UP Election: प्रचंड जीत ने लोकसभा के लिए भाजपा को दी नई ऊर्जा
प्रचंड जीत ने लोकसभा के लिए भाजपा को दी नई ऊर्जा
गिरीश उपाध्याय
उत्तरप्रदेश चुनाव के नतीजे आने के बाद जब सोशल मीडिया पर यह गीत गूंजा कि 'राम राज की करो तैयारी, राजतिलक की करो तैयारी, आ गए फिर भगवाधारी' तो इसने भारतीय राजनीति के वर्तमान और भविष्य को लेकर भी बहुत कुछ कह दिया. अब आंकड़ों की बात करना इसलिए बेमानी हो गया है क्योंकि आंकड़ों की अहमियत तभी तक होती है जब तक उनसे निकलने वाले नतीजे का खुलासा नहीं हो जाता. उत्तरप्रदेश में जब यह साफ हो गया है कि वहां इतिहास रचते हुए योगी आदित्यनाथ फिर से सरकार बनाने जा रहे हैं तो अब बात उत्तरप्रदेश के जरिये भारतीय राजनीति के भविष्य की होनी चाहिए.
इस प्रचंड जीत के बाद चाहे उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हों या भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सभी ने इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी नीतियों को दिया है, लेकिन इस चुनाव के पीछे समग्रता में भाजपा की कार्यशैली और उसकी चुनावी राजनीति को समझना होगा. उत्तरप्रदेश के चुनाव की जब से शुरुआत हुई, यह धारणा बनाने की कोशिश हुई कि इस बार भाजपा की राह मुश्किल है. और इसके पीछे जातिगत कारणों से लेकर सरकार की कार्यशैली और कोविड काल में हुई दर्दनाक घटनाओं को आधार बनाया गया. भाजपा के विरोधी दलों ने सार्वजनिक मंचों से सवाल उठाया कि क्या लोग गंगा किनारे फेंक दी गई लाशों को भूल सकते हैं?
लेकिन भाजपा ने अपना काम अपनी ही शैली में जारी रखा. भाजपा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने आक्रामक अंदाज को जरा भी कमजोर नहीं होने दिया. जब बुलडोजर को सरकारी आतंक का प्रतीक बनाने की कोशिश हुई तो बजाय उस पर डिफेंसिव होने के सीना ठोककर जनसभाओं में बुलडोजर खड़े करवाकर बात की गई. बिना किसी लाग लपेट के साफ कर दिया गया कि माफिया और गुंडों पर बुलडोजर तो चलता रहेगा.
इस बार ऐसा नहीं था कि उत्तरप्रदेश का माहौल पूरी तरह भगवा रंग से रंगा हुआ हो. उसमें लाल रंग की मौजूदगी भी दिख रही थी, खासतौर से सपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की जनसभाओं में. उन सभाओं में आने वाली भीड़ से अच्छे-अच्छे चुनाव विश्लेषक और पर्यवेक्षक भी डगमगाए हुए थे. रही सही कसर चुनाव से ऐन पहले करीब एक साल तक चले किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि ने पूरी कर दी थी. जिस तरह सरकार ने ऐन चुनाव से पहले कृषि बिल वापस लेने की घोषणा की थी और जिस अंदाज में किसान नेता राकेश टिकैत उत्तरप्रदेश लौटने के बाद बोल रहे थे उससे भाजपा को खासतौर से पश्चिमी उत्तरप्रदेश में खुटका जरूर लग रहा था.
लेकिन इनमें से कोई भी फैक्टर भाजपा के विजय रथ को नहीं रोक पाया. योगी आदित्यनाथ पहले ऐसे मुख्यमंत्री बने जिसने लगातार दूसरी बार अपने नेतृत्व में राज्य का चुनाव जीता हो और भाजपा 37 साल बाद ऐसी दूसरी पार्टी बनी जिसने लगातार दूसरी बार अपनी सरकार बनाई हो. यह जरूर है कि समाजवादी पार्टी ने अपनी सीटों में ठीक ठाक इजाफा किया, लेकिन जीत का जो सपना उसने देखा था वह उसके पास तक फटक भी नहीं पाई.
