World cancer day 2022: कैंसर का खतरा और भारत, आखिर क्यों बढ़ रहे हैं मामले?

कैंसर का खतरा और भारत

Update: 2022-02-04 07:07 GMT
वर्तमान समय में कैंसर एक भयानक बीमारी के रूप में उभरकर सामने आया है। इसकी चपेट में हर वर्ष सबसे अधिक लोग आते हैं और समय पर इलाज नहीं हो पाने के कारण सर्वाधिक लोग असमय ही मर जाते हैं। ये सही है कि कैंसर का इलाज मुश्किल पर नामुमकिन नहीं। कैंसर को लेकर लोगों में अनभिज्ञता और उदासीनता को कम करने तथा इस रोग के प्रति उन्हें जागरूक बनाने, शिक्षित करने, इससे संबंधित मिथकों को मिटाने के लिए प्रतिवर्ष विश्वभर में 4 फरवरी को 'विश्व कैंसर दिवस' मनाया जाता है।
कैसे हुई कैंसर दिवस की शुरुआत
गौरतलब है कि 1993 में अंतर्राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण संघ ने स्विट्जरलैंड के जिनेवा में पहली बार कैंसर दिवस मनाया था। लेकिन इस दिवस को मनाने की विधिवत शुरुआत वर्ष 2005 से हुई थी। तब से यह दिवस हर वर्ष कैंसर को कलंक मानने वाली मानसिकता के पतन के लिए प्रयासरत है। दरअसल, कैंसर का तात्पर्य शरीर में अनियंत्रित रूप से वृद्धि करने वाली कोशिकाओं से हैं। यह अनावश्यक रूप से वृद्धि कर ऊतक को प्रभावित करती है तथा शरीर के बचे हुए भाग को इसके संपर्क में ले लेती है।
कितने तरह का होता है कैंसर? कौन लोग होते हैं कैंसर के शिकार
कैंसर एक ऐसा रोग है जो किसी भी उम्र में हो सकता है। यह एक साल के बच्चे से लेकर 80 साल के बुजुर्ग तक में पाया जा सकता है। वैसे तो कैंसर के सौ से अधिक प्रकार हैं लेकिन इनमें स्तन कैंसर, सर्वाइकल कैंसर, ब्रेन कैंसर, बोन कैंसर, ब्लैडर कैंसर, पेंक्रियाटिक कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर, गर्भाशय कैंसर, किडनी कैंसर, लंग कैंसर, त्वचा कैंसर, स्टमक कैंसर, थायरॉड कैंसर, मुंह का कैंसर व गले का कैंसर प्रमुख है।
आमतौर पर शरीर के वजन बढ़ने व शारीरिक सक्रियता में कमी आने तथा दोषपूर्ण व असंतुलित खान-पान, व्यायाम नहीं करने, नशीले पदार्थों के रूप में अल्कोहल की अधिक मात्रा का सेवन करने से इस रोग के शिकार होने की संभावना अधिक रहती है। चाय और कॉफी जैसे पेय पदार्थों के आदी व्यक्ति को भी कैंसर होने का ज़्यादा खतरा रहता है क्योंकि चाय और कॉफी में चार हजार से अधिक घातक तत्व पाये जाते हैं।
इसके अलावा मोटापे से ग्रस्त व्यक्ति में कैंसर होने की अधिक संभावनाएं होती हैं। कैंसर एक आनुवांशिक बीमारी होने के कारण कई बार कैंसर से पीड़ित माता-पिता केे जीन के माध्यम से यह बीमारी उनकी संतान में भी आ जाती है। वहीं दवाओं के साइड इफेक्ट्स से भी कैंसर होने की बात की जाती है।
क्या कहते हैं कैंसर पर आंकड़े
यदि अब आंकड़ों की बात करें तो हर दिन औसतन 1300 से अधिक लोग इस डरावनी बीमारी के शिकार हो रहे हैं। हर साल कैंसर के 10 लाख नए मामलों का निदान किया जा रहा है और 2035 तक हर वर्ष कैंसर के कारण मरने वाले लोगों की संख्या बारह लाख तक बढ़ने की उम्मीद है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत में कैंसर रोग से प्रभावितों की दर कम होने के बावजूद यहां 15 प्रतिशत लोग कैंसर के शिकार होकर अपनी जान गंवा देते हैं। डब्लूएचओ की सूची के मुताबिक 172 देशों की सूची में भारत का स्थान 155वां हैं।
