यूपी के डीजीपी की छुट्टी : कुछ बड़े सवाल भी छोड़ गया है कानून व्यवस्था के मामले में सख्ती का यह संदेश
इस साल मार्च में जब उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में बीजेपी (BJP) की दोबारा सत्ता में वापसी हुई तो सरकार और पार्टी के नुमाइंदों ने उस कामयाबी के पीछे योगी सरकार 1.0 में अच्छी कानून व्यवस्था को प्रमुख वजह बताया था
रंजीव |
इस साल मार्च में जब उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में बीजेपी (BJP) की दोबारा सत्ता में वापसी हुई तो सरकार और पार्टी के नुमाइंदों ने उस कामयाबी के पीछे योगी सरकार 1.0 में अच्छी कानून व्यवस्था को प्रमुख वजह बताया था. उसके दो महीने के भीतर ही कानून व्यवस्था संभालने वाले मुखिया, उत्तर प्रदेश के डीजीपी मुकुल गोयल (DGP Mukul Goyal) को अकर्मण्य बताकर पद से हटाते हुए सरकार ने कानून व्यवस्था अच्छी होने के अपने दावों पर ही परोक्ष रूप से कई सवाल खड़े कर दिए हैं. गोयल को न सिर्फ हटाया गया है, बल्कि यह कह कर हटाया गया है कि वह सरकारी कामों की अवहेलना कर रहे थे, विभागीय कार्यों में रुचि नहीं ले रहे थे लिहाजा उन्हें अकर्मण्यता के कारण हटाया जा रहा है.
किसी भी अधिकारी को हटाने का सरकार का पूरा अधिकार होता है और खास तौर पर अगर पुलिस महकमे के शीर्ष अफसर को काम न करने के आरोप में हटाया जाए तो निश्चय ही पूरे पुलिस फोर्स तक सरकार के सख्त रवैए का संदेश पहुंचता है. संदेश यह कि यदि कानून व्यवस्था दुरुस्त रखने में खाकी नाकाम रही तो सरकार कड़ी कार्रवाई कर सकती है. लेकिन क्या संदेश सिर्फ इतना भर है? शायद नहीं.
उन पर लगाए गए तोहमत ज्यादा चर्चा में हैं
दरअसल गोयल को यदि अफसरो को हटाने के पारंपरिक तरीकों, यानी एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित करने के जरिए हटाया जाता तो शायद इतने सवाल नहीं उठते. लेकिन एक ओर तो कानून व्यवस्था अच्छी होने के दावे और दूसरी ओर खुद डीजीपी को ही निकम्मा बताते हुए छुट्टी करना, ऐसा परस्पर विरोध है जो बड़े सवाल पैदा कर रहा है. यूपी में पहली बार किसी डीजीपी को इस तरीके के आरोपों के साथ हटाया गया है. गोयल को हटाए जाने के बाद से पूरे आईपीएस महकमे में लगातार इस बात की चर्चा है कि पुलिस महानिदेशक को जिस तरह की भाषा शैली का इस्तेमाल करते हुए पद से हटाया गया कमोबेश उसी तरीके से जिले के कप्तान किसी दरोगा को लाइन हाजिर करते हैं. आईपीएस बिरादरी में यह चर्चा भी है कि अगर कानून व्यवस्था अच्छी है तो उसे संभालने वाला सेनापति अकर्मण्य कैसे हो सकता है, जैसा कि सरकार ने आरोप लगाया है.
उल्लेखनीय है कि एसपी सरकार में तत्कालीन होमगार्ड मंत्री ब्रह्माशंकर त्रिपाठी ने डीजी होमगार्ड अतुल को बर्खास्त करने की मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से सिफारिश की थी, लेकिन तब पूरी आईपीएस लॉबी अपने वरिष्ठ के समर्थन में एकजुट हो गई थी. माना जा रहा है कि मुकुल गोयल का हटना लगभग तय था क्योंकि बीते साल जुलाई में केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से हटाकर जब उन्हें यूपी का डीजीपी बनाया गया था तब आम चर्चा थी कि वे बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की पहल पर भेजे गए हैं. साथ ही यह भी कि वे यूपी सरकार, खास कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पसंद से बने डीजीपी नहीं थे.
पिछले कुछ महीनों मेंऐसे संकेत साफ दिखने लगे थे कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ डीजीपी की कार्यप्रणाली से संतुष्ट नहीं है. कानून व्यवस्था को लेकर मुख्यमंत्री कई मौकों पर नाराजगी जता चुके थे. जिसमें हाल में हुई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के मौके पर वे कानून व्यवस्था को लेकर खासे नाराज हुए थे और अफसरों की छुट्टियां निरस्त कर दी थीं. बीते दिनों कुछ महत्वपूर्ण बैठकों में मुकुल गोयल की अनुपस्थिति ने भी इन चर्चाओं को जन्म दिया था कि वे ज्यादा दिन पद पर नहीं रह पाएंगे. ऐसे में छुट्टी से लौटते ही उनकी पद से छुट्टी हो जाने पर बहुत हैरानी भी नहीं जताई जा रही है है. उन पर लगाए गए तोहमत ही ज्यादा चर्चा में हैं.
देवेंद्र सिंह चौहान डीजीपी की रेस में सबसे आगे हैं
मुकुल गोयल को हटा कर उन्हें डीजी नागरिक सुरक्षा बनाए जाने व एडीजी (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार को डीजीपी का चार्ज दिए जाने के साथ ही अब यूपी के नए डीजीपी के चयन पर भी सबकी निगाहें टिकी हैं. गोयल के बाद वरिष्ठता में 1987 बैच के आईपीएस अफसर आरपी सिंह हैं. दूसरे नंबर पर 1987 बैच के डीजी जीएल मीना, तीसरे पर 1988 बैच के डीजी आरके विश्वकर्मा, देवेंद्र सिंह चौहान और आनंद कुमार हैं.
माना जा रहा है कि इनमें देवेंद्र सिंह चौहान डीजीपी की रेस में सबसे आगे हैं. उनकी गिनती मुख्यमंत्री के भरोसेमंद अफसरों में होती है और चर्चा है कि मुख्यमंत्री डीजीपी के तौर पर चौहान को ही चाहते हैं. हालांकि उसमें एक पेच भी फंस सकता है. यूपीएससी से पैनल मांगने पर उसमें चौहान का नाम शामिल होना मुश्किल हो सकता है क्योंकि वरिष्ठता क्रम में वह फिलहाल चौथे नंबर पर हैं. जबकि नाम टॉप तीन वरिष्ठ के भेजे जाने होंगे. लेकिन यदि पैनल जुलाई के बाद मांगा जाता है तो उसमें चौहान का नाम शामिल हो सकता है. क्योंकि तब जीएल मीना का सेवाकाल 6 माह से कम रह जाएगा और यूपीएससी के नियमों के तहत उनको पैनल में शामिल नहीं किया जा सकेगा.
वैसे में टॉप तीन में चौहान शामिल किए जा सकेंगे. जानकारों की मानें तो बदले हालात में राज्य सरकार 1990 व 1991 बैच के आईपीएस अफसरों को स्पेशल डीजी बना सकती है. इन दोनों बैच के अफसर वैकेंसी के अभाव में अब तक डीजी नहीं बन सके हैं. प्रशांत कुमार 1990 बैच के आईपीएस हैं जिनको स्पेशल डीजी बनाकर जुलाई तक कार्यवाहक के रूप में डीजीपी पद पर बनाए रखा जा सकता है.