Uttar Pradesh Politics : क्या शिवपाल यादव के साथ मिलकर अखिलेश को चुनौती देंगे आजम खान?
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ प्रचंड बहुमत से जीत हासिल करके सरकार बना चुके हैं
यूसुफ़ अंसारी
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ प्रचंड बहुमत से जीत हासिल करके सरकार बना चुके हैं, उनका बुलडोजर पहले के मुकाबले ज्यादा तेज गति और धमाकेदार तरीके से चल रहा है. वहीं योगी सरकार के खिलाफ लगातार पांच साल संघर्ष करने के इरादे से विपक्ष के नेता बने अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) अपनी पार्टी में अंदरूनी चुनौतियों से जूझ रहे हैं. अखिलेश से नाराज चल रहे चाचा शिवपाल यादव (Shivpal Singh Yadav) के साथ अब आजम खान (Azam Khan) ने भी सुर मिला लिया है. चर्चा है कि आजम खान शिवपाल यादव के साथ मिलकर अखिलेश यादव की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का काम तमाम कर सकते हैं.
लखनऊ की सत्ता के गलियारों से लेकर प्रदेश भर के सियासी हलकों में इस बात की चर्चा है कि आजम खान के साथ-साथ समाजवादी पार्टी के तमाम मुस्लिम नेता मुस्लिम मुद्दों पर अखिलेश यादव की चुप्पी से सख्त नाराज हैं, वह सब आजम खान के नेतृत्व में अखिलेश को बड़ा झटका दे सकते हैं. शिवपाल यादव पहले ही अखिलेश यादव से नाराज चल रहे हैं, समाजवादी पार्टी के विधायक दल की बैठक में ना बुलाए जाने से खफा शिवपाल यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर पहले ही संकेत दिए थे कि वह बीजेपी का दामन थाम सकते हैं.
शिवपाल बीजेपी की तरफ अपने लगातार बढ़ते झुकाव को कई तरह से ज़ाहिर कर चुके हैं. इसके बावजूद बीजेपी शिवपाल का स्वागत करने में बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रही. शायद यही वजह है कि अब शिवपाल आज़म ख़ान के साथ मिलकर सूबे की सियासत में कोई नया खेल करने की सोच रहे हैं.
सियासी गलियारों में क्या चल रहा है?
सियासी गलियारों में चर्चा है कि शिवपाल यादव जल्द ही आजम ख़ान से मिलने सीतापुर जेल जा सकते हैं. बताया जा रहा है कि आजम खान समाजवादी पार्टी में अपनी उपेक्षा और अखिलेश यादव के उदासीन रवैए से बेहद खफा हैं. आजम खान के मीडिया प्रभारी ने हाल ही में इस बात को लेकर नाराज़गी भी जाहिर की थी. यह भी बताया जाता है कि अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव में टिकटों के बंटवारे में आज़म ख़ान को तवज्जो नहीं दी. उन्होंने क़रीब एक दर्ज़न सीटों पर अपने क़रीबी लोगों को टिकट देने की सिफारिश की थी. लेकिन अखिलेश ने एक को भी टिकट नहीं दिया. सिर्फ़ आज़म ख़ान और उनके बेटे अब्दुल्ला आज़म को ही टिकट दिया. अब शिवपाल और आज़म ख़ान की नाराज़गी खुलकर सामने आ चुकी है. इसलिए यह क़यास लगाए जा रहे हैं कि अखिलेश की चुनौतियों को बढ़ाने के लिए दोनों आपस में हाथ मिला सकते हैं.
शिवपाल और आज़म की जुगलबंदी
समाजवादी पार्टी के गठन से पहले ही शिवपाल यादव और आजम खान के बीच बेहतर संबंध रहे हैं, समाजवादी पार्टी के गठन के बाद दोनों ने पार्टी को मजबूत करने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर काम किया है. आजम खान के जेल जाने के बाद से ही शिवपाल यादव योगी सरकार पर उन्हें बेवजह परेशान करने का आरोप लगाते रहे हैं. यह भी कहते रहे हैं कि आज़म ख़ान की जेल से रिहाई के लिए अखिलेश यादव ने कभी खुलकर नहीं बोला और ना ही सड़कों पर उतर कर संघर्ष किया. बता दें कि विधानसभा चुनाव से पहले नवंबर के महीने में शिवपाल यादव सीतापुर जेल में आज़म ख़ान से जाकर मिले थे. तब शिवपाल यादव ने आज़म ख़ान को अपनी पार्टी में शामिल होने का न्योता दिया था. ये अलग बात है कि इसके कुछ दिन बाद ही शिवपाल ने अखिलेश से समझौता कर लिया था. अब चर्चा है कि इसी ऑफर को लेकर वह एक बार फिर आज़म ख़ान से जेल में जाकर मिल सकते हैं.
