सीमांत व दुर्गम क्षेत्रों में 44 पुलों का एक साथ लोकार्पण भारत सरकार की प्रतिबद्धता का है परिचायक
भारत सरकार की इस प्रतिबद्धता का परिचायक है कि सीमाओं की रक्षा के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी जाएगी
स्पष्ट है कि ये पुल आर्थिक विकास के साथ-साथ देश की सामरिक शक्ति को बल प्रदान करने वाले भी हैं। इन पुलों के निर्माण में केवल इसीलिए तेजी नहीं दिखाई गई कि बर्फबारी का समय करीब आ रहा है, बल्कि इसलिए भी कि अहंकारी और अड़ियल चीन बदनीयती का परिचय देने में लगा हुआ है।
चीन के साथ-साथ पाकिस्तान भी नापाक इरादों से लैस नजर आ रहा है। शायद इसीलिए रणनीतिक महत्व के इन पुलों का लोकार्पण करते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बिना किसी लाग-लपेट कहा कि ऐसा लगता है कि चीन और पाकिस्तान किसी खास इरादे से मिलकर भारत के लिए समस्याएं पैदा करने में लगे हुए हैं।
शत्रु भाव से भरे देशों को ऐसे ही सख्त संदेश दिए जाने चाहिए। रक्षा मंत्री का दो टूक बयान सैन्य अफसरों के उस आकलन के अनुरूप भी है, जिसके तहत यह रेखांकित किया गया था कि चीन के साथ-साथ पाकिस्तान से भी दो-दो हाथ करने की नौबत आ सकती है।
चूंकि मौजूदा माहौल में चीन और पाकिस्तान पर एक क्षण के लिए भी भरोसा नहीं किया जा सकता इसलिए उचित यही है कि उनसे निपटने की पूरी तैयारी रखी जाए। यह अच्छा हुआ कि भारत यह संकेत देने में संकोच नहीं बरत रहा कि सीमांत राज्यों में बनाए गए पुल इसी तैयारी का हिस्सा हैं।
इस तैयारी को किस तरह विशेष प्राथमिकता दी जा रही है, इसका पता इससे चलता है कि अस्थायी पुलों को स्थायी पुलों में बदलने और नए पुलों का निर्माण करने के लिए सीमा सड़क संगठन अपनी क्षमता से तीन गुना अधिक काम कर रहा है। इन 44 पुलों के निर्माण के साथ ही करीब इतने ही और पुलों को बनाने का काम जारी है।
इसी संगठन ने अभी हाल में हिमाचल प्रदेश में सबसे लंबी सुरंग का निर्माण कर देश-दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। सीमावर्ती राज्यों के दुर्गम इलाके में सीमा सड़क संगठन अपने काम को जिस संकल्प के साथ पूरा करने में लगा हुआ है, वह देश के इस भरोसे को बल देने वाला है कि हमारी सेना और उसके संस्थान हर तरह की चुनौती का सामना करने में सक्षम हैं।