इस देश के नेता औरतों पर जब भी मुंह खोलते हैं, गोबर ही उगलते हैं
कर्नाटक विधानसभा में जो हुआ, उस पर इस वक्त लोगों को बहुत गुस्सा आ रहा है
मनीषा पांडेय कर्नाटक विधानसभा में जो हुआ, उस पर इस वक्त लोगों को बहुत गुस्सा आ रहा है. औरतों को तो आ ही रहा है, मर्दों को भी कम नहीं आ रहा है. हालांकि जिस वक्त कर्नाटक विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस विधायक केआर रमेश कुमार औरतों को लेटकर रेप इंजॉय करने की हिदायत दे रहे थे, उस वक्त पूरा सदन ठहाके लगा रहा था. कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष विश्वेश्वर हेगड़े कागेरी भी ठहाके लगा रहे थे. किसी ने न उन्हें टोका, न विरोध किया, न आपत्ति जताई. उल्टे मर्दानी एकता का परिचय देते हुए ठहाकों में पूरा सदन शामिल हुआ. सदन में तो हर पार्टी, हर गुट के नेता थे. पार्टियां और गुट अलग हों तो भी मर्दवादी स्त्रीद्वेष में सारे मर्द एक हैं. सब एक साथ हैं.
विधानसभा में आखिर ऐसा हुआ क्या कि केआर रमेश कुमार के दिमाग का सारा कचरा बहकर सदन में निकल आया. विधानसभा में कर्नाटक में आई बाढ़ और उससे फसलों और किसानों को हुए नुकसान पर बात होनी थी. विधायक कह रहे थे कि पहले इस मुद्दे पर बात हो. सदन में हंगामा बरपा हुआ था. सभी चिल्ला रहे थे. इस पर स्पीकर हेगड़े ने कहा, "मुझे लगता है कि अब इसे इंजॉय करना चाहिए. मैं फैसला किया है कि अब इन लोगों को रोकने की कोशिश नहीं करूंगा. आप लोग चर्चा करते रहिए."
स्पीकर की इस बात पर विधायक रमेश कुमार ने अपना मुंह खोला और बोले, "एक पुरानी कहावत है. जब बलात्कार को रोका नहीं जा सकता तो लेटकर मजे लीजिए."
जनता के पैसों से, जनता के वोट से चुनकर विधानसभा में पहुंचा जनता का एक प्रतिनिधि उस सदन में बैठकर इस देश की आधी आबादी के लिए कह रहा था कि वो बलात्कार को रोक नहीं सकतीं तो उसके मजे ले. वो इस देश में हर साल रेप का शिकार होने वाली 28 लाख औरतों से कह रहा है कि वो रेप को रोक नहीं सकतीं, इसलिए उसके मजे लें. वो आदमी ऐसा कह रहा था क्योंकि वो न सिर्फ ऐसा सोचता है, बल्कि भरे सदन में ऐसा कहने की हिम्मत भी रखता है. वो हिम्मत रखता है क्योंकि उसे यकीन है कि पार्टी और विचारधारा एक न होने के बावजूद मर्दानी एकता में उस सदन में बैठे सारे मर्द एक साथ हैं. वो कभी उसी कर्नाटक विधानसभा में बैठकर पोर्न देखते पकड़े जाते हैं, कभी उत्तर प्रदेश में भरे मंच से बलात्कारियों के लिए कहते हैं कि "लड़के हैं, लड़कों से गलती हो जाती है."
और ये सब कहने, करने का नतीजा क्या होता है? सदन में बैठकर पोर्न देखने वाला विधायक डिप्टी सीएम बन जाता है. बलात्कार को मामूली गलती बताने वाले नेता की पद-प्रतिष्ठा-मान-गौरव को एक सूई की नोक बराबर नुकसान नहीं होता. दुनिया के सबसे ताकतवर देश की सबसे ताकतवर कुर्सी पर बैठकर बिल क्लिंटन एक 23 साल की इंटर्न को मॉलिस्ट करता है और देश उसे दोबारा अपना राष्ट्रपति चुन लेता है. एक दूसरा नेता टेप में ये कहते पकड़ा जाता है कि वो औरतों की योनि दबोचता फिरता है और फिर भी वो राष्ट्रपति बन जाता है
ये शर्मनाक चेहरा अकेले कर्नाटक का, उत्तर प्रदेश का, मेरे देश का या दुनिया के सबसे ताकतवर देश का नहीं है. ये शर्मनाक चेहरा पूरी दुनिया के मर्दों का है. हर उस मर्द का, जो लॉकर रूम से लेकर अपने ड्रॉइंब रूम और विधानसभा में बैठकर रेप फैंटेसी कर रहा है और मुंह से बक भी रहा है.
