रास्ते निकल ही आते हैं
जीवन की शुरुआत सीखने से होती है। बच्चा सबसे पहले माता-पिता और परिवार से जीवन की तमाम बुनियादी चीजें सीखता है। खाने-पीने, उठने-बैठने का ढंग, अभिव्यक्ति की भाषा, बोलने का लहजा, सब कुछ वह माता-पिता और परिवार के सदस्यों से सीखना शुरू करता है।
सचिन समर: जीवन की शुरुआत सीखने से होती है। बच्चा सबसे पहले माता-पिता और परिवार से जीवन की तमाम बुनियादी चीजें सीखता है। खाने-पीने, उठने-बैठने का ढंग, अभिव्यक्ति की भाषा, बोलने का लहजा, सब कुछ वह माता-पिता और परिवार के सदस्यों से सीखना शुरू करता है। फिर उसी के आधार पर उसके जीवन की गतिविधियां चलनी शुरू होती हैं। उसके बाद तो सीखने का उसका सिलसिला पाठशाला, अपने दोस्त-मित्रों, हमउम्र और अपने आसपास की दुनिया से शुरू होता है। कदम-कदम पर वह सीखता रहता है।
मनुष्य जब तक जीता है, वह हर दिन नई बातें सीखता है। हर नई सीख हमें एक नई दिशा दिखाती है। हर व्यक्ति अपने आप में एक अनूठा फनकार और कलाकार होता है, जो वह अपने जीवन को दुनिया के कैनवास पर उकेरता रहता है। हर आदमी अपने ढंग से जीवन का संगीत रचता है। हर किसी की कृति सबसे एकदम अलग, मौलिक और अपने पीछे दुनिया में एक अलग छाप छोड़ जाता है।
कई लोग हैं, जो अपना पूरा जीवन दूसरों के जीवन में फूल खिलाने में लगा देते हैं और उनकी एक ही धुन रहती है कि इस दुनिया में कोई दुखियारा न रहे। यह है जीवन की यात्रा, जो सीधी और सरल नहीं है। इसमें दुख हैं, तकलीफें हैं, संघर्ष और परीक्षाएं भी हैं। ऐसे में स्वयं को हर स्थिति-परिस्थिति, माहौल-हालात में सजग और संतुलित रखना वास्तव में एक कला है। इसीलिए कहते हैं कि जीवन जीना भी एक कला है, जिसमें विरले ही अपनी प्रतिभा के साथ न्याय कर पाते हैं। जो न्याय कर पाते हैं वही सिकंदर कहलाते हैं।
जन्म लेना हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन इस जीवन को सुंदर बनाना हमारे हाथ में है और जब सुख की यह संभावना हमारे हाथ में है तो फिर यह दुख कैसा? यह शिकायत कैसी? हम क्यों भाग्य को कोसें और दूसरे को दोष दें? जब सपने हमारे हैं, तो कोशिशें भी हमारी होनी चाहिए। जब मंजिल पर पहुंचना हमें है तो यात्रा भी हमारी ही होनी चाहिए। यह जीवन कुदरत की तरफ से मिला एक अवसर है, इसलिए यह जीवन जीना एक कला है, मौका है।
बहुत से लोग किसी न किसी बात को लेकर जीवन से ऊब जाते हैं। उन्हें निराशा घेर लेती है। अवसाद में चले जाते हैं। इस तरह उनके जीवन जीने का तरीका बदल जाता है। वे हर चीज में कोई न कोई निराशाजनक तत्त्व तलाश लेते हैं। जीवन में उत्साह न हो, तो अनेक बीमारियां घेरने लगती हैं। न खाने का शौक रह जाता है, न किसी बात से खुशी मिलती है। जीवन में उत्साह होना बहुत जरूरी है। उत्साह निराशा को फटकने नहीं देता।
छोटी-छोटी बातों में खुशी तलाश लेता है। जीवन को उत्सव बना देता है। जीवन में उत्सव होते रहना बहुत जरूरी है। कुदरत ने मनुष्य को ही खुल कर हंसने, उत्सव मनाने, मनोरंजन करने और खेलने की योग्यता दी है। यही कारण है कि ज्यादातर त्योहार और संस्कारों में संयमित रहकर नृत्य, संगीत और उत्सव से जीवन में सकारात्मकता, मिलनसारिता और अनुभवों का विस्तार होता है। अगर आपको लगता है कि आप जीवन का आनंद नहीं ले पा रहे हैं या फिर आप अपने जीवन से खुश नहीं हैं तो इसका मतलब है कि आपको जीवन जीने की कला नहीं आती। वास्तव में जीवन जीना भी एक कला है, पर यह कला हर इंसान को नहीं आती। कुछ ही लोग होते हैं जो कि कला को सीख पाते हैं। मगर इसे सीखना बहुत कठिन भी नहीं।
हम बचपन से ही बहुत सारी चीजें सीखने पर जोर देते हैं, लेकिन सबसे जरूरी कला को सीखना इस बीच भूल ही जाते हैं, जो कि सबसे महत्त्वपूर्ण है- जीवन जीने की कला। हर चीज का ज्ञान इनसान को इसी धरती पर आकर मिलता है, तो अगर आपको भी जीवन जीने की कला नहीं आती है, तो ज्यादा परेशान होने ही जरूरत नहीं है। कोई काम तनावपूर्ण नहीं होता, यह आपकी जिम्मेदारी है कि आप अपने शरीर, मस्तिष्क और भावना को कैसे बनाते हैं, जिससे वह तनावपूर्ण न लगे। अपनी जिंदगी के मकसद को अपनी जरूरत बना लें, फिर वह ज्यादा दूर नहीं होगी।
लोग बाहर से अपनी जिंदगी को पूर्ण करने की कोशिश करते हैं, लेकिन असल में जीवन की गुणवत्ता हमारे अंदर की जिंदगी पर आधारित होती है। जिम्मेदारी का अर्थ है कि आप अपने जीवन में किसी भी स्थिति का सामना कर सकते हैं। दो लोग एक जैसे नहीं होते, आप सभी लोगों को एक समान नहीं कर सकते, आप केवल उन्हें समान अवसर दे सकते हैं। झुंझलाहट, निराशा, तनाव और अवसाद का मतलब है कि आप स्वयं के विरुद्ध काम कर रहे हैं। समस्याओं में फंसे रहने से बहाने हमेशा नजर आते हैं और अगर आप उनका समाधान खोजते हैं, तो रास्ते निकल ही आते हैं।