्यक्ति का निजी मामला है। संविधान के अनुच्छेद 21 में विवाह का अधिकार भी शामिल है, किंतु पिछले कुछ दशकों में अपनी धार्मिक पहचान छिपाकर किए जाने वाले विवाह संबंधों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। कई मामलों में इसकी वजह से देश में सांप्रदायिक सौहार्द भी बिगड़ा है। कई बार इससे कानूनी जटिलताएं भी पैदा होती हैं। इस अध्यादेश में इस समस्या के निराकरण की व्यवस्था की गई है। मसलन अदालत में प्रार्थना पत्र देकर धारा-6 के अंतर्गत ऐसे विवाह को रद कराया कराया जा सकता है। यह अधिकार सभी धर्म के पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से हासिल है। धर्म परिवर्तन में धोखे, भय, लालच या धमकी जैसे तत्वों को समाप्त करने के लिए भी इसमें विशेष व्यवस्था की गई है।

धर्म परिवर्तन करने वाले हर व्यक्ति को 60 दिन पहले जिला मजिस्ट्रेट को सूचना देनी होगी

धारा-8 में कहा गया है कि अपना धर्म परिवर्तन करने वाले हर व्यक्ति को कम से कम 60 दिन पहले जिला मजिस्ट्रेट को सूचना देनी होगी। उसमें उसे यह घोषणा करनी होगी कि वह बिना किसी भय, लालच या धोखे के और अपनी मर्जी से अपना धर्म परिवर्तन करना चाहता है। उसके बाद धर्म परिवर्तन का अनुष्ठान संपन्न कराने वाला व्यक्ति उसकी सूचना कम से कम एक माह पूर्व जिला मजिस्ट्रेट को देगा, ताकि जिला मजिस्ट्रेट यह सुनिश्चित कर सकें कि धर्म परिवर्तन स्वतंत्र सहमति से हो रहा है। यदि धर्म परिवर्तन करने वाला व्यक्ति अपनी सहमति से किसी दूसरे धर्म को स्वीकार करता है तो उसे इस तरह की सूचना देने पर किसी तरह की आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

किसी धर्म को मानने या दूसरे धर्म को अपनाने की पारदर्शी प्रक्रिया

इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार की इस कानूनी पहल का स्वागत होना चाहिए, क्योंकि यह सभी को समान रूप से किसी धर्म को मानने या दूसरे धर्म को अपनाने की पारदर्शी प्रक्रिया सुनिश्चित करती है।


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