फिर वही अड़ियल रवैया, किसानों के ये कैसे हितैषी
संयुक्त किसान मोर्चा ने केंद्र सरकार की ओर से फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की अधिक प्रभावी एवं पारदर्शी व्यवस्था के निर्माण के लिए गठित समिति में शामिल होने से जिस तरह इन्कार कर दिया
सॉर्स - जागरण
संयुक्त किसान मोर्चा ने केंद्र सरकार की ओर से फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की अधिक प्रभावी एवं पारदर्शी व्यवस्था के निर्माण के लिए गठित समिति में शामिल होने से जिस तरह इन्कार कर दिया, उससे न केवल उसके अड़ियल रवैये का पता चलता है, बल्कि इसका भी कि उसकी समस्या के समाधान में कोई रुचि नहीं। इस मोर्चे ने यह कहते हुए इस समिति में शामिल होने से मना कर दिया है कि इसके अन्य सदस्य सरकार के अपने लोग हैं।
यह एक निराधार आरोप है, क्योंकि इस 26 सदस्यीय समिति में विभिन्न किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ राज्य सरकारों के प्रतिनिधि भी शामिल हैं और कृषि अर्थशास्त्री भी। यदि संयुक्त किसान मोर्चा यह चाहता है कि इस समिति में सारे सदस्य उसकी मर्जी के हों तो यह मनमानी की पराकाष्ठा के अतिरिक्त और कुछ नहीं। संयुक्त किसान मोर्चे ने ऐसी ही मनमानी का परिचय तब दिया था, जब सुप्रीम कोर्ट ने तीन कृषि कानूनों की समीक्षा के लिए एक समिति गठित की थी। तब भी इस मोर्चे ने इस समिति के सदस्यों को सरकार समर्थक करार दिया था।
संयुक्त किसान मोर्चा भले ही स्वयं को किसानों का प्रतिनिधि बताता हो, लेकिन इसके कई सदस्य स्वयंभू कृषक नेता ही अधिक हैं। कुछ तो ऐसे हैं, जिनका खेती-किसानी से कोई लेना-देना ही नहीं। उनकी सक्रियता ऐसे आंदोलनों में भी देखी गई है, जिनका कृषि और किसानों से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं था। संयुक्त किसान मोर्चे के रवैये से यदि कुछ स्पष्ट हो रहा है तो यही कि वे न्यूनतम समर्थन मूल्य के मामले में अपनी ही चलाना चाहते हैं। यह किसी से छिपा भी नहीं कि वे किसानों को कृषि बाजार से दूर रखना चाहते हैं।
आज के युग में किसानों को कृषि बाजार से दूर रखने का मतलब है उन्हें बदहाल बनाए रखना। अपनी इसी मानसिकता के कारण संयुक्त किसान मोर्चे ने किसानों के लिए हितकारी सिद्ध होने वाले कृषि कानूनों का विरोध किया था। कई विपक्षी दलों की शह के चलते करीब एक वर्ष तक चले इस विरोध ने यही स्पष्ट किया था कि इस मोर्चे का उद्देश्य किसानों के हितों की रक्षा करना नहीं, बल्कि अपने संकीर्ण राजनीतिक हितों को साधना था।
यह तब और स्पष्ट भी हो गया था, जब उन्होंने पहले बंगाल और फिर पंजाब एवं उत्तर प्रदेश के चुनावों में अपनी सक्रियता दिखाते हुए यह रेखांकित कर दिया था कि उनका इरादा राजनीतिक दल विशेष को सत्ता में आने से रोकना है। चूंकि संयुक्त किसान मोर्चा किसानों की आड़ लेकर अपनी राजनीति चमकाना चाहता है, इसलिए उचित यही होगा कि सरकार उसकी अनावश्यक आपत्तियों की अनदेखी कर आगे बढ़े।