खेल अवार्ड से राजीव गांधी का नाम हटाने पर क्यों तिलमिला गई है कांग्रेस पार्टी?
केंद्र सरकार ने शुक्रवार को देश के सर्वोच्च खेल पुरुस्कार का नाम बदलने का फैसला क्या ले लिया कि कांग्रेस पार्टी तिलमिला उठी है
अजय झा। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को देश के सर्वोच्च खेल पुरुस्कार का नाम बदलने का फैसला क्या ले लिया कि कांग्रेस पार्टी तिलमिला उठी है. राजीव गांधी खेल रत्न अवार्ड का नाम बदल कर ध्यानचंद खेल रत्न अवार्ड कर दिया गया है, इसके बाद कांग्रेस पार्टी (Congress Party) के प्रमुख प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला (Randeep Surjewala) ने इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की छोटी मानसिकता का प्रतीक बताया और हाथ ही हाथ सलाह दे डाली की अहमदाबाद और नई दिल्ली के क्रिकेट स्टेडियम, जो कि नरेन्द्र मोदी और पूर्व वित्त मंत्री स्वर्गीय अरुण जेटली के नाम पर है, का भी नाम बदल कर देश के बड़े खिलाड़ियों के नाम पर रख दिया जाए.
सुझाव तो सही है पर लगता है कि कांग्रेस पार्टी शायद भूल गई कि देश में कितने स्टेडियम नेहरू-गांधी परिवार के नाम पर हैं. जब अहमदाबाद के नवनिर्मित क्रिकेट स्टेडियम, जो कि विश्व का सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर रखा गया तो बहुत लोगों को यह बात अच्छी नहीं लगी. फिर नई दिल्ली के फिरोजशाह कोटला स्टेडियम का नाम बदल कर अरुण जेटली स्टेडियम कर दिया गया, जो बहुत सारे दिल्लीवासियों को थोड़ा अटपटा भी लगा.
देश में खिलाड़ियों की जगह ज्यादातर स्टेडियमों का नाम क्रिकेट प्रशासकों के नाम पर है
इसके पीछे तर्क था कि मोदी और जेटली पूर्व में गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन और दिल्ली डिस्ट्रिक्ट एंड क्रिकेट एसोसिएशन (DDCA) के अध्यक्ष थे. देश में एक गलत परंपरा बन गयी है कि जहां बड़े खिलाड़ियों के सम्मान में सिर्फ स्टैंड ही उनके नाम पर रखा जाता है, स्टेडियम का नाम क्रिकेट प्रशासकों के नाम पर होता है. जैसे कि चेन्नई में एम.ए. चिदंबरम स्टेडियम, बेंगलुरु में एम. चेन्नास्वामी स्टेडियम, मुंबई में एस.के. वानखेड़े स्टेडियम… लिस्ट काफी लम्बी है.
सुरजेवाला ने आगे कहा, "अब शुरुआत हो ही गई है, तो अच्छी शुरुआत करिए और सबसे पहले नरेन्द्र मोदी स्टेडियम और अरुण जेटली स्टेडियम का नाम भी बदलकर मिल्खा सिंह स्टेडियम रख दीजिए तो पूरा देश आपके इस फैसले से सहमत होगा. दुर्भाग्य ये है कि मोदी जी को बड़ी लकीर खिंचनी नहीं आती, वो दूसरों की लकीरें मिटाने की कोशिश करते रहते हैं. इसलिए खिलाड़ियों का बजट भी काट देते हैं. पर मेजर ध्यानचंद जो हमारे पुरोधा खिलाड़ी थे, उनके नाम पर कुछ भी रखा जाएगा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उसका स्वागत करती है."
कांग्रेस को पता होना चाहिए कि देश के कितने सरकारी इमारतों के नाम नेहरू-गांधी परिवार के नाम पर हैं
कांग्रेस पार्टी के विद्वान प्रवक्ता को शायद याद नहीं है कि देश में कितने स्टेडियम जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के नाम पर है. नई दिल्ली का जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गोवा, पुणे और नागपुर में भी स्टेडियम नेहरू को सम्पर्पित हैं. हम यहां सिर्फ बड़े शहरों की ही बात कर रहे हैं जहां अंतर्राष्ट्रीय खेलों का आयोजन होता है, छोटे शहरों को भी अगर इसमें शामिल करें तो लिस्ट बहुत बड़ी हो जाएगी. जाने क्यों इंदिरा गांधी के नाम पर किसी बड़े शहर में स्टेडियम का नाम नहीं रखा गया, पर इसकी क्षतिपूर्ति राजीव गांधी के नाम पर हुई जिनके नाम पर देश में कम से कम पांच स्टेडियम हैं, जिसमे से हैदराबाद का क्रिकेट स्टेडियम भी शामिल है. तो क्या कांग्रेस पार्टी और सुरजेवाला इसके लिए सहमत हैं कि इन सभी स्टेडियम का भी नाम बदल कर देश के बड़े और लोकप्रिय खिलाड़ियों के नाम पर रख दिया जाए?
बड़े और महान व्यक्तियों के नाम पर स्टेडियम, सड़क, एयरपोर्ट इत्यादी दूसरे देशों मे भी होते हैं, पर उन देशों में ऐसा उनके सम्मान में होता है, देश के प्रति उनके योगदान को याद रखने के लिए होता है, पर भारत में इसे चमचागिरी की कला को निखारने के लिए किया जाता रहा है. इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है की महात्मा गांधी के नाम से कहीं अधिक नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के नाम की तख्तियां ज्यादातर शहरों में दिखती हैं. एयरपोर्ट, पोर्ट, स्मारक, पार्क, यूनिवर्सिटी, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, सरकारी योजनाएं, ऐसा क्या है कि जो इस महान परिवार के नाम पर नहीं है? यही नहीं, नई दिल्ली में तीन मूर्ति भवन और एक सफदरजंग रोड जो नेहरू और इंदिरा गांधी का आवास होता था, उनकी मृत्यु के पश्चात उनके नाम पर स्मारक में तब्दील हो गया.
