हालांकि, 19 सितंबर, 2021 को केरल ने देश भर में दर्ज किए गए 30,828 नए मामलों में से 19,653 यानी, 64 प्रतिशत मामले अपने यहां होने की सूचना दी। देखा जाए, तो 23 अगस्त से लेकर 19 सितंबर के बीच देश के कुल रोजाना नए मामलों में से आधे से अधिक केरल में ही मिले। मगर इसका यह अर्थ नहीं था कि केरल दूसरी लहर को नहीं संभाल सका। तथ्य यही है कि यहां मृत्यु-दर सबसे कम रही, 100 पुष्ट मामलों में 0.5 मौत। दरअसल, दूसरी लहर की शुरुआत फरवरी के मध्य से हुई थी और 24 अगस्त को आई नई उछाल से पहले मई की शुरुआत में खत्म हो गई थी। मगर केरल मार्च में इससे प्रभावित हुआ और 15 मई के बाद से वहां करीब 30-35 दिन शांति रही। इसके बाद फिर से संक्रमण बढ़ने लगा, जिसका कारण महामारी विज्ञानियों ने नए वेरिएंट को माना। केरल ने पहली लहर के दौरान अपनी लगभग 90 फीसदी आबादी की रक्षा की थी, जिसके कारण वे डेल्टा जैसे घातक वेरिएंट के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो गए। इस तरह की प्रवृत्ति अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले देशों में भी देखी गई है। मसलन, इजरायल ने महामारी के प्रसार को नियंत्रित किया और फरवरी, 2021 तक अपनी अधिकांश आबादी का टीकाकरण कर दिया, लेकिन अब वहां मामलों में तेजी दिख रही है।
जहां तक देश के बाकी हिस्सों का सवाल है, तो बुनियादी ढांचा और स्वास्थ्य योजना, दोनों मोर्चे पर हमारी स्थिति खराब रही। स्वास्थ्य सर्वेक्षण और विकास समिति ने 1946 में प्रत्येक 40 हजार की आबादी पर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, प्रत्येक 10-20 हजार की आबादी के लिए 75 बिस्तरों वाले अस्पताल के रूप में प्राथमिक इकाई व 650 बेड वाले अस्तपाल के रूप में माध्यमिक इकाई, और 2,500 बिस्तर वाले जिला अस्पतालों की सिफारिश की थी। 31 मार्च, 2019 तक देश में कुल 1,60,713 स्वास्थ्य उपकेंद्र, 30,045 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 5,685 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र थे, जो जाहिर तौर पर जरूरी स्वास्थ्य मानक के अनुरूप नहीं हैं। 2020 के अंत में 19 लाख बेड, 95 हजार आईसीयू बेड और 48 हजार वेंटिलेटर के साथ कोविड के खिलाफ हमारी जंग चल रही थी। यही वजह है कि दूसरी लहर में हमें पांच लाख आईसीयू बेड और 3.5 लाख स्वास्थ्यकर्मियों की जरूरत महसूस हुई।
साल 2020-21 में भारत ने अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.8 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, भारत स्वास्थ्य खर्च के मामले में 191 देशों में 184वें स्थान पर है। अमेरिका जीडीपी का 16 प्रतिशत इस मद में खर्च करता है, जबकि जापान, कनाडा, जर्मनी आदि देश जीडीपी का 10 फीसदी से अधिक हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं के हवाले करते हैं। अच्छी बात है कि केंद्र सरकार ने 2021-22 के आम बजट में स्वास्थ्य और कल्याण पर जीडीपी का करीब 2.5 से 3 फीसदी खर्च करने का वादा किया। इसकी जरूरत थी, क्योंकि भारत में प्रति हजार लोगों पर अस्पताल के 1.4 बिस्तर हैं, 1,445 लोगों पर एक डॉक्टर और 1,000 की आबादी पर 1.7 नर्स। कोविड-19 रोकथाम नीतियों के तहत हमने सभी स्वास्थ्य सुविधाओं को कोरोना संक्रमितों की देखभाल में झोंक दिया, जिससे बच्चों की डिलीवरी, प्रसव-पूर्व और प्रसव-बाद महिला की देखभाल, टीकाकरण सहित मातृ एवं बाल स्वास्थ्य जैसी जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हुईं।
इन तमाम दुश्वारियों को दूर करने और भविष्य में आने वाली किसी महामारी की तैयारी व नियमित स्वास्थ्य सेवा को सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने 25 अक्तूबर, 2021 को 'पीएम आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन' की घोषणा की। इसे 64,180 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जो अगले पांच साल में खर्च किए जाएंगे। केंद्र सरकार के अस्पतालों में 12 क्रिटिकल केयर ब्लॉक बनाए जाएंगे। राज्य स्तर पर 15 हेल्थ इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर, 17,788 ग्रामीण हेल्थ ऐंड वेलनेस सेंटर और 11,024 शहरी केंद्र भी बनेंगे। साल 2025-26 के अंत तक प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर 63 प्रथामिक स्वास्थ्य केंद्र, 97 सामुदायिक केंद्र और 134 जिला अस्पताल जैसे डायगनॉस्टिक सेंटर बनाए जाएंगे। यहां यह बताने की जरूरत नहीं है कि इनमें से कुछ पहले से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का हिस्सा हैं।
बहरहाल, साल की शुरुआत टीकाकरण से भी हुई। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, जनवरी में शुरू हुए टीकाकरण अभियान में अब तक 61 फीसदी वयस्क आबादी टीके की दोनों खुराक और 89 प्रतिशत पहली खुराक ले चुकी है। हालांकि, महामारी विज्ञानियों-विषाणु विज्ञानियों का मानना है कि समय के साथ कोविड टीकों की प्रभावशीलता कम हो सकती है। टीकाकरण के शुरुआती दो महीने में टीके बहुत ज्यादा कारगर नहीं होते, विशेषकर डेल्टा व ओमीक्रोन जैसे वेरिएंट के खिलाफ। यही वजह है कि टीकाकरण के बाद भी लोग कोविड का शिकार बने। अब किशोरों के लिए टीकाकरण शुरू करने की घोषणा की गई है और जरूरतमंदों को बूस्टर डोज भी दिए जाएंगे। नए साल में हमें टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाने की तरफ ध्यान देना होगा। इसके अलावा, कोविड महामारी के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली, आर्थिक तनाव और शिक्षण संस्थानों के बंद रहने से लोगों व बच्चों की मानसिक व शारीरिक सेहत भी प्रभावित हुई है। इसलिए नई योजनाओं के अनुपालन, स्वास्थ्य बजट में बढ़ोतरी और अनाथ बच्चों व बुजुर्गों का ख्याल आवश्यक है। हालांकि, आंकड़ों को अलग-अलग बांटकर उनका अध्ययन और नई योजनाओं में उनका समन्वय भी मौजूदा वक्त की एक बड़ी मांग है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)