राज्य में दूसरी पार्टियों खासतौर से बसपा और कांग्रेस का तो सूपड़ा ही साफ हो गया. इस चुनाव के बाद उत्तरप्रदेश और देश के राजनीतिक समीकरण भी बदलेंगे. खासतौर से कांग्रेस में. क्योंकि देश में कांग्रेस और उसके नेता के रूप में राहुल गांधी की भूमिका को कई लोग आलोचनात्मक दृष्टि से देखते हुए कहा करते थे कि इससे तो प्रियंका गांधी बेहतर नेता हो सकती हैं. लेकिन उत्तरप्रदेश ने कांग्रेस के इस दूसरे तुरुप के पत्ते को भी सिरे से नकार दिया है. अब कांग्रेस में एक बार फिर नेतृत्व का सवाल उठ सकता है.
जहां तक देश की भावी राजनीति पर उत्तरप्रदेश चुनाव परिणामों के असर का सवाल है यह साफ दिख रहा है कि भाजपा अब तक जिस राजनीतिक शैली को लेकर चल रही थी उसमें और अधिक आक्रामकता आएगी. उत्तरप्रदेश में एक महत्वपूर्ण कारक सरकार की कार्यशैली भी रही. भाजपा और मुख्यमंत्री योगी जनता को यह भरोसा दिलाने में सफल रहे कि चाहे सपा हो या अन्य कोई और पार्टी, यदि वे सत्ता में आते हैं तो प्रदेश एक बार फिर गुंडाराज, माफियाराज और यादव-मुस्लिम गठजोड़ की दबंगई का शिकार होगा. इन समूहों के खिलाफ योगी राज के पांच सालों के दौरान की गई कार्रवाई को भी चुनाव के दौरान इसीलिए जोर शोर से प्रचारित भी किया गया. नतीजे बताते हैं कि मतदाताओं पर इसका न सिर्फ असर हुआ बल्कि वे इस बात से सहमत भी नजर आए.
इसके अलावा कुछ और बातें हैं जिन पर ध्यान देने की जरूरत है. ये बातें चुनाव नतीजों के बाद दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में आयोजित विजय समारोह के दौरान दिए गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में दिखाई देती हैं. मोदी ने कांग्रेस और सपा जैसी पार्टियों पर प्रहार करते हुए कहा कि आने वाले दिनों में देश में परिवारवादी पार्टियों का नामोनिशान नहीं रहेगा. उन्होंने कहा कि इन चुनावों ने जातिवादी राजनीति को भी नकार दिया है. मोदी का इशारा साफ तौर पर स्वामीप्रसाद मौर्य जैसे नेताओं की ओर था जिन्होंने ऐन चुनाव से पहले सपा में शामिल होने के बाद दंभ भरा था कि उनका यह कदम भाजपा के ताबूत में आखिरी कील साबित होगा. ऐसा दंभ भरने वाले लोग खुद ही चुनाव मैदान में खेत रहे. मौर्य की पराजय भाजपा के इस हौसले को और बुलंद करेगी जातिवादी कार्ड खेलकर यदि कोई पार्टी को ब्लैकमेल करना चाहे तो उससे निपटने के लिए भी पार्टी तैयार है.
उत्तरप्रदेश चुनाव के नतीजे आने वाले दिनों में देश के कृषि क्षेत्र में निर्णायक परिवर्तन का कारण भी बन सकते हैं. चुनाव के ऐन पहले कृषि बिल वापस लेने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले के पीछे एक बहुत बड़ा कारण उत्तरप्रदेश का चुनाव भी था. लेकिन अब नतीजों ने भाजपा को बहुत बड़ा हौसला दिया है. इसी मुद्दे पर हालांकि पंजाब में भाजपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी है लेकिन उसे वहां ज्यादा उम्मीद थी भी नहीं. पंजाब में अब भाजपा खुद अपने बूते पर खड़ा होने की कोशिश करेगी, और यह बात नरेंद्र मोदी ने भी पंजाब के कार्यकर्ताओं के हौसले की तारीफ करते हुए कह भी दी है.
कुल मिलाकर उत्तरप्रदेश के चुनाव भाजपा को अपनी वर्तमान चुनावी रणनीति पर और अधिक भरोसा करने और उसी दिशा में आगे बढ़ने का कारण बनेंगे. यूपी की विजय ने भाजपा को 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भी बहुत बड़ा आधार और भरोसा दिया है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में इसका संकेत देते हुए कार्यकर्ताओं से लोकसभा चुनाव के लिए अभी से जुट जाने का आह्वान किया है. यानी भाजपा पीछे मुड़कर देखने वाली नहीं है.