घाटी : षड्यंत्र अभी जारी है

1990 की घाटी की दहशतगर्दी के यादें ताजा होने के बाद सबसे बड़ी चुनौती यही है कि पूर्ण सुरक्षा, सम्मान और स्वाभिमान के साथ कश्मीरी विस्थापितों को अपने घरों में भेजा जाए।

Update: 2022-04-15 04:03 GMT

आदित्य नारायण चोपड़ा; 1990 की घाटी की दहशतगर्दी के यादें ताजा होने के बाद सबसे बड़ी चुनौती यही है कि पूर्ण सुरक्षा, सम्मान और स्वाभिमान के साथ कश्मीरी विस्थापितों को अपने घरों में भेजा जाए। जम्मू-कश्मीर में उनकी रक्षा के उपाय ऐसे करने होंगे कि परिंदा भी पर न मार सके। ऐसे समय में जब महसूस किया जा रहा है कि घाटी में जनजीवन सामान्य होने की ओर अग्रसर है, फिर से षड्यंत्र रचे जाने लगे हैं। हाल ही में कश्मीरी पंडित दुकानदार और कुछ गैर स्थानीय लोगों पर हुए आतंकी हमले को दहशत फैलाने की साजिश के तौर पर ही देखा जा रहा है। कुलगाम में बुधवार को सेब व्यापारी सतीश कुमार सिंह राजपूत की आतंकवादियों ने हत्या कर दी। कुलगाम और शोपियां के कुछ हिस्सों में ऐसे समुदाय रहते हैं जिन्हाेंने कभी भी पलायन नहीं किया है। सतीश कुमार सिंह भी ऐसे समुदाय से थे। ये लोग मुख्यतः सेब का व्यापार करते हैं। जब भी कश्मीर में जनजीवन पटरी पर लौटने लगता है, घाटी में मौजूद और सीमा पार बैठे आतंकवादियों की नींद हराम हो जाती है। इन दिनों घाटी में जन्नत के नजारे निहारने रिकार्श तोड़ सैलानी पहुंच रहे हैं। टयूलिप गार्डन खोल दिए गए हैं। टयूलिप के फूल लहरा रहे हैं। पिछले तीन माह में 3.4 लाख पर्यटक घाटी आ चुके हैं। अप्रैल के पहले 7 दिनों में ही 58 हजार पर्यटक आए। पर्यटकों की भीड़ ने सरकार को श्रीनगर एयरपोर्ट पर उड़ानों की संख्या बढ़ाने को मजबूर कर दिया है। सभी चार और पांच सितारा होटल पूरी तरह बुक हो चुके हैं। इस वर्ष टयूलिप गार्डन के अलावा दूसरे बाग भी खोल दिए गए हैं और पर्यटक इनकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। हाउस बोट भी पूरी तरह बुक हैं, कश्मीर पूरी तरह ​खिला-खिला नजर आ रहा है।यद्यपि घाटी में आतंकी संगठनों का काफी हद तक सफाया हो चुका है, ​अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद आतंकवाद की कमर टूट चुकी है। मगर बचे-खुचे आतंकवादी अब भी लोगों को निशाना बनाने में कामयाब हो जाते हैं। अब एक संगठन लश्कर-ए-इस्लाम ने धमकी दी है कि वे कश्मीरी पंडितों को यहां बसने नहीं देंगे। हिन्दुओं को घाटी छोड़ने को कहा गया है। आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाए जाने के साथ-साथ गैर कश्मीरी लोगों पर हमला करना शुरू कर दिया। इससे पहले भी पंजाब और बिहार आदि राज्यों से वहां मजदूरी करने गए लोगों पर हमले किए गए थे। हमलों के पीछे उनका मकसद साफ है कि वे उन्हें घाटी से बाहर भगाना चाहते हैं। कुछ कश्मीरी पंडित परिवार जिन्होंने 1990 के आतंकवाद के दौरान भी पलायन नहीं किया था और वहां रह कर अपना काम-धंधा किया, अब वे भी आतंकवादियों के निशाने पर हैं। कुछ माह पहले एक दवा ​विक्रेता कश्मीरी पंडित की हत्या कर दी गई थी। लश्कर-ए-इस्लाम की धमकी से साफ है कि आतंकी संगठनों की मंशा काफी खतरनाक है।