एसपी के गढ़ में दिखा नाराजगी का असर
शिवपाल यादव और आज़म ख़ान की नाराज़गी का असर विधान परिषद के चुनाव में समाजवादी पार्टी के गढ़ समझे जाने वाले इलाकों में भी दिखा है. हाल ही में 36 सीटों पर हुए विधान परिषद के चुनाव में समाजवादी पार्टी खाता भी नहीं खोल सकी. पार्टी के बड़े नेताओं खासकर शिवपाल, आज़म ख़ान की नाराज़गी को इसकी सबसे बड़ी वजह बताया जा रहा है. एसपी अपने गढ़ इटावा में भी हार गई. इटावा-फ़र्रुख़ाबाद सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की है. एसपी को महज़ 657 वोट मिले हैं. बताया जा रहा है कि शिवपाल यादव की पकड़ की वजह से एसपी का उम्मीदवार यहां अपनी ज़मानत भी नहीं बचा पाया. वहीं रामपुर-बरेली सीट पर भी बीजेपी ने बड़ी जीत दर्ज की है. बीजेपी को 4227 वोट मिले हैं. जबकि एसपी का उम्मीदवार 401 वोटों पर सिमट गया. माना जा रहा है कि आज़म ख़ान ने विधान परिषद के चुनाव में अपने क़रीबी लोगों को सक्रिय नहीं किया. इसी का ख़ामियाजा अखिलेश को भुगतना पड़ा है.
क्या आज़म वाकई छोड़ देंगे समाजवादी पार्टी?
सियासी गलियारों में भले ही आजम खान के समाजवादी पार्टी छोड़ने की चर्चा हो, लेकिन उनके पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए ऐसा लगता नहीं है. आज़म ख़ान मुलायम सिंह यादव के सबसे क़रीबी और सबसे भरोसेमंद साथियों में शुमार किए जाते रहे हैं. यही वजह है कि 2012 में समाजवादी पार्टी के विधायक दल की बैठक में मुलायम सिंह ने आज़म ख़ान से ही अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाए जाने का प्रस्ताव रखवाया था. इस मौक़े पर उन्होंने बड़े फ़ख्र से बताया था कि वो बाप और बेटे दोनों को मुख्यमंत्री बनाए जाने का प्रस्ताव पेश करने वाले पहले नेता हो गए हैं.
इसीलिए अखिलेश यादव की सरकार में भी उन्हें वही रुतबा हासिल था, जो मुलायम सिंह की सरकार में हुआ करता था. आज़म ख़ान के जेल जाने तक पार्टी में उनका यह रुतबा क़ायम रहा. लेकिन ढाई साल से जेल में होने पर अखिलेश के उदासीन रवैये से वो ख़फ़ा बताए जा रहे हैं. उनके समर्थकों में ज़बरदस्त गुस्सा है. इस ग़ुस्से को कहीं ना कहीं आज़म खान का भी समर्थन हासिल है.
क्या अखिलेश कर रहे हैं आज़म को नजरअंदाज़?
अखिलेश यादव वाक़ई आज़म ख़ान को नजरअंदाज कर रहे हैं या यह आरोप उनके ऊपर चस्पा कर दिया गया है? ग़ौरतलब है कि फरवरी 2020 में आज़म खान, उनकी पत्नी और उनके बेटे के जेल जाने के बाद अखिलेश यादव उनसे सिर्फ एक बार जेल में मिलने गए हैं. पिछले साल में उत्तर प्रदेश में जब असदुद्दीन ओवैसी ने अपना चुनाव प्रचार, चुनावी अभियान शुरू किया था, तब उन्होंने आजमगढ़ में बड़ी रैली करके मुलायम सिंह और उनके परिवार पर आज़म ख़ान की अनदेखी का आरोप लगाया था.
उसके बाद इस चर्चा ने जोर पकड़ा था कि आज़म ख़ान समाजवादी पार्टी छोड़कर ओवैसी के साथ आ सकते हैं. तब अखिलेश यादव ने रामपुर जाकर आज़म खान की पत्नी तंज़ीम फ़ातमा से मुलाक़ात की थी. यह बात सही है कि अखिलेश यादव ने आज़म ख़ान की गिरफ्तारी को कभी राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाया और ना ही उनके लिए सड़कों पर आंदोलन के लिए उतरे, किसी वजह से अखिलेश यादव पर आरोप पुख़्ता तौर पर चस्पा हो गए हैं कि वो आज़म ख़ान को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं.
