बिजली सुधार में राज्यों की भूमिका अहम : आर्थिक विकास की दरकार, तंग चल रही वित्तीय स्थिति और ज्यादा बिगाड़ रही
केंद्र के साथ मिलकर बिजली क्षेत्र को स्वस्थ व मुश्किलों को सहने में सक्षम बनाना होगा।
बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिजली क्षेत्र की प्रगति को प्रभावित करने वाले एक महत्वपूर्ण मुद्दे की तरफ देश का ध्यान खींचा है। आर्थिक विकास में बिजली क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हुए, उन्होंने राज्य सरकारों से बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) का बकाया भुगतान करने की अपील की है। डिस्कॉम का नुकसान और बकाया-एक गंभीर समस्या है। पॉवर फाइनेंस कॉरपोरेशन की 2019-20 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 29 में डिस्कॉम घाटे में चल रही हैं।
2019-20 तक, डिस्कॉम का कुल घाटा पांच लाख करोड़ रुपये पहुंच गया, और उनकी उधारी वर्ष 2010-20 की तुलना में ढाई गुना बढ़ गई। कोरोना महामारी के दौरान डिस्कॉम के नुकसान और कर्ज में और बढ़ोतरी हो गई है। डिस्कॉम के संकट का एक प्रमुख कारण दो लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का बकाया है, जिसमें सरकारी विभागों और राज्य सरकारों से लंबित भुगतान/ सब्सिडी की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत, और निजी उपभोक्ताओं (मुख्य रूप से घरेलू कनेक्शन) का बकाया 30 प्रतिशत है।
इसे हल करने के लिए राज्यों और डिस्कॉम को इन तीन प्रमुख उपायों पर केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहिए। पहला, छह राज्यों को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, जिन पर डिस्कॉम के लंबित भुगतान का तीन-चौथाई हिस्सा बकाया है। इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश शामिल हैं। सरकारी विभागों से डिस्कॉम के बकाये का निपटान करने के लिए, संबंधित राज्य अपने बजटीय आवंटन में से चरणबद्ध रूप से अग्रिम कटौती करने के बारे में विचार कर सकते हैं।
दूसरा, राज्यों को अपने सीमित वित्तीय संसाधनों के कुशल उपयोग और बिजली को जिम्मेदारी के साथ इस्तेमाल करने की संस्कृति बनाने के लिए बिजली पर दी जाने वाली सब्सिडी को तर्कसंगत बनाने और लक्षित करने की दिशा में काम करना चाहिए। काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट ऐंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के अध्ययन के अनुसार, सात राज्यों को छोड़कर, 2016-20 के दौरान अधिकांश राज्यों में बिजली दर (टैरिफ) में सब्सिडी पर निर्भरता में बढ़ोतरी हुई है।
मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, पंजाब और कर्नाटक उन शीर्ष राज्यों में शामिल हैं, जहां डिस्कॉम अपने कुल राजस्व के 30 प्रतिशत या उससे ज्यादा हिस्से के लिए टैरिफ सब्सिडी पर निर्भर हैं। बिजली पर सब्सिडी में बढ़ोतरी, राज्यों की पहले से तंग चल रही वित्तीय स्थिति और ज्यादा बिगाड़ रही है। इसलिए, राज्यों को केवल कमजोर और योग्य उपभोक्ताओं को ही सब्सिडी देनी चाहिए। इसके अलावा, राज्यों को पीएम-कुसुम योजना के तहत किसानों के बीच सोलर पंप जैसे सिंचाई के साधनों को बढ़ावा देना चाहिए।
तीसरा, डिस्कॉम को हाल ही में शुरू की गई 'रिवैम्प्ड डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर' (आरडीएस) योजना के तहत उपलब्ध विभिन्न वित्तीय और तकनीकी मदद का पूरी सक्रियता के साथ लाभ उठाना चाहिए। तीन लाख करोड़ रुपये की इस योजना का उद्देश्य वर्ष 2025 तक डिस्कॉम को अपना घाटा 12-15 प्रतिशत तक घटाने में मदद करना है। इस लक्ष्य को पाने के लिए डिस्कॉम को अपने सभी बिजली कनेक्शन के साथ स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने और डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क को मजबूत करने की जरूरत है।
भारत, पहले ही कई तरीकों से ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन के मामले में अपने नेतृत्व को दुनिया के सामने प्रदर्शित कर चुका है। इसमें रिकॉर्ड समय में गांवों और घरों का विद्युतीकरण, और दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा अक्षय ऊर्जा उत्पादक बनने जैसी उपलब्धियां शामिल हैं। अब हमारे पास और भी महत्वाकांक्षी लक्ष्य हैं। अब हम 2030 तक 500 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा की उत्पादन क्षमता स्थापित करना, और 2070 तक नेट-जीरो (कार्बन न्यूट्रल) अर्थव्यवस्था बनना चाहते हैं। इन लक्ष्यों को पाने के लिए, राज्यों को निश्चित तौर पर केंद्र के साथ मिलकर बिजली क्षेत्र को स्वस्थ व मुश्किलों को सहने में सक्षम बनाना होगा।
सोर्स: अमर उजाला