कश्मीर एक ऐसा स्थाई सच है कि भारत इसे अपना मुकुट मानता है और पाकिस्तान इसे सियासत का केन्द्र बिन्दू बना बैठा है। पाकिस्तान में हुकमरान तभी गद्दी पर रह सकता है जब वह कश्मीर मुद्दे पर भारत से घृणा दिखाए। पाकिस्तान की पूरी ​सियासत भारत से घृणा और विरोध पर केन्द्रित है। इमरान खान बड़े बेगैरत ढंग से सत्ता से बाहर हो चुके हैं। उनकी जगह पर आए शाहबाज शरीफ ने आते ही कश्मीर का राग अलापना शुरू कर दिया है। ऐसा करना शाहबाज की मजबूरी भी है क्योंकि ऐसा न करने पर सेना उन्हें एक दिन भी सत्ता में रहने नहीं देगी। द कश्मीर फाइल्स फिल्म पर गर्मागर्म सियासत के बावजूद एक सकारात्मक घटनाक्रम सामने आया। कश्मीरी पंडित अपने साथ हुए अन्याय के बाद अपनी पहचान और अपनी संस्कृति को कायम रखने के लिए जागरूक हुए हैं। 33 साल बाद श्रीनगर में कश्मीरी पंडितों के नववर्ष के पहले दिन नवरेह मिलन के लिए डल झील के किनारे देशभर से कश्मीरी पंडित वहां पहुंचे। श्रीनगर में हरि पर्वत पर स्थित शारिका देवी के मंदिर में पूजा-अर्चना की गई। इन कार्यक्रमों में स्थानीय मुसलमानों का सहयोग भी प्राप्त हुआ। कश्मीरी पंडितों की गरिमापूर्ण वापसी की मांग भी जाेर पकड़ती जा रही है। कश्मीरी आतंकवादियों के खिलाफ देशभर में एक माहौल बन रहा है। इससे आतंकवादियों में हताशा हो रही है और वे एक बार फिर साम्प्रदायिक संघर्ष की साजिशें रच रहे हैं। गृहमंत्री अमित शाह कश्मीरी पंडितों की वापसी का माहौल बना रहे हैं और सुरक्षा बल भी आतंकवाद पर अंकुश लगाने के लिए हर समय तैयार हैं। हो सकता है कि पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए घाटी में आतंकवाद को पोषित करने के लिए कुछ नई रणनीति तैयार करें। सेना की उत्तरी कमान ने जम्मू-कश्मीर में फिलहाल सक्रिय आतंकवादियों की संख्या करीब 172 बताई है। इसमें विदेशी भाड़े के आतंकवादियों की संख्या 79 के करीब है। आतंकवादी संगठनों में शामिल युवाओं की संख्या तेजी से घट रही है। युवा अब राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं। राज्य में परिसीमन की प्रक्रिया जारी है। यह प्रक्रिया पूरी होने पर राजनीतिक प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी। ऐसे में आतंकवादी संगठन राज्य में अशांति फैलाने का काम कर सकते हैं।संपादकीय :अम्बेडकर और दलित राजनीतिमजहबी मानसिकता का सवाल?अमेरिका में गन तंत्रकेसरी क्लब में मौजां ही मौजांकश्मीर रट छोड़ें शहबाज शरीफ'अंकल सैम' का बदला रुखपिछले दो वर्ष से कोरोना महामारी के चलते बाधित रही बाबा अमरनाथ यात्रा की तैयारियां भी चल रही हैं। ऐसी स्थिति में सुरक्षा बलों को अत्यधिक सतर्कता बरतनी होगी। पाक प्रायोजित आतंकवादी 'जेहाद' करते हैं, ये लोग हमें काफिर बताते हैं और स्वयं काे इस्लाम का पैरोकार बताते हैं। संगीनों की नोक से बेगुनाहों के जिस्म से खून बहाते हैं। कश्मीरी मुस्लिमों को इनकी साजिशो को समझना होगा। कितना अच्छा हो यदि कश्मीरी मुस्लिम ही पंडितों की वापसी के लिए वातावरण तैयार करें। गुरु नानक देवी जी के शब्द हैं ''जो तोहे प्रेम खेलन का भाव, सिर धर तली गली मेरी आओ।''भारतीय सुरक्षा बल तो सिर धड़ की बाजी लगाने को तैयार हैं।


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