प्रधानमंत्री मोदी ने हार जाने वाली टीमों/खिलाड़ियों को भी दी बधाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हार जाने वाली टीमों/खिलाड़ियों को भी बधाई दी। शायद ही कभी किसी देश के प्रधानमंत्री ने ऐसा किया है। हर भारतीय को यह अच्छा लगा है। आगे से खेल रत्न पुरस्कार मेजर ध्यानचंद के नाम से दिए जाने का फैसला भी सराहनीय है। देश में शायद ही ऐसा कोई हो जिसने मेजर ध्यानचंद की उपलब्धियों की कहानियां न सुनी हों। इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में जन्मे ध्यानचंद स्वयं को हाकी का भक्त मानते थे। दुनिया उन्हें हाकी का जादूगर कहती थी। 1936 में फ्रांस के विरुद्ध सेमीफाइनल भारत ने 10-0 से जीता था, जिसमें चार गोल मेजर ध्यानचंद ने किए थे। फाइनल मैच 15 अगस्त, 1936 के दिन था। पहले हाफ में भारत कोई गोल नहीं कर सका, मगर दूसरे में वह 8-1 से जीता। दर्शकों में हिटलर भी था। हिटलर ने ध्यानचंद से ही यह जानकर कि वह भारत की सेना में हैं, उन्हें जर्मन सेना में बहुत ऊंचा पद देने की पेशकश की, जिसे हाकी के जादूगर ने विनम्रतापूर्वक ठुकरा दिया। 1928 में अपने पहले ओलिंपिक में ध्यानचंद ने 14 गोल दाग कर सारे विश्व का ध्यान खींचा था। 1928 से 1956 तक भारत ने लगातार छह स्वर्ण पदक जीते, जिनमें 1956 में पाकिस्तान को हराना भी शामिल था। हालांकि 1960 में फाइनल में भारत पाकिस्तान से एक गोल से पराजित हो गया था, मगर 1964 में उसने पाकिस्तान को हराकर फिर स्वर्ण जीता
गैर-खिलाड़ियों को खेल की किसी भी संस्था का आका नहीं होना चाहिए
वह दौर भारत में हाकी का स्वर्णिम काल था। तब हाकी का गोल्ड मेडल भारत के लिए आरक्षित माना जाता था। आज इस पर चर्चा का समय नहीं है कि क्यों भारत की हाकी नेपथ्य में चली गई या यूं कहें कि कैसे उसे अंधेरे कोने में धकेल दिया गया? सामान्य रूप से लोग कारण भी जानते हैं। उन्हें भी जानते हैं, जो हाकी के मैदान के बाहर अपने-अपने खेल खेलते हैं। इस पर राष्ट्रव्यापी बहस होनी ही चाहिए कि उन लोगों को खेलों से बाहर कैसे रखा जाए, जो स्वयं न कभी खेले हों, न खेलों के लिए कुछ किया हो, मगर केवल सुख-सुविधा और उगाही के लिए ही किसी न किसी पद को हथियाकर पूरी व्यवस्था पर कब्जा जमा लेते रहे हैं। कुछ वर्षों पहले क्रिकेट में जो उठापटक हुई, वह अशोभनीय थी, मगर आज क्रिकेट बोर्ड का अध्यक्ष एक नामी-गिरामी खिलाड़ी है। ऐसा हर खेल में होना चाहिए।
ओलिंपिक खिलाड़ियों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए
ओलिंपिक खिलाड़ियों को हर प्रकार का प्रोत्साहन मिलना चाहिए, लेकिन जो करोड़ों की बरसात कुछ मुख्यमंत्री सरकारी खजाने से कर रहे हैं, साथ में प्लाट और नौकरी भी दे रहे हैं, वे न तो खिलाड़ियों के साथ न्याय कर रहे हैं, न ही खेलों के साथ। खिलाड़ी का सम्मान कीजिए, मगर यह न भूलें कि सरकारी खजाने का पैसा आपका नहीं है। उनका भी है, जो राशन की दुकानों पर दशकों से लाइन में लगे हैं। कोई भी मुख्यमंत्री शहंशाह नहीं है। खेल रत्न अवार्ड की राशि 25 लाख रुपये है। इससे अधिक राशि किसी को भी देने की आवश्यकता नहीं है। हमने इस ओलिंपिक में भाग लेने वाले खिलाड़ियों के उन कष्टों के बारे में भी जाना है, जो उन्होंने उठाए हैं। ऐसे में सभी मुख्यमंत्रियों को घोषणा करनी चाहिए कि उसके प्रांत में हर सरकारी स्कूल में खेल के सामान की कोई कमी नहीं होगी। हर स्कूल को कोच की व्यवस्था सप्ताह में कम से कम दो दिन उपलब्ध होगी। हर होनहार खिलाड़ी के लिए सभी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। उन्हें आवासीय विद्यालयों में पढ़ने के साथ उनकी खेल प्रतिभा के विकास की व्यवस्था भी होगी।
नवीन पटनायक ने भारतीय हाकी को गर्त से निकाल कर विश्व पटल पर सम्मानपूर्ण स्थान दिलाया
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है, जिसकी सराहना करना हर भारतवासी का धर्म है। उन्होंने भारतीय हाकी को गर्त से निकाल कर विश्व पटल पर सम्मानपूर्ण स्थान दिला दिया। उन्होंने सरकारी पैसे का निवेश सोच-समझकर किया, देशहित में किया। उनमें कहीं कोई राजनीति या स्वार्थ नहीं दिखाई दिया।
देश में हो खेल संस्कृति विकसित, खेल स्कूल की हो स्थापना
देश में खेल संस्कृति विकसित करने के लिए हर उस जिले को खेल जिला घोषित कर देना चाहिए, जहां से एक भी खिलाड़ी टोक्यो ओलिंपिक में भाग लेने के लिए गया हो। वहां एक खेल स्कूल की स्थापना भी की जानी चाहिए। सभी मुख्यमंत्रियों को नवीन पटनायक की तरह खेलों में निवेश की उपयोगिता को समझना चाहिए।
( लेखक शिक्षा और सामाजिक सद्भाव के क्षेत्र में कार्यरत हैं )