अफगानिस्तान के लिए

अफगानिस्तान में तालिबान का लगातार मजबूत होते जाना दुख और चिंता की बात है

Update: 2021-08-13 19:09 GMT

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान । अफगानिस्तान में तालिबान का लगातार मजबूत होते जाना दुख और चिंता की बात है। तालिबान ने अफगानिस्तान के 160 से अधिक जिलों और 10 से अधिक प्रांतीय राजधानियों पर कब्जा जमा लिया है। सबसे गंभीर बात यह है, तालिबान ने अफगानिस्तान के दूसरे बड़े शहर कंधार पर कब्जा कर लिया और काबुल से महज 90 किलोमीटर दूर रह गया है। एक अमेरिकी रक्षा अधिकारी के अनुसार, तालिबान 90 दिनों के भीतर काबुल पर कब्जा कर सकता है। काबुल के लिए संघर्ष तेज होगा, लेकिन अगर काबुल को नहीं बचाया गया, तो फिर चीन, पाकिस्तान इत्यादि देशों को अगर छोड़ दें, तो बाकी दुनिया के लिए अफगानिस्तान में सांस लेना दूभर हो जाएगा। भारतीयों और दूसरे देशों के नागरिकों का अफगानिस्तान से निकलना तेज हो रहा है। डच सरकार ने शुक्रवार को कह दिया है कि उसे काबुल में अपना दूतावास बंद करना पड़ सकता है। बेशक, जो देश तालिबान की आलोचना करेंगे, उन्हें अफगानिस्तान छोड़ने के लिए मजबूर होना पडे़गा। दुनिया के ज्यादातर देशों ने विगत बीस वर्षों में इस देश में काफी संसाधन लगाए हैं, ताकि वहां विकास हो सके, लेकिन लगता है, वहां का वैध शासन खुद को मजबूत करने में नाकाम रहा और नतीजा सामने है।

यह स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं कि लगभग दो दशक तक अफगानिस्तान में रहने के बाद भी अमेरिका वहां लोकतंत्र और सुरक्षा को मजबूत नहीं कर पाया। तालिबान को काबू करने की उसकी तमाम कोशिशें नाकाम हुईं और अंतत: उसने केवल अपने स्वार्थ की चिंता करते हुए वहां से हटने में ही अपनी भलाई समझी। अमेरिकी अधिकारी यह समझने में नाकाम रहे कि अफगानिस्तान में उनकी हार वास्तव में चीन की जीत है। चीन न केवल तालिबान के पक्ष में दिख रहा है, बल्कि अफगानिस्तान में उसकी सरकार को मान्यता देने में वह कतई देरी नहीं करेगा। ऐसे में, तालिबानी कट्टरता और कथित वामपंथी निर्ममता क्या गुल खिलाएगी, कल्पना से भी सिहरन होती है। यह मेल स्वाभाविक नहीं है, यह दुनिया को सिर्फ तबाह करने के काम आएगा। यह प्राथमिक रूप से अमेरिकी नीतियों की विफलता है, जिसका खमियाजा अमेरिका को भी भुगतना पड़ेगा। एक मोर्चे पर पिंड छुड़ाने की कोशिश राजनय व व्यापार इत्यादि मोर्चों पर भारी पडे़गी।
अफगानिस्तानी उप-राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह के ताजिकिस्तान भाग जाने की अफवाह से तो मानो दहशत का माहौल बन गया। तालिबान ने हेरात के शेर कहलाने वाले इस्माइल खान को पकड़ लिया है। बताया जा रहा है कि इस्माइल खान के साथ उप-गृहमंत्री जनरल रहमान और कई आला पुलिस अधिकारियों को भी पकड़ लिया गया है। इस्माइल खान जैसे लोग अमेरिकी सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रहे थे, लेकिन अब अफगानिस्तान में इस तरह के लड़ाके व नेता लाचार हो गए हैं। पूरे देश में अविश्वास का माहौल बन गया है। यह समय ठोस पहल का है, वरना अफगानिस्तान को एक निर्मम शासन से बचाना मुश्किल हो जाएगा। दुनिया में आतंकियों का दुस्साहस बढ़ेगा, संयुक्त राष्ट्र के स्तर पर भी सोच लेना चाहिए। भारत के पास एक ही विकल्प है कि वह अपनी सुरक्षा चाक-चौबंद करे। कम से कम अपनी जमीन पर किसी भी आतंकी साजिश को मुंहतोड़ जवाब दे।


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