टीकाकरण की बदलिए रणनीति

टीकाकरण

Update: 2021-05-27 13:39 GMT

किरण मजूमदार शॉ, चेयरपर्सन, बायोकॉन। दुनिया में वैक्सीन के सबसे बडे़ उत्पादक देश के रूप में प्रतिष्ठित भारत कोविड-19 की इस घातक दूसरी लहर में अपनी योग्य आबादी के टीकाकरण के लिए संघर्ष कर रहा है। कोरोना की यह लहर न सिर्फ लोगों की जान ले रही है, बल्कि उनकी आजीविका को भी लील रही है। इससे हमारी अर्थव्यवस्था गंभीर रूप से प्रभावित हुई है, जिसमें कुछ महीने पहले सुधार के संकेत दिखे थे। देश में दो टीकों की मंजूरी और संक्रमण के मामले में सबसे निचले स्तर पर पहुंचने के कारण साल 2021 की एक आशाजनक शुरुआत हुई थी। लेकिन अब हम दुनिया में सबसे अधिक कोविड मामलों से मुकाबिल हैं, और इससे भी अहम बात यह है कि इस बार मौत का आंकड़ा काफी बढ़ गया है। पहली लहर में वायरस ने अमूमन बुजुर्गों और अन्य बीमारियों से ग्रसित लोगों को अधिक निशाना बनाया था, लेकिन इस बार इसने नौजवानों की भी जान ली है। मरने वाले 20 फीसदी लोगों की उम्र 45 साल से कम है। यह टीकाकरण की हमारी रणनीति के लिए एक बड़ी चुनौती है। जनवरी के मध्य में जब भारत ने टीकाकरण अभियान की शुरुआत की थी, तब हमने उम्र-आधारित रणनीति अपनाई और अग्रिम मोर्चे पर तैनात स्वास्थ्यकर्मियों को टीका लगाया।

1 फरवरी से 60 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए, 1 मार्च से 45 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए और 1 मई से 18 साल व इससे अधिक उम्र के लिए टीकाकरण शुरू करने की घोषणा की गई। हालांकि, हमें जल्द ही यह एहसास हो गया कि ऐसा संभव नहीं है, क्योंकि हमारी वयस्क आबादी को टीका लगाने के लिए टीके की जितनी खुराक चाहिए, उतनी हमारे पास नहीं है। सरकार का अनुमान है कि इसके लिए 2.2 अरब खुराक की जरूरत है, जो दिसंबर तक तैयार की जा सकती है। पर कई लोग इसे अति-महत्वाकांक्षी और सच से मुंह फेरने जैसा आकलन बता रहे हैं। निजी क्षेत्र का मानना है कि कोविशील्ड, कोवैक्सीन, स्पूतनिक-वी, जाइकोव-डी, नोवावैक्स व जेऐंडजे मिलकर दिसंबर, 2021 तक आधा या लगभग 1.2 अरब खुराक ही पूरी कर सकते हैं, जबकि फाइजर, स्पूतनिक और मॉडर्ना से संभवत: 10-20 करोड़ खुराकें आयात की जा सकती हैं। इससे ज्यादा तो कतई संभव नहीं है।

