ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की लम्बी सियासी पारी का क्या है रहस्य?

ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की लम्बी सियासी

Update: 2022-01-07 07:19 GMT
अजय झा.
क्या कभी सोचा है कि किस वजह से कोई व्यक्ति सालों साल जनता के बीच में लगातार लोकप्रिय हो सकता है? कारण तो कई हो सकते हैं पर सबसे सीधा जवाब है कि इसके लिए आपको नवीन पटनायक (Naveen Patnaik) की तरह आचरण करना होता है. 5 मार्च को पटनायक को ओडिशा के मुख्यमंत्री के रूप में 22 वर्ष हो जाएंगे. अभी तक वह भारत की इतिहास में लगातार मुख्यमंत्री बने रहने के रिकॉर्ड में तीसरे स्थान पर है. सिक्किम के पूर्व मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग के नाम सर्वाधिक 1994 से 2019 तक 24 साल 165 दिन का रिकॉर्ड है, जो उन्होंने पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय ज्योति बसु के रिकॉर्ड को तोड़ कर अपने नाम किया था. बसु 1977 से 2000 के बीच लगातार 23 वर्ष 137 दिन तक मुख्यमंत्री रहे थे. ओडिशा में लोकसभा के साथ-साथ, 2024 में विधानसभा चुनाव होगा, जिस समय तक पटनायक ज्योति बसु का रिकॉर्ड तोड़ चुके होंगे और अगर 2024 में वह फिर से मुख्यमंत्री चुने गए और पद पर कम से कम 6 महीने भी रहे तो यह रिकॉर्ड उनके नाम हो जाएगा.
जब कोई नेता एक ही पद पर लम्बे समय से रहता है तो उसमें घमंड और अहंकार आ जाता है. पर पटनायक शुरू से ही मृदुभाषी और राजनीति में रह कर भी सिर्फ काम करने में विश्वास रखते हैं. ओडिशा की जनता के बीच उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है, जिसे हम आंकड़ों से समझने की कोशिश करते हैं. जनता दल से अलग हो कर नवीन पटनायक ने 1997 में अपने पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री और ओडिशा के भूतपूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक के नाम पर बीजू जनता दल (बीजेडी) की स्थापना की. 2000 और 2004 के चुनाव में वह भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाली एनडीए के घटक थे. 2000 में ओडिशा के 147 सीटों वाली विधानसभा में बीजेडी को 68 सीटों पर सफलता मिली और 2004 में 61 सीटों पर. 2009 का चुनाव आते-आते वह एनडीए से अलग हो गए और बीजेडी 103 सीटों सफल रही. 2014 में यह आंकड़ा बढ़ कर 117 सीटों पर पहुंच गया और 2014 में बावजूद मोदी लहर के बीजेडी ने 112 सीटों पर जीत हासिल की.
राज्य भाषा ओड़िया नहीं बोल पाते नवीन पटनायक
विवादों और चर्चों से दूर रह कर, बिना केंद्र की राजनीति में दखल दिए, केंद्र सरकार से तकरार किए या कई अन्य मुख्यमंत्रियों की तरह प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने की जगह पटनायक सिर्फ काम करने और राज्य के विकास पर ही अपना ध्यान केन्द्रित रखते रहे हैं. उनमें कई कमियां भी हैं और शायद वह भारत के इकलौते ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो अपने राज्य की भाषा नहीं बोल सकते. देहरादून और दिल्ली में पढ़ाई और 2000 में मुख्यमंत्री बनने तक उनका ज्यादातर जीवन दिल्ली में ही गुजरा. वह अंग्रेजी, हिंदी, पंजाबी और फ्रेंच भाषा धाराप्रवाह बोलते हैं, पर लगभग 22 वर्ष तक मुख्यमंत्री बने रहने के बावजूद वह टूटी फूटी ओड़िया ही बोल पाते हैं.
उनका भाषण रोमन लिपि में लिखा होता है, उसे पढ़ कर ही वह अपनी बात जनता तक उनकी भाषा में रखते हैं. एक पल को सोचिए कि बिना बंगाली बोले ममता बनर्जी का पश्चिम बंगाल में क्या हाल होता, या फिर बिना मराठी बोले उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री होते और अगर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन तमिल की जगह हिंदी और अंग्रेजी ही बोलते तो क्या वह कभी जनता के नेता बन पाते? शायद नहीं. इसीलिए नवीन पटनायक अन्य मुख्यमंत्रियों से अलग हैं.
