चंबा में सबसे अधिक 135500, कांगड़ा में 84564, किन्नौर में 48746 जबकि सोलन में 25645 जनजातीय आबादी है। प्रदेश के पंचायती राज की विभिन्न योजनाओं-परियोजनाओं में प्रदेश के 17882 गांवों में ट्राइबल शिनाख्त के दम पर लाभार्थी बसे हुए हैं, लेकिन नगर निगमों के गठन से शिमला, धर्मशाला, पालमपुर व सोलन जैसे शहरों में ट्राइबल सब प्लान का मूल्यांकन अभी होना बाकी है। धर्मशाला नगर निगम के दो वार्ड तथा पालमपुर का एक वार्ड ट्राइबल प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षित है, तो इस हिसाब से जनजातीय उपयोजना का आबंटन अब शहरी क्षेत्रों को भी लाभान्वित कर सकता है। पिछली जनगणना में शहरी कबायली आबादी मात्र 17734 आंकी गई है, जो अब नगर निगमों के गठन के कारण धर्मशाला जैसे शहर की वित्तीय अमानत बढ़ा सकती है, क्योंकि आरक्षण से कहीं अधिक इस बार छह पार्षद अपनी जनजातीय पृष्ठभूमि के कारण चुने गए हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक मध्य प्रदेश में शहरी ट्राइबल आबादी दस लाख, तो राजस्थान में पांच लाख के करीब और मिजोरम में 5.28 लाख शहरी ट्राइबल आबादी के कारण प्रगति के आंकड़े आगे बढ़े हैं। तमाम प्रदेशों ने अपनी शहरी कबायली आबादी के हिसाब से विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाया है। हिमाचल में ट्राइबल लोगों की तरक्की का मुआयना कई गैर जनजातीय क्षेत्रों से कहीं अधिक है, ऐसे में छोटा व बड़ा भंगाल (आबादी 12750), डोडरा-क्वार (आबादी 6372) तथा सिरमौर का गिरिपार क्षेत्र (126 पंचायतें, आबादी 101742)जनजातीय क्षेत्र घोषित होने चाहिएं। जनजातीय क्षेत्रों की दुरुहता में रह रही आबादी से कहीं अधिक लोग कांगड़ा, शिमला और सिरमौर के दुर्गम इलाकों में रहते हैं। इन क्षेत्रों की कुल आबादी 114492 है अतः इस समय ट्राइबल क्षेत्रों में रह रही 101742 जनसंख्या के मुकाबले कहीं अधिक पीड़ाजनक स्थिति में है।
ऐसे में इन दोनों आबादियों पर केंद्रित एक अतिरिक्त जनजातीय संसदीय क्षेत्र हिमाचल में बनाया जाए, तो वास्तव में ट्राइबल विकास की गाथा लिखी जा सकती है। हिमाचल के दुर्गम व ट्राइबल क्षेत्रों की आबादी मिला दी जाए तो कुल जनसंख्या दो लाख सोलह हजार दो सौ चौंतीस हो जाती है, जो वर्तमान लक्षद्वीप संसदीय क्षेत्र की कुल आबादी यानी 65998 से कहीं अधिक है। हिमाचल की ट्राइबल सब प्लान राज्य योजना का नौ फीसदी रखी गई है यानी वर्तमान के 7100 करोड़ में से 639 करोड़ रुपए कबायली इलाकों को लगभग 41 मदों में प्रदान हो रहे हैं। बेशक 1974-75 से ट्राइबल सब प्लान के मार्फत सामाजिक व क्षेत्रीय विकास के कई शिलालेख जनजातीय आधार पर लिखे गए हैं, लेकिन भौगोलिक या सामाजिक दृष्टि से असमानताएं तो अन्य वर्गों में बढ़ गईं। राज्य के संसाधनों का आबंटन केवल सियासी विवेचन से ही करना है, तो समाज में सियासी समुदाय विकसित करने के लिए कुछ और धन भी कम पड़ेगा, लेकिन जनजातीय संज्ञा में प्रदेश को आगे बढ़ाना है, तो एक अतिरिक्त जनजातीय संसदीय क्षेत्र की मांग तथा ट्राइबल सब प्लान से शहरों में कबायली जनसंख्या के हिसाब से भी आबंटन करना होगा।