नई परिस्थितियों में ब्याज दरों पर आरबीआई का रुख क्या होगा, बुधवार को एमपीसी की महत्वपूर्ण बैठक

आरबीआई की मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी (एपीसी) इस बार अर्थव्यवस्था की स्थिति व ब्याज दरों पर अलग परिस्थितियों में फैसला लेने वाली है

Update: 2021-10-05 18:11 GMT

मदन सबनवीस आरबीआई की मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी (एपीसी) इस बार अर्थव्यवस्था की स्थिति व ब्याज दरों पर अलग परिस्थितियों में फैसला लेने वाली है। जहां वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति अभी विपरीत है, स्थानीय परिस्थितियां बेहतर दिख रही हैं लेकिन कुछ अनिश्चितताएं हैं। महंगाई दर 5% के आसपास है, जो कमेटी के लिए राहतभरी बात है, लेकिन भविष्य को लेकर नपातुला दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है।

पहले वैश्विक मुद्दों पर नजर डालते हैं। पहला, फेडरल (केंद्रीय) बैंक कभी न कभी ब्याज दरें बढ़ा सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वृद्धि बढ़ी है और बनी रहेगी। हालांकि महंगाई बढ़ने की आशंका बनी हुई है। दूसरा, कच्चे तेल की कीमतें अचानक बढ़कर 80 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच चुकी हैं। ऐसा लंबे समय तक रह सकता है।
ठंड आने पर पश्चिमी देशों में तेल की मांग बढ़ेगी। ओपेक प्लस की आपूर्ति में कटौतियों को वापस नहीं लिया जा सकता और मौजूदा फैसिलिटी तुरंत उत्पादन नहीं बढ़ा सकतीं। तीसरा, चीन की भारी कर्ज में डूबी बड़ी रियल एस्टेट कंपनी एवरग्रांडे की असफलता का असर वैश्विक वृद्धि पर होगा। इस तरह भारतीय अर्थव्यवस्था के मूल्यांकन में एमपीसी को वैश्विक कारकों को भी ध्यान में रखना होगा
तेल की बढ़ती कीमतें और अमेरिका के केंद्रीय बैंक की दरें उच्च होने की संभावनाओं ने बाजार को डरा दिया है। इसका असर भारतीय बॉन्ड पर भी पड़ा है, जहां 10 वर्ष का लाभ 6.20% से ज्यादा है, भले ही आरबीआई ने दूसरी छमाही के लिए अपरिवर्तित ऋण कार्यक्रम की घोषणा की है। चीन का निश्चिततौर पर वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि पर असर होगा, जिससे निर्यातों में बदलाव आएगा। अमेरिका में ऊंची ब्याज दरों का असर उभरते बाजारों में नकदी प्रवाह, एफडीआई और एक्सचेंज रेट पर दिखेगा।
इस पृष्ठभूमि के साथ आरबीआई क्या करेगा? अभी महंगाई घट रही है, जिसके पीछे मुख्यत: कम होती खाद्य कीमतें हैं। सरकार ने खरीफ की सामान्य फसल का संकेत दिया है, इससे इस पक्ष में दबाव कुछ कम होगा, शायद खाद्य तेलों को छोड़कर। मुख्य महंगाई 6% के आसपास बनी हुई है, जबकि ईंधन महंगाई उच्च स्तर पर है, मुख्यत: टैक्स के कारण। यह अभी और बढ़ेगी। इस तरह कुल ऊपरी महंगाई भले कम दिखे, एमपीसी अंदरूनी महंगाई को लेकर चिंतित रहेगी, जो दिसंबर के बाद बदलेगी।
इन परिस्थितियों में आरबीआई ब्याज दरों के मामले में यथास्थिति में बनाए रहेगा और इसके लिए तर्क होगा कि महंगाई के आंकड़े कम हुए हैं और आने वाले कुछ महीने ऐसे ही रहेंगे। वृद्धि में सकारात्मक संकेत हैं और अगले कुछ महीने भी यही स्थिति रहेगी क्योंकि कोविड की तीसरी लहर की आशंका कम लग रही है। इससे विभिन्न सेक्टर और ज्यादा खुल सकेंगे और उनका बेहतर उपयोग हो पाएगा। इसका मतलब है फिलहाल ब्याज दरें बढ़ने की संभावना नहीं है।
बाजार आरबीआई से क्या जानना चाहेगा? पहला, केंद्रीय बैंक का वृद्धि पर क्या कहना है। मौजूदा पूर्वानुमान 9.5% है, जबकि सरकार का अनुमान दो अंकों में है। क्या आरबीआई बदलती परिस्थितियों के साथ महंगाई पर अपना रुख बदलेगी? सेवाओं में रिकवरी भी स्थिर दिख रही है और अगर इन सेक्टर को मार्च तक 75% क्षमता से काम करने दिया गया तो वृद्धि और तेजी से होगी।
दूसरा, महंगाई पर रुख है। यह उलझनभरा है क्योंकि इस समय ट्रेंड नीचे की ओर है। लेकिन ऐसी चीजें हैं जो इसे बढ़ा भी सकती हैं। आरबीआई का पहले अनुमान 5.7% था। ऐसा माना जा रहा है कि आरबीआई महंगाई को लेकर ज्यादा सचेत है। केयर रेटिंग्स का इस साल के लिए पूर्वानुमान 5.5-6% है।
देखना यह होगा कि क्या आरबीआई इस मामले में रुख में कोई बदलाव लाता है या नहीं। और अंत में बाजार आरबीआई से जानना चाहेगा कि आगे की क्या योजना है। फिलहाल तंत्र में सरप्लस लिक्विडिटी है और आरबीआई के फंड बढ़ाने वाले उपायों से सरप्लस बढ़ रहा है।
आरबीआई ने अपनी पिछली नीति में कहा कि रिवर्स रेपो नीलामियों को लिक्विडिटी की तंगी का संकेत नहीं मानना चाहिए, बल्कि बैंकों के लिए सरप्लस को रखने के लिए दिए जा रहे विकल्पों में से एक माननना चाहिए। बाजार यह देखेगा कि क्या आरबीआई इसी पर और संकेत देगा, जो रिवर्स रेपो दर में बढ़ोतरी के साथ शुरू होगा। इसलिए इस बार बाजार की नजर दरों से ज्यादा संकेतों पर रहेगी।


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