गौरवशाली इतिहास का गवाह रहा है बिहार विधानसभा
वर्तमान समाज विधेयकों का आज ऋणी है जो निरन्तर एक विकसित समाज की दिशा की ओर उड़ान भरता रहा है. सौ सालों के इस सफरनामे का श्रेय हर वर्ष राज्य को नेतृत्व देने वाली उन राजनीति सोच, नीति नियामकों व उस लोकतांत्रिक सोच को जाता है जहां से अविकसित राज्य से विकासशील राज्य बनने का सफर तय किया गया है. यही वजह है कि शताब्दी समारोह में अपने अभिभाषण में कभी राज्य के राज्यपाल रहे महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने कहा कि राज्य के गौरवशाली इतिहास की वजह से उन्हें बिहारी राष्ट्रपति कहकर जब कभी संबोधित किया जाता है तो वो गौरवान्वित महसूस करते हैं.
सामंतवाद से लोकतंत्र के सफर से लेकर रोजगार, हर खेत को पानी व स्वच्छ वातावरण में पल्लवित होते नौनिहालों के चेहरों पर मुस्कान ठहराने के लिए कई योजनाएं कार्यान्वित की गईं जिसका गवाह बिहार का विधानसभा बनता रहा है. जाहिर है, इस विशेष समय में बिहार विधान सभा के इतिहास के उन तमाम पन्नों को नहीं पलटा जा सकता मगर, जीवन जहां से सुगमता की राह चढ़ते लोकतंत्र की खूबसूरती की ओर बढ़ा- उन पारित हुए कुछ प्रमुख विधेयकों, उठाये गये प्रशासनिक कदमों व नियमावलियों की चर्चा ऐसे मौके पर करना गौरवशाली इतिहास के पन्ने पलटने जैसा है जिसे वक्त के थपेड़ों के साथ भूला नहीं जा सकता है.
विधानसभा कई मनीषियों और विभूतियों के इतिहास का गवाह रहा है
बिहार विधानसभा राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर, डॉ श्री कृष्ण सिंह, सच्चिदानंद सिन्हा, अनुग्रह नारायण सिंह, कर्पूरी ठाकुर, जैसे विभूतियों के नेतृत्व और गौरवशाली क्रियाकलापों का गवाह रहा है. बिहार केसरी श्रीकृष्ण सिंह (तब प्रधानमंत्री) के कार्यकाल में वर्ष 1937-38 में काश्तकारी कानून लाया गया था और जमींदारों की प्रताड़ना से शोषितों को बचाने के लिए ये पहला सुरक्षा कानून बना था. इतना ही नहीं साल 1948 जमींदारी उन्मूलन बिल का गवाह सदन बना था और इस बिल से जमींदारी उन्मूलन की पटकथा की नींव मजबूत तरीके से डाली गई थी.
जमींदारी उन्मूलन जैसे कानून को पास करने वाला पहला राज्य है बिहार
बिहार पहला राज्य बना जहां जमींदारी उन्मूलन को कानून का जामा साल 1950 में पहनाया गया था. इसके बाद संविद सरकार में बासगीत पर्चा देना, भूमि सुधार हेतु पहल करना जैसे महत्वपूर्ण काम शामिल हैं. भूमि व खेती के लिए गरीबों के बीच भूमि वितरित करने जैसे कदम उठाए गए जिसके काफी दूरगामी प्रभाव भी पड़े.
दूसरे सीएम जननायक कर्पूरी ठाकुर के 163 दिनों के कार्यकाल में आठवीं तक की पढ़ाई की व्यवस्था मुफ्त शिक्षा के तौर पर की गई. साथ ही पांच एकड़ तक की जमीन की मालगुजारी भी माफ कर दी गई. कर्पूरी जी के समय में उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा मिला जो बिहार की तत्कालीन सरकार ने जरूरी समझ निष्पादित किया. दूसरी बार जब कर्पूरी ठाकुर सत्ता में आए तो ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने वाला बिहार पहला राज्य बना.
कर्पूरी ठाकुर के नेतृ्तव में सभी वर्गों की महिलाओं व सवर्ण गरीबों को तीन-तीन प्रतिशत और ओबीसी के लिए 2० प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की गई. मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. जगन्नाथ मिश्रा ने अपने कार्यकाल में स्कूलों के सरकारीकरण करने की पहल की और इसे 2 अक्टूबर 1980 में ठोस रूप देने में सफल भी हुए.
सामाजिक न्याय के नेता लालू प्रसाद के कार्यकाल को शिक्षा मित्र बहाल करने, मछुआरों को गंगा पर अधिकार देने तथा कृषि रोडमैप के जरिए सूबे में एक नयी क्रांति लाने वाले के रूप में जाना जाता है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भी कार्यकाल बिहार के लिए अत्यंत प्रगतिशील माना जाता है. यही वजह है कि नीतीश कुमार बिहार के विकासपुरूष के रूप में जाने जाते हैं. इनके कार्यकाल में बालिकाओं में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए पोशाक योजना, साइकिल योजना व छात्रवृत्ति योजना शिक्षा के क्षेत्र में वरदान साबित हुआ.
पंचायत चुनाव में महिलाओं को 5० प्रतिशत आरक्षण और साल 2010 में भ्रष्टाचार निरोधक व संपत्ति जब्ति कानून नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनाया गया. बिहार मद्य निषेध और उत्पाद विधेयक के साथ बाल विवाह, दहेज प्रथा को लेकर भी फैसले लिए गए. जीएसटी संशोधन विधेयक के अलावा पर्यावरण संतुलन और जीवन के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए जल और पेड़-पौधों को संरक्षित करने के लिए नीतीश सरकार ने जल, जीवन, हरियाली योजना की शुरुआत साल 2019 में की.
राष्ट्रपति की मौजूदगी से शताब्दी समारोह अविस्मरणीय बन गया
बिहार विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा ने बिहार विधानसभा के शताब्दी समारोह में इस बात पर बल देते हुए कहा कि बिहार रोजगार, खुशहाली, और चतुर्मुखी विकास को प्रथामिकता देने में अग्रसर रहा है और आगे भी यहां के जनप्रतिनिधि विकास के कार्यो के लिए गौरवशाली इतिहास से प्रेरणा लेकर कार्य करते रहेंगे.
ज़ाहिर है बिहार विधानसभा के निर्माण के बाद से लेकर शताब्दी वर्ष तक बिहार विधान सभा भवन से विकास की इबारत जो लिखी गई है उसको मनाने और गौरवशाली इतिहास को याद करने वर्तमान और निर्वतमान प्रतिनिधि पहुंचे थे, जहां महामहिम राष्ट्रपति की मौजूदगी से शताब्दी सामरोह अविस्मरणीय बन गया.