विराट कोहली नाराज हैं और अगर उनके दावे सच हैं तो उनका नाराज होना बनता भी है

भारतीय क्रिकेट (Indian Cricket Team) का ड्रेसिंग रूम सड़कों पर आ गया है

Update: 2021-12-16 08:01 GMT

संजय बैनर्जी  भारतीय क्रिकेट (Indian Cricket Team) का ड्रेसिंग रूम सड़कों पर आ गया है, संवादहीनता की जिस स्थिति का बोर्ड पिछले कुछ वर्षों मे हिमायती दिखाई देता रहा है, उसकी अति ने आखिर ज्वालामुखी से निकले लावे की तरह मलबा फेंकना शुरू कर दिया है. लंबे समय से ऐसा नहीं देखा गया, जब भारतीय टीम के किसी कप्तान ने प्रेस कॉन्‍फ्रेंस मे अपने दिल की भड़ास निकाली हो और सिर्फ बोर्ड ही नहीं बोर्ड अध्यक्ष की बात को भी गलत साबित किया हो. जाहिर है, विराट कोहली (Virat Kohli) नाराज हैं, और अगर उनकी बातें मान ली जाएं तो उनका नाराज होना बनता भी है. कोहली कहते हैं कि साउथ अफ्रीका (India vs South Africa) टीम सलेक्शन से सिर्फ डेढ़ घंटे पहले उन्हे यह बताया गया कि टी-20 के बाद अब वह वन डे इंटरनेशनल मे भी भारतीय टीम के कप्तान नहीं होंगे.

हालाकि बोर्ड सूत्रों के अनुसार कोहली को 2 दिन का समय दिया गया था, लेकिन जब इस दौरान उन्होंने कप्तानी नहीं छोड़ी तो, उन्हे हटा दिया गया. बीसीसीआई (BCCI) अध्यक्ष सौरव गांगुली (Sourav Ganguly) कह चुके हैं कि बोर्ड ने कोहली को टी20 की कप्तानी से भी हटने के लिए मना किया था, पर खुद कप्तान कोहली ने ऐसी किसी भी बातचीत से इनकार कर दिया. सवाल यही है कि यहां गलतबयानी कौन कर रहा है, भारतीय टीम के कप्तान विराट कोहली या फिर बीसीसीआई अध्‍यक्ष सौरव गांगुली? सवाल यह है कि जब खुले मंच से इस तरह की बातें निकलने लगी हो तो मामला वहीं खत्म नहीं होता. "बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी' फिर यह तो भारतीय क्रिकेट है, जिसकी हर धड़कन नापने के लिए न जाने कितने दूरबीन लिए बैठे हैं.
कोहली और शास्त्री की जुगलबंदी
रवि शास्त्री (Ravi Shastri) का टी20 विश्व कप के बाद जाना तय था. उनकी और कोहली की जोड़ी में गजब का तालमेल था और ऐसा लगता है कि शास्त्री टीम के कोच कम और मैन मैनेजर ज्यादा थे. उन दिनों बोर्ड सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में चल रहा था. कोहली और शास्त्री हर गलत सही फैसले मे एकमत होते थे. बोर्ड की भूमिका प्रशासनिक मामलों तक ही आम तौर पर सीमित थी, खिलाड़ियों के चयन से लेकर मुकाबलों के परिणाम तक बोर्ड किसी भी तरह की दखलंदाज़ी से बचता रहा. बीच मे अनिल कुंबले भारतीय टीम के कोच के तौर पर चुने गए, लेकिन जल्दी ही उन्हे हटना पड़ा और फिर रवि शास्त्री ही कोच के तौर पर लंबी पारी खेल सके. कुंबले को असम्मान के साथ हटना पड़ा और अब वही सलूक विराट कोहली के साथ भी हुआ है. क्या वक्त ने खुद को सिर्फ दोहराया है?
