उत्तराखंड सरकार होम स्टे जैसी योजनाओं को गंभीरता के साथ आगे बढ़ाएगी, मिलेगा रोजगार को सहारा
त्तराखंड की आर्थिकी को गति देने में पर्यटन सबसे सशक्त उद्योग है। यही वजह है
प्रधानमंत्री से संवाद करने वाले गोदा गांव के पुरोहित सुरेश चंद्र भी होम स्टे से स्वरोजगार का सपना साकार करना चाहते हैं। वह ऐसे एकमात्र शख्स नहीं है, तमाम ग्रामीण इससे उम्मीद पाले हुए हैं। इसकी वजह भी है। उत्तरकाशी जिले में दयारा बुग्याल के पास स्थित रैथल, बासरू और नटीण गांवों का उदाहरण दिया जा सकता है। होम स्टे की बदौलत ग्रामीण अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं। देश ही नहीं, दुनियाभर से सैलानी यहां प्रकृति का सानिध्य पाने आते हैं। होम स्टे का सबसे बड़ा लाभ यह है कि वेलनेस टूरिज्म को भी इससे प्रोत्साहन मिल रहा है। प्रकृति के साथ ही पहाड़ी संस्कृति और खानपान से पर्यटक परिचित हो रहे हैं। पौड़ी जिले के खिसरू में 'बासा' नाम से बने होम स्टे में तो एक नया प्रयोग किया गया है। यहां प्रसिद्ध शिकारी जॉय हुकिल रोमांचक शिकार कथाएं सुनाकर सैलानियों का मनोरंजन कर रहे हैं और यह प्रयोग खासा सफल हो रहा है।
जाहिर है नवाचार के जरिये इस क्षेत्र में संभावनाओं की कमी नहीं है। अनलॉक-5 में बंदिशों में मिली छूट के बाद उत्तराखंड में बढ़ रही सैलानियों की तादाद इस उम्मीद को और पंख लगा रही है। दरअसल, अब तक उत्तराखंड में सैलानियों के लिए मसूरी और नैनीताल ही प्रमुख पर्यटक स्थल रहे हैं। यह विडंबना ही है कि राज्य गठन के बीस साल बाद भी नए पर्यटक स्थलों का विकास नहीं किया गया। ऐसा नहीं है कि योजनाएं नहीं बनी हैं। योजनाएं तो बनी, लेकिन वे आकार नहीं ले पाईं। तमाम पर्यटन सर्किट धरातल पर उतरने की बजाए फाइलों की शोभा बढ़ाते आ रहे हैं। जाहिर है कि प्रोत्साहन मिले तो ग्रामीण इस दिशा में नए आयाम स्थापित कर सकते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार भी होम स्टे जैसी योजनाओं को गंभीरता के साथ आगे बढ़ाएगी।