क्या है आज़म ख़ान का पुराना रिकॉर्ड
आज़म ख़ान का पुराना रिकॉर्ड बताता है कि वह सैफई के सिंहासन यानि मुलायम सिंह परिवार के साथ ठीक उसी तरह बंधे हैं जैसे भीष्म पितामह हस्तिनापुर के सिंहासन से बंधे थे. अपने सबसे ख़राब दौर में भी आज़म ख़ान ने दूसरी पार्टी का दामन नहीं थामा. 2009 के लोकसभा चुनाव में उनपर पार्टी विरोधी गतिविधियों में हिस्सा लेने का आरोप लगा था. तब अमर सिंह से उनकी ठन गई थी. अमर सिंह ने उन पर आरोप लगाया था कि उन्होंने रामपुर में जया प्रदा को हराने के लिए पार्टी के ख़िलाफ़ काम किया. अमर सिंह ने मुलायम सिंह को धमकी दी थी कि अगर आजम खान को पार्टी से नहीं निकाला, तो वह ख़ुद पार्टी छोड़ देंगे.
लिहाज़ दबाव में आकर मुलायम सिंह यादव ने लोकसभा चुनाव के फौरन बाद आज़म ख़ान को पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया था. लेकिन इसके साल भर के बाद ही अमर सिंह ने भी समाजवादी पार्टी छोड़कर अपनी पार्टी बना ली थी. तब मुलायम सिंह ने आज़म का निलंबन वापस लेकर उन्हें पार्टी में वापिस बुला लिया था. इस बीच आज़म ख़ान को कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी की तरफ से ऑफर था. वहीं लोकसभा चुनाव में कुछ सीटों पर अच्छे वोट हासिल करके प्रदेश की राजनीति में आगे बढ़ रही पीस पार्टी ने भी उनपर डोरे डाले थे. लेकिन आज़म ने किसी का दामन नहीं थामा. लिहाजा इस बार भी नहीं लगता कि अखिलेश का साथ छोड़ कर आजम किसी दूसरी पार्टी में जाएंगे.
एसपी छोड़ने से आज़म को क्या फायदा?
सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आख़िर समाजवादी पार्टी छोड़कर आज़म ख़ान को क्या फ़ायदा होगा. आज़म ख़ान उम्र के उस पड़ाव पर हैं कि वो कोई नई पार्टी चलाने का जोखिम नहीं उठा सकते. अभी यह भी पता नहीं है कि वह जेल से कब तक बाहर आएंगे. उनका स्वास्थ्य अब उतना बेहतर नहीं रहा कि शिवपाल के साथ मिलकर उनकी पार्टी को खड़ा करने के लिए वह सड़कों पर संघर्ष करें या फिर ओवैसी का दामन थाम कर उनकी पार्टी की जड़ें मजबूत करने में अपना वक्त और ऊर्जा खर्च करें.
ऐसा करने पर उनके बेटे अब्दुल्लाह आज़म के राजनीतिक करियर पर असर पड़ सकता है. समाजवादी पार्टी छोड़ने की सूरत में दोनों को विधानसभा सीट भी छोड़नी होगी. नई पार्टी के टिकट और नए चुनाव निशान पर उप चुनाव में जीतने की कोई गारंटी भी नहीं है. शिवपाल यादव पहले ही अपनी पार्टी की जड़ें जमाने के लिए हाथ पैर मार कर नाकाम हो चुके हैं, थक हार के उन्हें फिर अखिलेश की शरण में जाना पड़ा था.
लिहाज़ा मौजूदा सियासी हालात बताते हैं कि आज़म ख़ान तमाम नाराज़गी के बावजूद समाजवादी पार्टी का दामन नहीं छोड़ेंगे. नाराज़गी जताकर वो अखिलेश यादव पर दबाव बना सकते हैं. अपने बेटे अब्दुल्लाह आज़म के साथ अपने कुछ करीबियों को पार्टी में सम्मानजनक स्थान दिला सकते हैं. फिलहाल इससे ज्यादा उनका कुछ और लक्ष्य नहीं हो सकता. शिवपाल के साथ मिलकर अखिलेश को नुकसान पहुंचाने से आज़म को भला क्या फ़ायदा होना है?