इन मर्दों को कोई उदाहरण देना हो, कोई बात समझानी हो, कोई मुहावरा कहना हो, कोई उपमा, कोई रूपक, कोई अलंकार चाहिए हो तो इनकी सारी बात औरत के शरीर से शुरू होती है और औरत के शरीर पर खत्म. बकवास करते हुए इन्हें ये भी याद नहीं रहता कि ये खुद किसी औरत के शरीर से ही पैदा हुए हैं. जिन बच्चों का बाप बने इतराते हैं, उन बच्चों को किसी औरत ने ही जन्म दिया है. खुद इनकी बेटी एक औरत है. लेकिन नहीं, दिमागी कचरे का क्या करें. इतना ठूस-ठूसकर भरा हुआ है कि लाख न चाहने के बावजूद छलककर गिर ही जाता है.
यूं तो मर्दों का ये लॉकर रूम टॉक मर्दों के लिए कोई नई बात नहीं है. लेकिन बात यहां ये है कि ये लॉकर रूम टॉक बंद कमरे में और मर्दानी महफिल में नहीं, बल्कि विधानसभा के भीतर हो रहा था.
कर्नाटक विधानसभा में चार महिला सदस्य हैं- शीला एफ. ईरानी, शशिकला, अनिता कुमारस्वामी और प्रमिला नेसार्गी. मुझे पता नहीं कि उस वक्त ये चारों महिलाएं सदन में मौजूद थीं या नहीं. वीडियो में नहीं दिखाई देता कि ये चार महिलाएं उस वक्त क्या सोच रही थीं, जब उनके बीच का एक कुलीग औरतों को बलात्कार को इंजॉय करने के लिए कह रहा था और बाकी मर्द इस बात पर ठहाके लगा रहे थे.
मैं ये नहीं पूछ रही कि वो क्या कर रही थीं क्योंकि मुझे पता है कि वो कुछ नहीं कर रही होंगी. अगर इस बात से उन्हें तकलीफ पहुंची, दुख हुआ, डर लगा तो भी ज्यादा संभावना इसी बात की है कि उन्होंने कुछ नहीं किया होगा. न पलटकर जवाब दिया होगा, न चीखी होंगी, न हंगामा किया होगा.
इसलिए मैं ये नहीं सोच रही कि वो क्या कर रही थीं. मैं सोच रही हूं कि वो क्या महसूस कर रही थीं. क्या महसूस करती हैं हम सब औरतें, जब हमारे आसपास के मर्द, सत्ता की जिम्मेदार कुर्सियों पर बैठे मर्द, असीमित अधिकार और पावर रखने वाले मर्द इस तरह सोचते हैं, इस तरह बात करते हैं. हम सीधे उस मिसोजिनी के शिकार भले न हों, लेकिन ये स्त्रीद्वेष छनकर हम तक भी पहुंचता है. कोई औरत, कोई लड़की इस द्वेष से बची हुई नहीं है.
इस वक्त जब चुनाव सिर पर हैं और कांग्रेस की कमान प्रियंका गांधी ने संभाल रखी हैं, इस वक्त जबकि कांग्रेस का चुनावी स्लोगन ही है, "लड़की हूं, लड़ सकती हूं," इस देश की 70 करोड़ लड़कियां और औरतें उनकी ओर उम्मीद से देख रही हैं. वो उम्मीद कर रही हैं कि औरतों को बलात्कार का आनंद उठाने की नसीहत देने वाले इस नेता को का अपराध सिर्फ माफी मांगकर नहीं धुल जाएगा. पार्टी उसके खिलाफ इतना गंभीर एक्शन लेगी, जो बाकी मर्दों के लिए भी सबक होगा. सबके दिमागों की गंदगी तो साफ नहीं की जा सकती, लेकिन हर मर्द को से मैसेज जाना चाहिए कि अगर उसका दिमागी कचरा बहकर बाहर आया तो यह अक्षम्य अपराध होगा. उसे इसकी कीमत चुकानी होगी. मर्द इंयानियत के तकाजे से इंसान नहीं बनने वाले. सिर्फ इस डर से बनेंगे कि पार्टी की मेंबरशिप छिन जाएगी, कुर्सी छिन जाएगी, सत्ता छिन जाएगी, विधायकी छिन जाएगी, पावर छिन जाएगा, मुनाफा छिन जाएगा