अपने ही दांव मे उलझे कोहली
सवाल यह भी है कि कोहली ने आखिर क्या सोचकर टी20 की कप्तानी से हटने का फैसला किया. आईपीएल (IPL) में कभी खिताब न जीत सकने वाले कोहली ने पहले तो रॉयल चैलेंजर्स बेंगलोर (RCB) की कप्तानी से हटने की घोषणा की और फिर कुछ ही दिनों में टीम इंडिया की भी टी20 कप्तानी से हटने का फैसला ले लिया. आरसीबी की कप्तानी छोड़ने से कोहली के करियर पर कोई असर नहीं पड़ता , लेकिन भारतीय टीम की कप्तानी से अलग होना उन्हे परेशान कर गया. क्या कोहली ऐसा मान रहे थे कि बोर्ड उनसे इस फैसले पर दोबारा विचार करने का आग्रह करेगा? या इस फैसले से कोहली का टेस्ट और वनडे कप्तानी मे प्रभुत्व और मजबूत होगा? कोहली का यह खुद का फैसला हो या उनके सिपह सलाहकारों का, दांव उल्टा पड़ गया. बोर्ड को एक लाइन मिल गई कि सफेद गेंद क्रिकेट मे दो कप्तान नहीं होने चाहिए यानि एक कप्तान टेस्ट का होगा और दूसरा टी-20 और वनडे का. वैसे भी कोहली और शास्त्री के कुछ फैसलो पर लगातार सवालिया निशान लगते रहे, रविचंद्रन अश्विन जैसे अनुभवी खिलाड़ियों को लगातार बेंच पर बैठना पड़ा. टीम मे शामिल कुछ खिलाड़ियों को कमजोर प्रदर्शन के बाद लगातार मौके मिलते रहे, जबकि कुछ बेंच पर बैठकर ही अगली सीरीज से गायब होते रहे. कोहली अक्सर मीडिया और पूर्व क्रिकेटरो को प्रेस कॉन्‍फ्रेंस मे आड़े हाथ लेते रहे, उनकी नजर मे यह आउटसाइडर्स थे और इनकी बातों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं थी, यानि कई बार उनकी बातों से दंभ झलकता था. उनकी आलोचना इस बात के लिए भी होती थी कि मैदान पर उनकी भाव भंगिमाये भी क्रिकेट कप्तान के व्यवहार के अनुरूप नहीं होती थी.
आईपीएल के खिताबो से रोहित हुए मजबूत
दुनिया में सबसे ज्यादा 108 एकदिवसीय मुकाबले खेलने के बाद रोहित शर्मा (Rohit Sharma) को पहली बार टेस्ट में मौका मिला था, लेकिन अब वह भारतीय क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट के सदाबहार खिलाड़ी हैं. यह भी एक संयोग है कि आईपीएल में कोहली आज तक एक भी खिताब नहीं जीत सके वहीं रोहित 5 बार खिताब जीतकर सबसे कामयाब कप्तान हैं. आईपीएल की इस कामयाबी ने रोहित और कोहली के बीच तुलना की नई बहस शुरू कर दी और एक बड़े तबके ने यह कहना शुरू कर दिया कि विराट नहीं कप्तान रोहित को ही होना चाहिए. आपको याद होगा आईपीएल के बाद ऑस्ट्रेलिया दौरे को लेकर विराट कोहली ने रोहित के खिलाफ बयान दिया था कि उन्होंने अपनी अनुपलब्धता के बारे में न तो टीम को और न ही बोर्ड को कोई सूचना दी. कोहली का खुले तौर पर ऐसा कहना अनावश्यक था और टीम के अंदर दोनों के बीच चल रही खींचा तानी का संकेत भी. कोहली यहीं नही माने उन्होंने यह भी कहा कि उनकी फिटनेस का भी कोई अपडेट नहीं है और उन्हें टेस्ट खेलने से पहले अपनी फिटनेस भी साबित करनी पड़ेगी. फिटनेस पर कोहली का बयान गलत नहीं था, लेकिन शायद उसकी जरूरत नही थी. बीसीसीआई के सचिव जय शाह को उस समय बयान जारी कर यह साफ करना पड़ा कि रोहित अपने पिता के अस्वस्थ होने की वजह से फिलहाल टीम के साथ नहीं हैं. कोहली जहां कुछ मौकों पर रोहित से भिड़ते नजर आए, वहीं रोहित ने खुले तौर पर कभी ऐसा नहीं कहा. बहरहाल अब कोहली और रोहित दोनों अपने बीच के मधुर संबंधों की दुहाई दे रहे हैं, लेकिन लोग उसे महज लीपापोती की तरह देख रहे हैं आखिर तिल से ही तो ताड़ बनता है.
