वसंत पंचमी 2022: जब प्रकृति पहनती है नए वस्त्र, शुरू होती है पुराने के अंत के साथ नए के सृजन की श्रृंखला..

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब सृष्टि की सरंचना हुई तब पेड़-पौधे पशु- पक्षी नदियां पहाड़ सबकुछ थे

Update: 2022-02-03 11:28 GMT
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब सृष्टि की सरंचना हुई तब पेड़-पौधे पशु- पक्षी नदियां पहाड़ सबकुछ थे। किन्तु फिर भी सृष्टि सूनी थी, मूक थी, तब सृजनकर्ता ब्रह्मा ने अपने अपने कमंडल से जल निकाल कर छिड़का और एक सुंदर देवी प्रकट हुईं। ये देवी सरस्वती थीं, तब से सृष्टि स्वरमय हो गई, तब से आज तक ये वो दिन वसंत पंचमी के तौर पर मनाया जाता है।
हिन्दू धर्म में आस्था रखने वालों के लिए देवी सरस्वती और वसंत पंचमी दोनो का ही विशेष स्थान है। वसंत पंचमी का दिन देवी सरस्वती की आराधना का दिन है। उस दिन लोग पीले वस्त्र पहन कर देवी की आराधना करते हैं। पीला रंग गेहूं की पकी हुई बालियों और सरसों के फूल का प्रतीक भी होता है यानी की वसंत पंचमी वसंत के आगमन के साथ ही फसलों के पकने का भी उद्घोष करता है।
देवी सरस्वती के एक हाथ में पुस्तक दूसरे में वीणा तीसरे में माला होती है वहीं चौथा हाथ आशीर्वाद देने की मुद्रा में होता है। छात्रों और कलाकारों के लिए देवी सरस्वती का विशेष स्थान होता है। इसिलए कई विद्यालयों में वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा का आयोजन किया जाता है।
बचपन में हम लोग वसंत पंचमी के दिन किसी खाली स्थान पर रेंण का पौधा गाड़ कर होलिका दहन के लिए सामग्री जुटाने का शुभारंभ करते थे। यानी वसंत पंचमी होली के नजदीक आने का संदेसा भी है।
वसंत पंचमी 2022: ऋतु परिवर्तन का आरंभ और प्रकृति के श्रंगार का दिन
वसंत पंचमी का महत्व
वसंत पंचमी के दिन गंगा एवं अन्य पवित्र नदियों में डुबकी लगाने का भी विशेष महत्व है। इस दिन देश विदेश से श्रद्धालु गंगा स्नान करने प्रयाग और उत्तराखण्ड जाते हैं। इलाहाबाद के संगम तट पर इस दिन श्रद्धालुओं का मेला लगा रहता है। स्नान के अलावा लोग तटों पर पूजा आरती इत्यादि भी करते हैं।
सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंघ का जन्म भी वसंत पंचमी के दिन ही हुआ था इसलिए येत्यौहार सिखों के लिए भी महत्व पूर्ण ह। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर स्थित गुरु का लाहौर नमक जगह पर जो कि सिखों का एक पवित्र तीर्थ स्थल है, इस दिन भव्य मेले का आयोजन होता है।
हिमाचल प्रदेश में श्रद्धालु तत्पनी में एकत्र होते हैं और गर्म पानी के झरनों में स्नान करते हैं वहीं बंगाल प्रांत में ढाक की थाप के बीच देवी की आराधना होती है। कुल मिलाकर यह समस्त भारत में अलग अलग तरीकों से मनाया जाता है।
वसंत पंचमी के दिन किसी नए काम का आरंभ करना शुभ माना जाता है। ऐसी आस्था है कि वसंत पंचमी के दिन किसी नए व्यवसाय इत्यादि का आरंभ करने से सब मंगलमय होता है। विवाह के लिए भी वसंत पंचमी का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है।
क्या सिखाती है वसंत पंचमी?
वसंत पंचमी से ही वसंत ऋतु का आगमन होता है। वसंत ऋतु यानी के पतझड़ के खालीपन के बाद पेड़ पौधे एक बार फिर फूल-पत्तों से लद जाती है। पेड़ों पर लगी नयी पत्तियां मानों सोने की बनी हों, दूर से ही चमकती हैं। ये कोंपलें ये फूल पेड़-पौधों पर ऐसे जंचते हैं कि मानो प्रकृति ने नया नया शृंगार किया हो। आजकल की भाषा में कहें तो वसंत प्रकृति का सालाना 'मेकओवर' होता है।
वसंत पंचमी बस एक उत्सव ही नहीं बल्कि एक सीख भी है। वसंत पंचमी सिखाती है कि पुराने के अंत के साथ ही नए का सृजन भी होता है। असल में अंत और शरुआत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
वसंत ऋतु के आने से पहले पतझड़ का उदास मौसम होता है, लेकिन वसंत पंचमी के साथ ही वसंत ऋतु भी दस्तक देती है और वसंत ऋतु में पतझड़ से खाली हुए पेड़ पौधों में फिर से एक चमक, एक सुंदरता उतर आती है। जीवन का दस्तूर भी कुछ ऐसा ही है। पतझड़ की तरह खालीपन आता है लेकिन सब्र का दामन ना छोड़ें तो वसंत की बहार भी आती है। जीवन भी एक उत्सव है जम के इसका आनंद उठाएं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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