UP Assembly Elections 2022: विपक्षी दलों के उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में मुस्लिमों को तरजीह क्यों?
असदुद्दीन ओवैसी भी अपनी पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के 100 उम्मीदवारों की लिस्ट तैयार करने की क़वायद में जुटी है
यूसुफ़ अंसारी।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) की तारीखों के ऐलान के बाद उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में सबसे ज्यादा चुनावी सरगर्मियां हैं. सत्ताधारी बीजेपी में बुरी तरह भगदड़ मची हुई है. अब तक तीन मंत्रियों समेत 15 विधायक इस्तीफा देकर बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) का दामन थाम चुके हैं. बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व कई दिन से उम्मीदवारों के चयन में माथापच्ची में लगा हुआ है. वहीं विपक्षी दलों में कांग्रेस और एसपी गठबंधन ने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है.
कंग्रेस ने 125 की तो एसपी गठबंधन ने 29 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की है. कांग्रेस की लिस्ट में 19 मुस्लिम उम्मीदवार हैं तो एसपी गठबंधन की लिस्ट में 9 हैं. इनकी लिस्ट सामने आने के बाद राजनीतिक गलियारों में यह सवाल उठ रहा है कि आख़िर इनकी लिस्ट में मुसलमानों को तरजीह क्यों दी गई है? ग़ौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में 7 चरणों में विधानसभा के चुनाव होने हैं. चुनावों की शुरुआत पश्चिमी उत्तर प्रदेश से होगी. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज़्यादातर जिले मुस्लिम बहुल माने जाते हैं. यहां मुस्लिमों की आबादी 30 फीसदी से लेकर 50 फीसदी तक है. लिहाजा इन जिलों की विधानसभा सीटों के उम्मीदवारों में एसपी, बीएसपी, कांग्रेस, जैसी पार्टियों में मुसलमानों को तरजीह दिया जाना स्वभाविक है. लेकिन मीडिया के एक हिस्से में इसे ऐसे प्रचारित किया जा रहा है कि मानो यह पार्टियां मुसलमानों को टिकट देकर कोई बड़ी गलती कर रही हैं.
कांग्रेस का महिलाओं के बाद मुस्लिमों पर ज़ोर
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस भले ही सत्ता की दौड़ में शामिल न हो, लेकिन उम्मीदवारों की लिस्ट जारी करने मे उसने बाज़ी मारी है. कांग्रेस के उम्मीदवारों की लिस्ट में बेशक सबसे ज्यादा तरजीह महिलाओं को दी गई, लेकिन पार्टी ने उम्र और जातीय समीकरणों का भी पूरा ध्यान रखा है. सबसे ज़्यादा 19 टिकट मुसलमानों को दिए गए हैं. इमनें 11 अगड़ी जातियों के और 8 पिछड़े वर्ग मे वाले मुसलमान शामिल हैं. कांग्रेस पहली बार मुसलमानों के बीच अगड़े-पिछड़ों के बीच संतुलन बनाकर चल रही है. कांग्रेस के 125 उम्मीदवारों में सबसे ज़्यादा 57 सामान्य वर्ग, 35 पिछड़े वर्ग, 32 अनुसूचित जाति और एक अनुसूचित जनजाति उम्मीदवार है. जातिगत आंकड़ों के हिसाब से देखें तो कांग्रेस ने 18 ब्राह्मण, 15 जाटव, 14 राजपूत और 5-5 यादव और कुर्मी जाति के उम्मीदवार उतारे हैं.
एसपी-आरएलडी गठबंधन में 29 फीसदी मुस्लिम उम्मीदवार
एसपी-आरएलडी गठबंधन ने पहली लिस्ट में 29 उम्मीदवारों के नाम जारी किए हैं. इसमें 19 सीटों पर आरएलडी के जबकि 10 सीटों पर एसपी के उम्मीदवार हैं. गठबंधन की पहली सूची में 29 फीसदी यानि 9 मुस्लिम उम्मीदवार हैं. इनके अलावा गुर्जर, सैनी समुदाय को भी तवज्जो मिली है. वहीं महिलाओं की बात करें तो 29 उम्मीदवारों की लिस्ट में केवल एक महिला का नाम है. आरएलडी ने अपने हिस्से की 19 सीटों में से 4 जबकि एसपी ने पांच मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं. एसपी के मौजूदा विधायकों नाहिद हसन व रफीक अंसारी को उनकी पुरानी सीटों से ही टिकट मिला है. जबकि पाला बदलने वाले विधायक असलम चौधरी धौलाना सीट पर हाथी की सवारी छोड़ अब साइकिल पर सवार हो गए हैं. कोल से सलमान सईद और अलीगढ़ से जफर आलम एसपी प्रत्याशी होंगे. आरएलडी ने बागपत से अहमद हमीद, बुलंदशहर की स्याना से दिलनवाज़ खान और बुलंदशहर से हाजी यूनुस को उतारा है.
बीएसपी की लिस्ट में मुसलमानों को तरजीह की उम्मीद
हालांकि बीएसपी ने अभी अपने सिर्फ दो ही उम्मीदवारों का ऐलान किया है. दोनो ही मुस्लिम हैं. सहारानपुर जिले का नकुड़ सीट पर बीएसपी ने नौमान मसूद को उम्मीदवार बनाया है. नौमान कांग्रेस से सापल में गए पूर्व विधायक और यूपी कांग्रेस में उपाध्यक्ष रहे इमरान मसूद के भाई हैं. वहीं मुज़फ़्फ़रनगर की चरथावल सीट से बीएसपी ने सलमान सईद को उम्मीदवार बनाया है. सलमान मुज़फ़्फरनगर से सांसद और यूपी में कांग्रेस सरकार में गृहराज्यमंत्री रहे सईदुज्जमां के बेटे हैं. दोनों ही कांग्रेस छोड़कर बीएसपी में आएं हैं. बीएसपी की पूरी लिस्ट में मुसलमानों को भरपूर तरजीह दिए जाने की उम्मीद है. पिछला रिकॉर्ड कुछ ऐसा ही है. पिछले चुनाव में बीएसपी ने 102 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे. इनमे से सिर्फ़ पांच जीते थे. इस बार भी बीएसपी के टिकट पर सौ से ज़्यादा मुस्लिम उम्मीदवार उतारे जाने की संभावना है.