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कप्तानी की चासनी से निकलना मुश्किल
भारतीय क्रिकेट के इतिहास में राहुल द्रविड, सचिन तेंदुलकर और सुनील गावस्कर ही कुछ गिने चुने नाम हैं जिन्होंने खुद कप्तानी छोड़ी. अन्यथा कप्तानी की चासनी से निकल पाना आसान नहीं होता. 80 के दशक से भारतीय क्रिकेट लगातार लोकप्रियता के शबाब पर रहा है और भारतीय टीम के कप्तान की एक अलग ही अहमियत रही है. हालाकि उससे पहले कई ऐसे उदाहरण हुए हैं जहां कप्तान महज बोर्ड की अनुकंपा का प्रतीक होता था. 1958 मे एक खिलाड़ी को शामिल न करने की जिद ने पॉली उमरीगर को कप्तानी से हटने के लिए मजबूर कर दिया. इस सीरीज में 5 टेस्ट मे चार कप्तान बदले गए. अजीत वाडेकर जब मंसूर आली खान की जगह कप्तान बने उन्हे इस बात का पता ही नहीं था.
1979 मे इंग्लैंड सीरीज से लौट रही टीम को हवाईजहाज में कैप्टन के एनाउंसमेंट से पता चला की अब वेंकट राघवन नहीं बल्कि सुनील गावस्कर कप्तान होंगे. ऐसे न जाने कितने किस्से हर कप्तान के साथ जुड़े हुए हैं, लेकिन क्रिकेट की लोकप्रियता बढ़ने के साथ हालात बदले और कप्तान का दबदबा भी. खुद सौरव गांगुली के दौर में विवाद कम नहीं रहे, लेकिन उनमें से ज्यादातर कोच के साथ थे, टीम आम तौर पर साथ ही दिखाई देती थी. महेंद्र सिंह धोनी को कैप्टेन कूल के नाम से जाना जाता था और उनका व्यवहार भी उनके तखल्लुस के अनुरूप हुआ करता था.
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संवादहीनता विकल्प नहीं मजबूरी
पिछले लगभग एक दशक में बोर्ड और मीडिया का रिश्ता भी बदला है. पहले खिलाड़ियों के साथ बात करना मिलना बहुत मुश्किल नहीं होता था और ऐसे मे "गेस वर्क" की गुंजाइश नहीं रहती थी, लेकिन जब से यह दूरी बढ़ी है कयास ज्यादा लगाए जाने लगे हैं. जाहिर है स्पष्टता और पारदर्शिता की कमी हुई है, लेकिन इसके लिए बोर्ड ही जिम्मेदार नहीं है, हमारा मीडिया भी अपनी सीमाएं लांघता रहा है. खबर सूंघ लाने और एक दूसरे से आगे निकलने की कवायद में कुछ भी छपता-दिखता रहा है. प्रिंट के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक चैनल्स की भीड़ ने बोर्ड, मीडिया और खिलाड़ियों के रिश्तों को तार-तार कर दिया है, अब सिर्फ एक प्रेस विज्ञप्ति के जरिए सब काम हो जाता है. जाहिर है ऐसे में अफवाहों का बाजार लगातार गरम रहता है और वैसे भी तल्ख होते रिश्तों को हवा देने वाले कम नहीं होते.विराट कोहली भले ही कोई आईसीसी ट्रॉफी या फिर आईपीएल का खिताब न जीत पाए हो, लेकिन एक प्लेयर के रूप मे, एक कप्तान के तौर पर उनकी उपलब्धियों को कमतर नहीं आंका जा सकता. भारतीय क्रिकेट को विराट ने अपने लंबे करियर में बहुत कुछ दिया है और ऐसे में उनसे थोड़े लचीलेपन और बोर्ड से थोड़े संयम की अपेक्षा की जा सकती थी. ऐसा होता तो हालात यहां तक नहीं पहुंचते और हम सभी जानते हैं कि अब बयान चाहे कितने भी अमन चैन के आएं, लेकिन शोलों को हवा मिलती रहेगी और वह सुलगते भी रहेंगे.
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