दूसरे मुख्यमंत्रियों से अलग हैं नवीन पटनायक
ओडिशा समुद्र तट पर बसा एक राज्य है और बंगाल की खाड़ी चक्रवाती तूफानों के लिए कुख्यात है. हर वर्ष छोटा या बड़ा तूफ़ान आता ही है. पिछले साल भी ओडिशा और पश्चिम बंगाल में आए तूफ़ान से काफी क्षति हुई. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ओडिशा गए और राज्य सरकार को केंद्र की तरफ से 500 करोड़ रूपये देने की घोषणा की और कहा कि केंद्र से एक टीम तूफ़ान से हुए तबाही का जायजा लेगी और अगर जरूरत पड़ी तो केंद्र सरकार और भी राशि देगी. नवीन पटनायक ने प्रधानमंत्री का धन्यवाद किया और कहा कि ओडिशा को और आर्थिक सहायता की जरूरत नहीं है, अगर जरूरत पड़ी तो राज्य सरकार स्वयं राहत कार्य करने में सक्षम है.
उसी दिन कुछ घंटों बात मोदी पश्चिम बंगाल पहुचे. ममता बनर्जी मीटिंग में देर से पहुंची और जब प्रधानमंत्री ने केंद्र की तरफ से 1,000 करोड़ रूपये देने की बात की तो ममता बनर्जी यह कहते हुए कि कुल नुकसान 10,000 करोड़ रुपयों का हुआ है गुस्से में मीटिंग से उठ कर चली गईं. दो मुख्यमंत्रियों में कितना फर्क हो सकता है, वह साफ़ दिखा. ओडिशा सरकार इसलिए सक्षम थी क्योंकि नवीन पटनायक ने भ्रष्टाचार पर नकेल कस रखी है और ममता बनर्जी और उनके निकटतम सहयोगियों पर अक्सर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाता रहता है.
क्या बीजेपी और बीजेडी फिर एक साथ आ सकते हैं?
हालांकि बीजेपी ओडिशा में अब कांग्रेस पार्टी को पीछे छोड़ते हुए प्रमुख विपक्षी दल बन चुकी है और बीजेडी और बीजेपी एक दूसरे के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं, पर नवीन पटनायक मोदी की तारीफ करते दिखते हैं और मोदी पटनायक की. संभव है कि 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बीजेडी और बीजेपी का एक बार फिर से गठबंधन हो जाए. संसद में शीतकालीन सत्र में बीजेडी अक्सर सरकार के पक्ष में खड़ी दिखी. और कल नवीन पटनायक ने एक ऐसी बात कह दी जिससे उनका राजनीति में कद और भी बड़ा हो गया है.
बुधवार को जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी को पंजाब से बिना रैली किए सुरक्षा कारणों से वापस लौटना पड़ा, क्योकि पंजाब की कांग्रेस पार्टी की सरकार प्रधानमंत्री को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकी, काफी बवाल मचा हुआ है. बीजेपी और कांग्रेस में द्वंद्व और एक दूसरे पर आरोप और प्रत्यारोप लगाना जारी है, पटनायक ने अन्य मुख्यमंत्रियों की तरह चुप रह कर यह तमाशा देखने की बजाय पंजाब सरकार की आलोचना यह कहते हुए की कि प्रधानमंत्री एक संवैधानिक संस्था हैं और हर राज्य का कर्त्तव्य होता है कि वह प्रधानमंत्री की पर्याप्त सुरक्षा का बंदोबस्त करे. इस पर कोई समझौता जनतंत्र में स्वीकार्य नहीं हो सकता.
बीजेडी और बीजेपी भले फिर से साथ आए या ना आए, पर नवीन पटनायक ने अपने भद्र मनुष्य होने का एक और उदाहरण दिया है और सबका मन मोह लिया है. ओडिशा में तो लोग उनके दीवाने हैं ही, और अब देश के अन्य राज्यों में भी लोगों ने यह मान लिया है कि राजनीति में भद्र मनुष्य अभी भी हैं. राजनीति करने और चुनाव जीतने के लिए ममता बनर्जी या चरणजीत सिंह चन्नी की तरह व्यवहार करना जरूरी नहीं है.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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