ऐसे में, हमारी चुनौती टीकाकरण की ऐसी रणनीति तैयार करने की है, जो न सिर्फ जोखिम वाले लोगों की जान बचाए, बल्कि संक्रमण के प्रसार पर भी लगाम लगाए। अंतिम जनगणना के मुताबिक, 63 फीसदी आबादी 18 वर्ष से अधिक उम्र की है, और इसीलिए वह टीकाकरण के योग्य है। इसका मतलब है कि हमें देश भर में लगभग 82 करोड़ लोगों को टीका लगाने की जरूरत है। अगर हम मान लें कि 18 करोड़ लोगों ने टीके की कम से कम एक खुराक ले ली है, तब भी 64 करोड़ लोग अभी टीके से दूर हैं। चूंकि 'हर्ड इम्यूनिटी' के लिए 70 फीसदी आबादी को टीके की दोनों खुराकें लगनी चाहिए, इसलिए अब करीब 45 करोड़ लोगों का टीकाकरण जरूरी है, जिसके लिए हमें 90 करोड़ खुराक की दरकार है। इसीलिए, मौजूदा उत्पादन भी हमें साल के अंत तक सुरक्षित स्थिति में पहुंचने और तीसरी लहर को टालने में मदद कर सकता है। और, जनवरी 2022 से हम 20 करोड़ मासिक के हिसाब से बूस्टर डोज देना भी शुरू कर सकते हैं।
इसी तरह, अगर हम सुनिश्चित करना चाहते हैं कि टीके की एक भी खुराक बरबाद न हो, तो हमें इसके भंडारण, ढुलाई आदि की व्यवस्था दुरुस्त करनी होगी, और यह तभी हो सकता है, जब केंद्रीय व्यवस्था के उलट यह जिम्मा राज्यों को दिया जाए। अभी केंद्र सरकार ने एक मॉडल की घोषणा ही है, जिसमें 50 फीसदी खरीद केंद्र करेगा, जबकि शेष राज्य सरकारें और निजी क्षेत्र। निश्चय ही, राज्यों में टीके की खरीद और साझा जिम्मेदारियों के साथ उसके वितरण संबंधी सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) का यह मॉडल टीकाकरण में कारगर साबित होगा। जरूरत महामारी विज्ञान के हिसाब से टीकाकरण को आगे बढ़ाने की भी है। जब टीके कम हों, तब न्यायसंगत वितरण के बजाय हमें उसका इस तरह बंटवारा करना चाहिए कि वह अधिक से अधिक प्रभावी साबित हो। जैसे, हमें जिलावार जनसंख्या घनत्व, संक्रमण के मामले, मृत्यु दर और दोगुने होने की दर जैसे मानकों के आधार पर टीकाकरण की प्राथमिकता तय करनी चाहिए। इसके बाद जोखिम और संक्रमण के हिसाब से जिस व्यवसाय को खतरा ज्यादा है, उसके कर्मियों को तवज्जो देनी चाहिए। यदि हम कर्नाटक को एक उदाहरण मानें, तो बेंगलुरु को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी, जिसके बाद मैसूर, बेल्लारी, दक्षिण कन्नड़ जिले, धारवाड़ जैसे इलाके होंगे। महाराष्ट्र में मुंबई, पुणे, नासिक, औरंगाबाद का नंबर पहले आएगा। पंजाब में लुधियाना, अमृतसर, पटियाला जैसे इलाकों को प्राथमिकता मिलेगी।
कर्नाटक में 50 फीसदी टीके बेंगलुरु और शेष टीके तेज संक्रमण वाले जिलों में भेजना सही रणनीति होगी। हर व्यक्ति को कम से कम एक खुराक देने के लिए कर्नाटक को अगले तीन माह तक 50 लाख खुराक प्रति महीने के हिसाब से टीके चाहिए। इससे हम संक्रमण का प्रसार थाम सकते हैं। एक महीने में 50 लाख खुराक देने के लिए हमें राज्य में रोजाना 1.5 लाख टीकाकरण करना होगा। अगर बेंगलुरु को हर महीने 25 लाख लोगों को टीका लगना है, तो वहां 500 टीकाकरण केंद्र की जरूरत होगी, जहां हर दिन 100-250 खुराकें बांटी जाएं। मलिन बस्तियों, स्थानीय बाजारों और निर्माण स्थलों में प्रतिदिन 1,000 खुराक लगाने के लिए सामूहिक टीकाकरण शिविर भी लगाए जा सकते हैं। इससे न सिर्फ टीकाकरण में तेजी आएगी, बल्कि टीके को लेकर लोगों की झिझक भी कम होगी। व्यवसाय आधारित वर्गों में डिलिवरी करने वाले कर्मी, कैब ड्राइवर, दुकानदार, दुकान-कर्मचारी, निर्माण-कार्य में जुटे मजदूर आदि को प्राथमिकता दी जा सकती है। इसके बाद ऊंची-ऊंची इमारतों में रहने वाले लोग, गेटेड सोसाइटी और फिर बिल्डर फ्लैट में अकेले रहने वाले लोगों का टीकाकरण किया जा सकता है। एक बार जब शहर सुरक्षित हो जाएं, तब उसके बाद शहरों में आने-जाने वाले रास्तों पर, और अंत में राज्य के बाकी हिस्से में सघन टीकाकरण अभियान चलाया जा सकता है। यह मॉडल पूरे देश में अपनाया जा सकता है। टीके की कमी को देखते हुए हमें टीकाकरण के लिए लक्षित प्राथमिकता तय करनी होगी। यही अभी की सही रणनीति होगी।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
Tags:    

Similar News

-->