दिल्ली में सैकड़ों एकड़ जमीन पर जहां उनका अंतिम संस्कार हुआ अब उनके नाम पर स्मारक बन गया है. शुरुआत हुई महात्मा गांधी से, जिस बंगले में उनकी हत्या हुई उनके नाम पर स्मारक बन गया, जहां उनका अंतिम संस्कार हुआ वहां राजघाट बन गया, और फिर नेहरू की बारी आई. राजघाट के बगल में नेहरू का अंतिमसंस्कार हुआ और वह शांतिवन बन गया. शांतिवन मानो जैसे नेहरू-गांधी परिवार का निजी श्मशान बन गया हो. इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, संजय गांधी सभी की अंतिम क्रिया वहीं या उसके आसपास की गयी.
फिर बारी आई देश के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की. शास्त्री अल्प समय तक ही प्रधानमंत्री रहे देश उन्हें आज भी याद करता है. 1947 में पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर के एक तिहाई हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया और नेहरू सरकार लाचार दिखी. फिर 1962 के युद्ध में चीन ने भारत को हराया और भारतीय जमीन पर कब्ज़ा कर लिया और नेहरू सरकार कुछ नहीं कर पाई. लेकिन 1965 के युद्ध में जब शास्त्री प्रधानमंत्री थे तो भारत लाचार नहीं था, भारत ने पाकिस्तान को बुरी तरह पराजित किया और देश का स्वाभिमान जाग उठा. लिहाजा जिस बंगले में वह रहते थे वह लालबहादुर शास्त्री स्मारक बन गया तथा राजघाट और शांतिवन के पास जहां उनका अंतिम संस्कार हुआ उसे विजय घाट नाम दिया गया.
स्मारक का नाम दे कर होता था सरकारी बंगलों पर कब्जा
एक सिलसिला चल पड़ा कि सरकारी बंगलों को स्मारक बना दिया जाए और दिल्ली में ही उनका अंतिम संस्कार हो और वहां पार्क बन जाए. शुक्र है कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने नई दिल्ली राजधानी क्षेत्र जिसे लुटियन जोन के नाम से भी जाना जाता है, एक भूतिया शहर बनने से बचा लिया. सरकार ने निर्णय लिया कि अब किसी और बंगले में सरकारी स्मारक नहीं बनेगा. 2014 में मोदी सरकार के गठन के बाद जिस तरह से चौधरी चरण सिंह के नाम पर उनके पुत्र अजीत सिंह ने एक सरकारी बंगले पर जबरदस्ती कज्बा कर रखा था, उन्हें वहां से बहार फेंक दिया गया.
उसके पहले मीरा कुमार ने भी जगजीवन राम स्मारक के नाम एक बंगला पर कब्ज़ा कर लिया था और मायावती ने बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशी राम स्मारक के नाम पर एक बंगला कब्जा लिया था. इस अवैध कब्ज़े का तरीका काफी आसान था ताकि उन नेताओं का परिवार नई दिल्ली के सरकारी बंगलों में और सरकारी खर्च पर मज़े करते रहे. बंगले के बाहर स्मारक की तख्ती लग जाती थी, एक कमरे में उन नेताओं के निजी जीवन से जुड़े कुछ सामान, जैसे उनके कपडे़, जूता, चप्पल, चस्मा, किताबें, इत्यादी स्मारक के नाम पर रख दी जाती थी और बाकी के पुरे बंगले में अवैध रूप से उनका परिवार मौज करता रहता था.
क्या कांग्रेस बताना चाहती थी कि देश में सिर्फ तीन महान नेता पैदा हुए थे?
अगर पहले वाजपेयी सरकार और बाद में मोदी सरकार ने सख्त फैसले नहीं लिए होते तो ना सिर्फ नई दिल्ली भूतों का और स्मारकों का शहर बन जाती बल्कि आने वाले इतिहास में ऐसा लगने लगता कि भारत में सिर्फ तीन ही महान नेता पैदा हुए हैं– जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी. चमचागिरी की हद तब हो गयी जब नई दिली के विख्यात कनाट सर्किल और कनाट प्लेस का नाम बदल कर इंदिरा चौक और राजीव चौक कर दिया गया. जो अब सिर्फ सरकारी फाइल में ही सीमित रह गया है क्योंकि दिल्ली के लोगों ने उसे नकार दिया और आज भी वह मौज-मस्ती और खरीददारी के लिए CP ही जाते हैं. पता नहीं सुरजेवाला और राहुल गांधी उस जगह को इंदिरा चौक और राजीव चौक ही कहते हैं या फिर CP.
जरूरत है कि किसी बड़े व्यक्ति या नेता के नाम को इतिहास में दर्ज कराने की परंपरा पर पूर्ण विराम लगे. अभी तो सिर्फ एक पुरस्कार के नाम से ही राजीव गांधी का नाम हटा है और कांग्रेस पार्टी तिलमिला गयी. परिवार के नाम से एयरपोर्ट और स्टेडियम का नाम भी बदल दिया गया तो फिर यह सोचने वाली बात होगी कि उसपर कांग्रेस पार्टी की क्या प्रतिक्रिया होगी. लगता है कि कांग्रेस पार्टी को इस मानसिकता से उबरने में समय लगेगा कि देश उनकी जागीर नहीं है और भारत में अन्य बड़े और महान नेता भी पैदा हुए हैं.