जाहिर तौर पर हाटी समुदाय के पक्ष में डबल इंजन सरकार का आश्वासन भर भी, वर्षों के आंसुओं को बांध देता है। कुल 154 पंचायतों के तहत 1299 किलोमीटर दायरे में जनजातीय क्षेत्र की मांग का एक बड़ा संघर्ष, न्याय की प्रतीक्षा में दिल्ली से सफल होने की उम्मीद कर रहा है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद पैदा हुआ उत्साहित व सार्थक माहौल एक तरह से गिरिपार इलाके को जनजातीय दर्जा देने का प्रण दे रहा है। शाह से मुलाकात का हर कदम इस इलाके की चिरस्थायी मांग की दूरी कम कर रहा है, तो अब इंतजार यह रहेगा कि कब दिल्ली के कबूतर सिरमौर के इस क्षेत्र की झोली में जनजातीय दर्जे का संदेश डालते हैं। सियासी तौर पर भाजपा के लिए यह चुनावी दिल और दिल्ली लूटने वाली घड़ी है और अगर वर्षों से लटके इस मामले का सफल अंजाम होता है, तो तीन लाख लोगों के लिए यह सत्ता का ऋण होगा जिसे आगे चलकर चार विधानसभा क्षेत्र उतारेंगे। हाटी समुदाय की पैरवी में दिल्ली डेरा डाले मुख्यमंत्री ने वे सारे अध्याय खोल दिए हैं, जो बाबर जौनसार के इलाके में उत्तराखंड को कब का न्याय दे चुके हैं, लेकिन गिरिपार का हिमाचली परिवेश जनजातीय दर्जे की शून्यता में रहा है। बहरहाल, इस सफर की यह कहानी बड़ी हो सकती है और अधिसूचना की लिखावट में चुनावी स्क्रिप्ट का अंदाज बदल कर मेहरबान हो सकता है।
हालांकि चुनाव की स्क्रिप्ट चुनिंदा मुद्दों से मशविरा कर रही है। मसलन मंडी एयरपोर्ट की सुर्खियों के नीचे कांगड़ा हवाई अड्डे का विस्तार कहीं छुप गया है और इसी तरह गिरिपार क्षेत्र की वकालत में जनजातीय दर्जा न बड़ा भंगाल और न ही ऐसे दुरूह क्षेत्रों को देख रहा है। यह दीगर है कि अगर गिरिपार जनजातीय घोषित हो जाए तो हिमाचल पांगी, भरमौर, किन्नौर व गिरिपार के क्षेत्रों को मिलाकर एक अतिरिक्त जनजातीय संसदीय क्षेत्र को जोड़ने का दावा कर सकता है। चुनावी इबारत में कितने फूल खिलेंगे और कितने महकेंगे, यह परिपाटी आने वाले समय में राजनीतिक कसरतें बढ़ा देगी। लगे हाथ विस्थापितों का मसला भी खुल जाए, तो भाखड़ा व पौंग बांध विस्थापितों की आहें थम सकती हैं। वैसे आम आदमी पार्टी के कूदने के बाद हिमाचल सरकार, पंजाब पुनर्गठन के तमाम मसलों पर पंजाब सरकार को बचाव की मुद्रा में ला सकती है। देखना यह भी होगा कि सरकार के दिल्ली दौरे और कंेद्र से डबल इंजन के आगामी फैसले किस तरह पूरे हिमाचल पर दृष्टि डालते हैं, क्योंकि राजनीति के पनघट पर कई जिलों का सूखापन खत्म नहीं हुआ है। यह वास्तव में मुख्यमंत्री का हुनर ही माना जाएगा कि वह अपने राजनीतिक तराजू में असंतुलित कांगड़ा, हमीरपुर, बिलासपुर व ऊना को आगे चलकर कैसे सही स्थिति में बैठा पाते हैं। मुद्दे और मसले तो पूरे हिमाचल की आंखें खोल रहे हैं, लेकिन दिल्ली से कितना सुरमा लाकर मुख्यमंत्री हर क्षेत्र की आंखों में डालते हैं, यह समस्त जनता देखेगी।