भारत में कैंसर के शिकार लोग
फिलहाल भारत में यह प्रतिलाख 70.23 व्यक्ति है। डेन्मार्क जैसे यूरोपीय देशों में यह संख्या दुनिया में सर्वाधिक है यहां कैंसर प्रभावितों की दर प्रतिलाख 338.1 व्यक्ति है। नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम की एक रिपोर्ट की मानें तो साल 2020 में भारत के भीतर 13.9 लाख लोग कैंसर से पीड़ित थे। अनुमान लगाया जा रहा है कि ये आंकड़ा 2025 तक 15.7 लाख तक पहुंच जाएगा। वहीं पूर्व के आंकड़ों पर ध्यान दिया जाए तो वर्ष 1990 के मुकाबले वर्तमान में प्रोस्टेड कैंसर के मामले में 22 प्रतिशत और महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर के मामले में 2 प्रतिशत और वेस्ट कैंसर के मामले में 33 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
एक अनुमान के मुताबिक भारत में 42 प्रतिशत पुरुष और 18 प्रतिशत महिलाएं तंबाकू के सेवन के कारण कैंसर का शिकार होकर अपनी जान गंवा चुके हैं। राष्ट्रीय कैंसर संस्थान के एक प्रतिवेदन के अनुसार देश मे हर साल इस बीमारी से 70 हजार लोगों की मृत्यु हो जाती है, इनमें से 80 प्रतिशत लोगों के मौत का कारण बीमारी के प्रति उदासीन रवैया है। उन्हें इलाज के लिए डॉक्टर के पास तब ले जाते हैं जब स्थिति लगभग नियंत्रण से बेकाबू हो जाती है।
भारतीयों के लिए अलर्ट, महिलाएं हो रही हैं सबसे ज्यादा शिकार
कैंसर संस्थान की इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल सामने आ रहे 13.9 लाख नए रोगियों में से लगभग सात लाख महिलाएं होती हैं। लगभग इनमें से आधी यानी साढ़े तीन लाख महिलाओं की मौत हो जाती है। इनमें से भी 90 प्रतिशत की मृत्यु का कारण रोग के प्रति बरते जाने वाली अगंभीरता है। ये महिलाएं डॉक्टर के पास तभी जाती हैं जब बीमारी अनियंत्रण की स्थिति में पहुंच जाती है। ऐसी स्थिति में यह बीमारी लगभग लाइलाज हो चुकी होती है।
निःसंदेह, यदि किसी व्यक्ति को कैंसर से बचाव करना है या कोई देश अपने को कैंसर मुक्त राष्ट्र बनाने का सपना देखता है तो उसे अपने देश में धड़ल्ले से बिक रहे मादक व नशीले पदार्थों व शराब की फैक्ट्रियों पर राजस्व की चिंता कई बगैर रोक लगाने के लिए कदम उठाने होंगे। यहां तक कि मोटापे को बढ़ाने का कारण बन रहे जंक फूड पर फैट टैक्स लागू कर इनके सेवन से आमजन को बचाने के लिए प्रयत्न करने होंगे।
कैंसर को लेकर जो प्रमुख बात निकलकर सामने आ रही है वो है लोगों की इस रोग के प्रति अगंभीरता। इससे पता लगता है कि समाज में एड्स की तरह कैंसर के रोगियों के प्रति भी भेदभाव बरकरार है इसलिए लोग शीघ्रता से इस रोग को उजागार करने में संकोच करते हैं। हमें इस रोग से जुड़े मिथकों व विकृत मानसिकता को मिटाने के लिए जन-जागृति कार्यक्रमों में तेजी लानी होगी।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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