ओवैसी भी जुटे उम्मीदवार तय करने की क़वायद में
असदुद्दीन ओवैसी भी अपनी पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के 100 उम्मीदवारों की लिस्ट तैयार करने की क़वायद में जुटी है. कुछ उम्मीदवारों के नाम उनकी पार्टी ने फाइनल कर दिए हैं, बाकी पर अभी मंथन चल रहा है. ख़बर है कि लखनऊ की एक सीट पर पार्टी अपने प्रवक्ता असीम वकार को उम्मीदवार बना रही है. मजलिस ने पिछले विधानसभा चुनाव में 38 सीटों पर चुनाव लड़ा था. इनमें से उसके 37 उम्मीदवार मुसलमान थे. इस बार भी अगर पार्टी 100 सीटों पर चुनाव लड़ती है तो ज्यादातर उम्मीदवार मुसलमान होने की संभावना है. हालांकि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना सज्जाद नोमानी ने दो दिन पहले ओवैसी को सिर्फ़ जीतने वाली सीटों पर ही चुनाव लड़ने की सलाह दी है, लेकिन ओवैसी ने उनका सुझाव ठुकरा दिया है. ओवैसी के उम्मीदवारों की मौजूदगी से जहां समाजवादी पार्टी की राह मुश्किल होगी, वहीं बीजेपी की राह आसान होने की उम्मीद जताई जा रही है.
पीस पार्टी और राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल क तैयारियां
विधानसभा चुनाव में अपना वजूद बचाने के लिए उतार रहे पीस पार्टी और राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल भी उम्मीदवारों के चयन पर माथापच्ची कर रही हैं. पिछले चुनाव में पीस पार्टी ने 68 सीटों पर चुनाव लड़ा था. वो एक भी सीट वह नहीं जीत पाई थी. यही हाल कुछ राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल का भी था. इस बार असदुद्दीन ओवैसी ने यूपी में बड़े पैमाने पर चुनाव लड़ने का फैसला करके इन दोनों को हाशिए पर धकेल दिया है. दोनों पार्टी आपस में गठबंधन करने पर मजबूर हो गए हैं. हालांकि 2008 से ही दोनों के अध्यक्षों डॉ. अय्यूब और मौलाना आमिर रशादी के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है. बहुत जल्द इन दोनों पार्टियों के उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में होंगे. अभी तक यह भी साफ नहीं है कि दोनों पार्टियां कितनी-कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेंगी. इनको शायद दूसरी पार्टियो में टिकट पाने में नाकाम रहने वालों का इंतजार है.
कई सीटों पर टकराएंगे मुस्लिम उम्मीदवार
यूं तो हर विधानसभा चुनाव में एसपी और बीएसपी के मुस्लिम उम्मीदवारों की टक्कर होती रही है. इस टकराव से अक्सर बीजेपी को फायदा होता रहा है. कई-कई सीटों पर एसपी, बीएसपी और कांग्रेस के भी मुस्लिम उम्मीदवार आपस में टकरा जाते हैं. पिछले चुनाव में एसपी-कंग्रेस और बीएसपी के मुस्लिम उम्मीदवार लगभग 30 सीटों पर आमने सामन थे. कई सीटों पर इन दोनों के अलावा पीस पार्टी या ओवैसी की पार्टी के मुस्लिम उम्मीदवार भी इनसे टकरा रहे थे. इस बार मुस्लिम उम्मीदवारों के आपसी टकराव का नया रिकॉर्ड क़ायम हो सकता है. क्योंकि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अलावा पीस पार्टी और राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल का गठबंधन भी चुनावी मैदान में है. इन पार्टियों के ज्यादातर उम्मीदवार मुसलमान ही होंगे. लिहाजा ये उम्मीदवार बहुत सी सीटों पर एसपी गठबंधन, बीएसपी और कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवारों से टकरा सकते हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसी सूरत में इन सीटों पर बीजेपी की राह बहुत आसान हो जाएगी.
चुनावों की तारीखों के ऐलान के बाद बीजेपी में भगदड़ मची हुई है. इससे उसकी सत्ता में वापसी की संभावना लगातार कम होती जा रही है. वहीं समाजवादी पार्टी के हौसले बुलंद हैं, क्योंकि बीजेपी छोड़कर आने वाले ज़्यादातर मंत्री और विधायक उसी का दामन थाम रहे हैं. लेकिन ओवैसी की मजलिस, डॉ. अय्यूब की पीस पार्टी और मौलाना रशादी की राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल की मौजूदगी एसपी की धड़कने बढ़ा रही है. वहीं इनकी मौजूदगी बीजेपी के लिए राहत की बात मानी जा रही है. सभी सीटो पर सभी पार्टियों के उम्मीदवारों की लिस्ट सामने आने के बाद ही पता चल पाएगा कि कितनी पार्टियों के मुस्लिम उम्मीदवार कितनी सीटों पर आपस में टकरा रहे हैं. तभी ये पता चल पाएगा कि इनके टकराव से एसपी को कितना नुकसान और बीजेपी को कितना फायदा हो रहा है. वैसे असली तस्वीर तो चुनाव नतीजे आने के बाद 10 मार्च को ही साफ़ होगा.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)