सवाल साख का है

जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अमेरिका की साख इतनी कमजोर है कि

Update: 2021-04-26 16:17 GMT

जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अमेरिका की साख इतनी कमजोर है कि वहां से होने वाली घोषणाएं दिलचस्पी से ज्यादा सवाल पैदा करती हैं। इसीलिए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जलवायु परिवर्तन के मुकाबले के लिए जो अमेरिकी योजना पेश की है, हालांकि वो प्रभावशाली है, लेकिन उसकी विश्वसनीयता पर सवाल बने हुए हैँ। ये सवाल वाजिब है कि अगर 2024 के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी जीत गई, तो क्या होगा? इससे पहले दो मौकों पर डेमोक्रेटिक राष्ट्रपतियों की जलवायु वचनबद्धता को उनके बाद निर्वाचित हुए रिपब्लिकन राष्ट्रपति तोड़ चुके हैँ। 1997 में बिल क्लिंटन ने अमेरिका को क्योतो प्रोटोकॉल का हिस्सा बनाया था। लेकिन साल 2001 में जीते जॉर्ज डब्लू बुश ने उससे अपने देश को निकाल लिया। बराक ओबामा ने 2015 में पेरिस संधि को संपन्न कराने में सक्रिय भूमिका निभाई। लेकिन 2017 में रिपब्लिकन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इस संधि से अमेरिका को अलग कर लिया। तो मुद्दा यह है कि वही कहानी फिर नहीं दोहराई जाएगी, इसकी क्या गारंटी है? वैसे बाइडेन सचमुच ये योजना लागू कर पाएंगे, यह भी तय नहीं है। घोषित योजना पर अमल के लिए संसदीय मंजूरी की जरूरत होगी।


सीनेट के समीकरण को देखते हुए ये हासिल करना भी बाइडेन प्रशासन के लिए आसान नहीं है। बाइडेन की योजना पर रिपब्लिकन पार्टी की प्रतिक्रिया आलोचनात्मक है। उसके नेताओं ने उत्सर्जन में भारी कटौती के इरादे को हानिकारक बताया है। कहा है कि इसका खामियाजा अमेरिकी अर्थव्यवस्था को चुकाना होगा। बाइडेन ने जलवायु परिवर्तन मुद्दे पर विश्व नेताओं के शिखर सम्मेलन में अपनी योजना बताई। उसके मुताबिक अमेरिका ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 2030 तक 2005 के स्तर की तुलना में 50 से 52 प्रतिशत तक की कटौती करेगा। इसके लिए जिन नए नियमों को लागू करने पर बाइडेन प्रशासन विचार कर रहा है, उन्हें अदालतों में भी चुनौती दी जा सकती है। खुद ह्वाइट हाउस की राय है कि ग्रीन हाउस गैसों में प्रस्तावित कटौती के लिए राज्य सरकारों और कॉरपोरेट सेक्टर को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। जिन राज्यों में रिपब्लिकन पार्टी सत्ता में है, वहां के प्रशासन ऐसी योजना में शामिल होंगे, इसकी संभावना कम है। बाइडेन की मुश्किल यह है कि पर्यावरणवादी कार्यकर्ता उनकी योजना को नाकाफी बता रहे हैं। मसलन, पिछले चुनाव में उन्हें समर्थन देने वाले सनराइज मूवमेंट ने बाइडेन की योजना को उम्मीद से कम बताया है।


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