हम किसे शहीद कहें!
मारे गए सैनिक को 'शहीद' न कहने को लेकर सेना ने अपने सभी कमांड को एक पत्र लिखा है
राजीव रंजन
मारे गए सैनिक को 'शहीद' न कहने को लेकर सेना ने अपने सभी कमांड को एक पत्र लिखा है. सेना ने अपने परिपत्र (सर्कुलर) में यह कहा है कि देश के लिए जान देने वाले सैनिक को 'मार्टर' यानी 'शहीद' कहा जाता है जो सही नहीं है. सही मायने में 'शहीद' शब्द का प्रयोग उस व्यक्ति के लिए किया जाता है जिसकी मृत्यु सजा के तौर पर हुई हो या जिसने धर्म के लिए त्याग करने से मना कर दिया हो अथवा वह आदमी अपनी राजनीतिक या धार्मिक सोच के लिए मारा गया हो.
सेना ने दो फरवरी को जारी अपने पत्र में यह भी कहा है कि देश की सुरक्षा और एकता के लिए कुर्बानी देने वाले सैनिकों को लिए छह शब्दों के इस्तेमाल का सुझाव दिया गया है. इन शब्दों में किल्ड इन एक्शन (कार्रवाई के दौरान मृत्यु) ,लेड डाउन देयर लाइफ्स (अपना जीवन न्यौछावर करना), सुप्रीम सेक्रिफाइस फॉर नेशन ( देश के लिए सर्वोच्च बलिदान), फॉलन हीरोज (लड़ाई में मारे गए हीरो), इंडियन आर्मी ब्रेव्स (भारतीय सेना के वीर) , फॉलन सोल्जर्स (ऑपरेशन में मारे गए सैनिक) शामिल है .
सेना को यह स्पष्टीकरण तब देना पड़ा जब उन्होंने पाया कि सीमा पर या आतंकियों के साथ मुठभेड़ मारे जाने वाले सैनिकों को लेकर सेना के कुछ अधिकारी और मीडिया में 'शहीद' शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं जो वास्तव में ठीक नही है. रक्षा मंत्रालय ने भी पहले कई बार कहा है कि ऐसे जवानों के लिये 'शहीद' अधिकारिक शब्द नही है .
गृह मंत्रालय ने भी इसको लेकर 22 दिसंबर 2015 को लोक सभा में एक लिखित जवाब में कहा कि रक्षा मंत्रालय के मुताबिक 'शहीद' शब्द का प्रयोग सेना में ऑपरेशन या कार्रवाई के दौरान मारे गए सैनिकों के संदर्भ में नही किया जाता है और न हीं सेन्ट्रल आर्म्ड पुलिस बल या असम पुलिस के जवानों के लिये, यदि वह किसी ऑपरेशन में मारे गए हों.
ऐसे ही 16 जुलाई 2019 को लोक सभा में गृह राज्य मंत्री से आतंकवादी हमलों में अपनी जान गंवाने वाले अर्धसैनिक बलों के जवानों को 'शहीद' का दर्जा देने के बारे में लिखित प्रश्न पूछा गया तो उन्होने कहा कि ऐसा कोई अधिकारिक नामकरण (नोमेनक्लेचर) नहीं है . गृह मंत्रालय ने कार्रवाई में अपनी जान गंवाने वाले केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल और असम राइफल्स के निकटतम सम्बन्धियों को ऑपरेशन कैजुअल्टी प्रमाण पत्र जारी करने के अनुदेश जारी किए है .
सेना के पत्र में यह भी कहा गया है कि जिन भारतीय सैनिकों ने देश की संप्रुभता और सम्मान के लिये अपनी जान दी हो, उनके गौरव और स्मृति में 'शहीद' के बजाए उपरोक्त शब्दों का इस्तेमाल किया जाए.दरअसल 'शहीद' कहने की परिपाटी की शुरुआत सन 1990 में हुई. मीडिया और सैन्य टिप्पणीकारों के एक तबके ने किसी भी सैन्य कार्रवाई में मारे गए जवानों को 'शहीद' कहना शुरू कर दिया. इस मसले पर सेना का कहना है कि इस शब्द का सीधा संबंध धार्मिक भावनाओं से है.